भरतपुर रियासत

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भरतपुर रियासत भारत की देशी रियासतों में महत्त्वपूर्ण रियासत थी। 1700 ई. में जब मुग़ल सल्तनत कमज़ोर पड़ने लगी थी, तब सनसनी गाँव के ज़मींदार जाट बैजा ने अपनी रियासत बढ़ाना शुरू किया। बाद में उनके वंशज चूड़ामन सिंह और बदन सिंह ने 1724 ई. में इस रियासत को बड़े पैमाने पर फैलाया। बाद में यह रियासत भी अंग्रेज़ों के अधीन हो गई और अंग्रेज़ों से अपनी वफादारी इसने 1857 ई. के विद्रोह में दिखाई।[1]

भरतपुर में अपनी फ़ौलादी दृढ़ता के लिये लोहागढ़ क़िला इतिहास में अमर है। दिल्ली–मुंबई रेलमार्ग पर मथुरा से कोई 30 किलोमीटर दूर वह ऐतिहासिक स्थान है, जो "राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार" कहलाता है। भरतपुर जाट राजाओं की रियासत थी। जाट लोग अपनी अक्खड़ता और ज़िद के लिये प्रसिद्ध हैं। भरतपुर राजाओं ने दिल्ली को भी लूटा और दिल्ली से अपनी विजय के उपहार स्वरूप अष्टधातु के उस दरवाजे को उखाड़ कर लाये, जिसे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर लाया था। भरतपुर के चारों ओर पानी से भरी हुई खाई है और उस खाई के बाहर बना हुआ है मिट्टी का वह क़िला, जिसके अदम्य साहस और बहादुरी के गीत प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टॉड ने भी गाए हैं। मिट्टी के इस क़िले की यह एक विशेषता रही है कि उसे आज तक कोई भी हरा नहीं सका। इसलिये यह क़िला आज भी अजेय दुर्ग लोहागढ़ के नाम से विख्यात है। भरतपुर का पुराना नाम भी लोहागढ़ रहा है। ये कहावतें भरतपुर के जाटों की वीरता को और लोहागढ़ के चरित्र को प्रकट करती हैं- "आठ फिरंगी नौ लड़ै जाट के दो छोरा तथा भरतपुर गढ़ बाँको गोरा हटजा।"[2]

अंग्रेज़ी सेनाओं से लड़ते–लड़ते होल्कर नरेश यशवन्त राव होल्कर भागकर भरतपुर आ गए थे। जाट राजा रणजीत सिंह ने उन्हें वचन दिया था कि आपको बचाने के लिये हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे। अंग्रेज़ों की सेना के कमांडर इन चीफ लॉर्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को खबर भेजी कि या तो वह यसवंत राव को अंग्रेज़ों के हवाले कर दे अन्यथा वह खुद को मौत के हवाले समझे। यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के सर्वथा खिलाफ थी। अंग्रेज़ी सेना के कमांडर लेक ने तत्काल भारी सेना लेकर भरतपुर पर आक्रमण कर दिया। जाट सेनाएँ निर्भिकता से डटी रहीं। अंग्रेज़ी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस क़िले के पेट में समाते जा रहे थे। तोप के गोलों के घमासान हमले के बाद भी जब भरतपुर का क़िला ज्यों का त्यों डटा रहा तो अंग्रेज़ी सेना में आश्चर्य और सनसनी फैल गयी। लॉर्ड लेक स्वयं विस्मित होकर इस क़िले की अद्भुत क्षमता को देखते और आँकते रहे। संधि का संदेश फिर दोहराया गया और राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेज़ी सेना को एक बार फिर ललकार दिया। अंग्रेज़ों की फौज को लगातार रसद और गोला बारूद आते जा रहे थे और वह अपना आक्रमण निरंतर जारी रखती रही। परन्तु जाट सेनाएँ अडिग होकर अंग्रेज़ों के हमलों को झेलती रही। इतिहासकारों का कहना है कि लॉर्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेज़ी सेनाओं ने 13 बार इस क़िले पर हमला किया और हमेशा उसे मुँह की खानी पड़ी। अँग्रेजी सेनाओं को वापस लौटना पड़ा।

भरतपुर का क़िला यद्यपि इतना विशाल नहीं है, जितना कि चित्तौड़ का क़िला, परन्तु भरतपुर का क़िला अजेय माना जाता है। यह इतनी कारीगरी से बनाया गया है कि आसानी से इसे जीता नहीं जा सकता। क़िले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है और इसके बाहर पानी से भरी हुई खाई है। दुश्मन की तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धस जाते और उनकी आग शांत हो जाती। ऐसी असंख्य गोलों को अपनी उदर में समा लेने वाले इस क़िले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है और इसीलिये दुश्मन इस क़िले में कभी अंदर नहीं घुस पाया। अंग्रेज़ों की सेना जब हताश होकर बाहर भाग गई, तब महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर नरेश को विदाई दी। होल्कर नरेश ने रुँधे गले से कहा कि होल्कर भरतपुर का सदा कृतज्ञ रहेगा, हमारी यह मित्रता अमर रहेगी और इस मित्रता का चश्मदीद गवाह रहेगा, भरतपुर का ऐतिहासिक क़िला, जिसमें रक्षा करने वाले 8 भाग हैं और अनेक बुर्ज भी। इस क़िले के दोनों दरवाजों को जाट महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से लाए थे।

नामकरण

भरतपुर का ऐतिहासिक नगर महाराजा सूरजमल सिंह ने 18वीं शताब्दी में बसाया था। किवदंती हैं कि श्रीराम के छोटे भाई भरत के नाम पर इस नगर का नाम भरतपुर पड़ा, परन्तु इतिहासकारों का कहना यह है कि यहाँ की जमीन बहुत नीची थी और उस पर मिट्टी का भरत भरा गया था, इसी कारण इसका नाम भरतपुर पड़ा। क़िले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है, जिसे जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किये गए हमले और उसकी विजय के स्मारक स्वरूप सन् 1765 में बनाया गया था। दूसरे कोने पर एक बुर्ज है फतह बुर्ज, जो सन् 1805 में अंग्रेज़ी सेना के छक्के छुड़ाने और परास्त करने की यादगार है। भरतपुर नगर राजस्थान का पूर्वी सिंहद्वार कहलाता है, क्योंकि पूर्व दिशा में यहीं से राजस्थान में प्रवेश किया जाता है। राजस्थान का इतिहास जितना वैभव और गौरवशाली रहा है, उतना ही गौरवशाली माना जाता है भरतपुर का ऐतिहासिक क़िला।

संस्कृति

भरतपुर में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिसमें गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा बिहारी जी का मंदिर अत्यंत लोकप्रिय और ख्यातिप्राप्त है। शहर के बीच में एक बड़ी जामा मस्जिद भी है। ये मंदिर और मस्जिद पूर्ण रूप से लाल पत्थर के बने हैं। इन मंदिरों और मस्जिद के बारे में एक कहानी प्रचलित है। लोगों का कहना है कि भरतपुर रियासत में जब महाराजा किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखते थे तो उस व्यक्ति के साथ यह शर्त रखी जाती थी कि हर महीने उसकी तनख्वाह में से एक पैसा धर्म के खाते काट लिया जाएगा। हर नौकर को यह शर्त मंजूर थी। रियासत के हर कर्मचारी के वेतन से एक पैसा हर महीने धर्म के खाते में जमा होता था। इस धर्म के भी दो खाते थे- हिन्दू कर्मचारियों का पैसा हिन्दू धर्म के खाते में जमा होता था और मुस्लिम कर्मचारियों का पैसा इस्लाम धर्म के खाते में इकठ्ठा किया जाता था। कर्मचारियों के मासिक कटौती से इन खातों में जो भारी रकम जमा हो गई, उसका उपयोग धार्मिक प्रतिष्ठानों के उपयोग में किया गया। हिन्दुओं के धर्म खाते से लक्ष्मण मंदिर और गंगा मंदिर बनाए गए, जबकि मुसलमानों के धर्म खाते से शहर की बीचों बीच बहुत बड़ी मस्जिद का निर्माण किया गया। भरतपुर के शासकों ने हिन्दू और मुसलमानों की सहयोग और सामंजस्य की भावना को प्रश्रय दिया। धर्म निरपेक्षता के ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे। भरतपुर के मंदिर और मस्जिद पत्थर की वास्तुकला और पच्चीकारी के अद्भुत नमूने हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत में देशी रियासतें और उनका इतिहास (हिंदी) pravakta.com। अभिगमन तिथि: 1 सितम्बर, 2018।
  2. भरतपुर और अजेय दुर्ग लोहागढ़ (हिंदी) abhivyakti-hindi.org। अभिगमन तिथि: 1 सितम्बर, 2018।

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