जेजाकभुक्ति
जेजाकभुक्ति यमुना और नर्मदा नदी नदियों के बीच में स्थित है। इसे अब बुंदेलखंड कहते हैं। इस पर चंदेल राजाओं का शासन था। यह अब आंशिक रूप से उत्तर प्रदेश में तथा आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में सम्मिलित है। इसके मुख्य नगर महोबा, कालिंजर तथा खजुराहो हैं, जहाँ बहुत से सुंदर मंदिर और जलाशय वर्तमान में भी हैं। इन जलाशयों को, पहाड़ियों के बीच के मार्ग को बाँधों से अवरुद्ध करके निर्मित किया गया था।
वैदिक काल में आर्यावर्त ,पौराणिक काल में मध्य देश ,रामायण काल में दक्षिण कोसल ,बौद्ध काल में 'जेजाकभुक्ति ' या जुझार खंड जो यजुर्वेद की भूमि है ,गुप्त काल में जेजाकभुक्ति और राजपूत काल में बुन्देलखंड नाम से जाना जाता है।
बुन्देलखंड विंध्याचल पर्वत का प्रमुख भाग है, अत: उसके नामकरण में ‘विंध्य’ से विंध्येल और फिर बुन्देल की व्युत्पत्ति मानी जाती है। इसे कभी 'विंध्याचल देश' भी कहा जाता था। 'चेदि देश' , 'जेजाक भुक्ति या ' 'जुझौति' , 'दशार्ण' , 'कर्णावती', 'कालिंजर प्रदेश' 'डाहल', 'पिपलादि', 'वन्यदेश', 'चित्रकूट देश', 'युद्धदेश', मध्य प्रदेश आदि नामों से समूचा बुन्देलखंड इतिहास में जाना जाता रहा है।
बुन्देली क्षेत्र पर चेदि, मौर्य, शुंग वाकाटाक, भारशिव, नाग, गुप्त, हूण, हर्षवर्धन, कलचुरी, चन्देल, अफ़ग़ान, मुग़ल, गौड़ और बुन्देलों का शासन रहा है। सम्राट अशोक के राज्यकाल में इस क्षेत्र को 'पुलिन्द देश' के नाम से सम्बोधित किया जाता था। कालिदास की कृति रघुवंश में पुलिंद जाति का उल्लेख आया है, वह यहाँ की सत्ताधारी जाति थी। वेद, पुराण, अनेक शिलालेखों और ताम्रपत्रों में पुलिन्द नरेशों और पुलिन्द देश की स्थिति के संकेत मिलते हैं। कुछ विद्वानों का मत हैं कि यही ‘पुलिन्द’ शब्द आगे चलकर ‘बोलिन्द’ और कालान्तर में ‘बुन्देल’ हो गया। ब्राह्मी लिपि के एक भेद को बोलिन्दी कहते हैं। इस क्षेत्र के अनेक प्राचीन शिलालेख बोलिन्दी में लिपिबद्ध हैं।[1]
- ब्रिटिश विश्वकोश (एनसाइक्लापीडिया ब्रिटानिका) में बुन्देलखंड का ‘जेजाक भुक्ति’ के रूप में उल्लेख किया गया है।
- जार्ज ग्रियर्सन ने 'गजेटियर ऑफ इंडिया' के आधार पर लिखा है कि बुन्देलखंड वह भू - भाग है जो उत्तर में यमुना, उत्तर पश्चिम में चम्बल, दक्षिण में मध्यप्रांत के जबलपुर और सागर संभाग तथा दक्षिण और पूर्व में रीवा अथवा बघेलखंड के मध्य में स्थित हैं और जिसके दक्षिण तथा पूर्व में मिर्जापुर की पहाडि़या है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बुन्देली साहित्य कला आकादमी (हिन्दी) bundelisahitaykalaaacademy.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 24.10, 2010।