वक्रोक्ति अलंकार
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
जहाँ किसी वाक्य में वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाती है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
- वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद होते हैं-
- काकु वक्रोक्ति
- श्लेष वक्रोक्ति
- काकु वक्रोक्ति-
यह अलंकार वहाँ होता है, जहाँ वक्ता के कथन का कण्ठ ध्वनि के कारण श्रोता भिन्न अर्थ लगाता है।[1]
उदाहरण-
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
- श्लेष वक्रोक्ति-
जहाँ श्लेष के द्वारा वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
को तुम हौ इत आये कहां घनस्याम हौ तौ कितहूं बरसो ।
चितचोर कहावत हैं हम तौ तहां जाहुं जहां धन है सरसों ।।
इन्हें भी देखें: अलंकार, रस एवं छन्द
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी व्याकरण (हिन्दी) हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम। अभिगमन तिथि: 15, 2014।