गौरीशंकर हीराचंद ओझा
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गौरीशंकर हीराचंद ओझा (जन्म- 1863; मृत्यु- 1947) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार थे। इन्हें इतिहास, पुरातत्त्व और प्राचीन लिपियों में विशेषज्ञता प्राप्त थी। वर्ष 1937 में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' ने उन्हें 'डी.लिट' की उपाधि से सम्मानित किया था।[1]
- प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म 1863 ई. में हुआ था। उनकी शिक्षा बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में हुई थी, जहाँ उन्होंने इतिहास, पुरातत्त्व और प्राचीन लिपियों में विशेषज्ञता प्राप्त की।
- शिक्षा पूरी होने पर गौरीशंकर हीराचंद ओझा को उदयपुर, राजस्थान के 'राजकीय पुरातत्त्व विभाग' का अध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद उनका शोध कार्य प्रारंभ हुआ।
- वर्ष 1898 में प्रकाशित इनकी 'भारतीय प्राचीन लिपि माला' अपने विषय की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी गई थी।
- ओझा जी वर्ष 1908 में 'राजपूताना म्यूज़ियम' के अध्यक्ष बनाए गए और 1938 तक इस पद पर बने रहे।
- 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' ने 1937 में उन्हें 'डी.लिट' की उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया था।
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा द्वारा रचित कुछ मुख्य पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
- 'मध्यकालीन भारतीय संस्कृति'
- 'सोलंकियों का इतिहास'
- 'पृथ्वीराज विजय'
- 'कर्मचंद वंश'
- 'राजपूताना का इतिहास'
- प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के 'राजस्थान का इतिहास' का भी संपादन गौरीशंकर हीराचंद ओझा जी ने किया था।
- ओझा जी के अन्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक निबंध 'ओझा निबंध संग्रह' में प्रकाशित हैं।
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा राजस्थान के इतिहास के अधिकारी विद्वान माने जाते थे।
- इस महान इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का वर्ष 1947 में निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 257 |