रणकपुर जैन मंदिर
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रणकपुर जैन मंदिर राजस्थान में स्थित जैन धर्म के पाँच प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह स्थान ख़ूबसूरती से तराशे गए प्राचीन जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। रणकपुर मंदिर उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत के जैन मंदिरों में संभवतः इसकी इमारत सबसे भव्य तथा विशाल है।
इतिहास
इन मंदिरों का निर्माण 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा के शासनकाल में हुआ था। इन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा। यहाँ के जैन मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। केवल रणकपुर में ही नहीं बल्कि उसके आस पास की जगहों में भी अनेक प्राचीन मंदिर हैं। जैन धर्म के आस्था रखने वालों के साथ-साथ वास्तुशिल्प के दिलचस्पी रखने वालों को भी यह जगह बहुत भाती है।[1]
निर्माण काल
यह इमारत लगभग 40,000 वर्ग फीट में फैली है। संभवतः 600 वर्ष पूर्व 1446 विक्रम संवत में इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ था जो 50 वर्षों से अधिक समय तक चला। इसके निर्माण में क़रीब 99 लाख रुपए का खर्च किए गए थे। उदयपुर से रणकपुर जैन मन्दिर के लिए प्राइवेट बसें तथा टैक्सियाँ उपलब्ध रहती हैं।
प्रवेश द्वार
मंदिर में चार कलात्मक प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी चार विशाल मूर्तियाँ हैं। संभवतः 72 इंच ऊँची ये मूतियाँ चार अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं। इसी कारण इसे चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है।
स्थापत्य कला
मंदिर की प्रमुख विशेषता इसके सैकड़ों खम्भे हैं। इनकी संख्या संभवतः 1444 है। जिस तरफ भी दृष्टि जाती है छोटे-बड़े आकारों के खम्भे दिखाई देते हैं, परंतु ये खम्भे इस प्रकार बनाए गए हैं कि कहीं से भी देखने पर मुख्य पवित्र स्थल के 'दर्शन' में बाधा नहीं पहुँचती है। इन खम्भों पर सुंदर नक़्क़ाशी की गई है।
इसके अलावा मंदिर में 76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, चार बड़े प्रार्थना कक्ष तथा चार बड़े पूजन स्थल हैं। ये मनुष्य को जीवन-मृत्यु की 84 योनियों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
मंदिर के उत्तर में रायन पेड़ स्थित है। इसके अलावा संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्न भी हैं। ये भगवान ऋषभदेव तथा शत्रुंजय की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
मंदिर के निर्माताओं ने जहाँ कलात्मक दो मंजिला भवन का निर्माण किया है, वहीं भविष्य में किसी संकट का अनुमान लगाते हुए कई तहखाने भी बनाए हैं। इन तहखानों में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। ये तहखाने मंदिर के निर्माताओं की निर्माण संबंधी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं।[2]
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वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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