रामगुप्त

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  • प्राचीन काव्यग्रंथों से यह संकेत मिलता है, कि समुद्रगुप्त के बड़े लड़के का नाम रामगुप्त था, और पिता की मृत्यु के बाद शुरू में वही राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
  • वह बड़ा निर्बल, कामी तथा नपुँसक व्यक्ति था।
  • उसका विवाह ध्रुवदेवी के साथ हुआ था। पर पति के नपुँसक और निर्बल होने के कारण वह उससे संतुष्ट नहीं थी।
  • रामगुप्त की निर्बलता से लाभ उठाकर साम्राज्य के अनेक सामन्तों ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। विशेषतया, 'शाहानुशाहि कुषाण या शक' राजा, जो समुद्रगुप्त की शक्ति के कारण आत्मनिवेदन, भेंट-उपहार, कन्योपदान आदि उपायों से उसे संतुष्ट रखने का प्रयत्न करते थे। अब रामगुप्त की कमज़ोरी से लाभ उठाकर उद्दण्ड हो गए, और उन्होंने गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
  • हिमालय की उपत्यका में युद्ध हुआ, जिसमें रामगुप्त हार गया। एक पहाड़ी दुर्ग में गुप्त सेनाएँ घिर गईं, और नपुँसक रामगुप्त ने शक राज्य की सेवा में सन्धि के लिए याचना की। जो सन्धि के शर्तें शकराज की ओर से पेश की गईं, उनमें से एक यह थी, कि पट्ट-महादेवी ध्रुवदेवी को शकराज के सुपुर्द कर दिया जाए।
  • नपुँसक रामगुप्त इसके लिए भी तैयार हो गया। पर उसका छोटा भाई चंद्रगुप्त इसे सह न सका। उसने स्वयं ध्रुवदेवी का रूप धारण किया। अन्य बहुत से सैनिकों को भी परिचारिका के रूप में स्त्री-वेश पहनाया गया। शकराज के अन्तःपुर में पहुँचकर स्त्री-वेशधारी चंद्रगुप्त ने शकराज का घात कर दिया।
  • इसके बाद निर्बल रामगुप्त को भी मारकर चंद्रगुप्त ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया, और अपनी भाभी ध्रुवदेवी के साथ विवाह किया।
  • ध्रुवदेवी चंद्रगुप्त द्वितीय की पट्टमहादेवी बनी।
  • इस कथा के निर्देश न केवल प्राचीन काव्य-साहित्य में, अपितु शिलालेखों में भी उपलब्ध होते हैं।
  • प्राचीन समय में यह कथा इतनी लोकप्रिय थी, कि प्रसिद्ध कवि विशाखदत्त ने भी इसे लेकर 'देवीचंद्रगुप्तम' नाम का एक नाटक लिखा था। यह नाटक इस समय उपलब्ध नहीं होता, पर इसके उद्धरण अनेक ग्रंथों में दिए गए हैं, जिनसे इस कथा कि रूपरेखा का परिचय मिल जाता है। बाण के 'हर्षचरित' में भी इस कथा का निर्देश यह लिखकर किया गया है, कि 'दूसरी पत्नी का कामुक शकपति कामिनी-वेशधारी चंद्रगुप्त के द्वारा मारा गया।'
  • राजा अमोधवर्ष के ताम्रपात्र में भी इस कथा का निर्देश किया गया है।
  • अरब लेखकों ने भी इस कथा को लेकर पुस्तकें लिखी थीं।
  • बाद में अरबी के आधार पर फ़ारसी में भी इस कथानक को लिखा गया।
  • बारहवीं सदी में अब्दुलहसन अली नाम के एक लेखक ने इस कथा को "मलमलुतवारीख़" नामक पुस्तक में लिखा। यह पुस्तक इस समय भी उपलब्ध है।



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