अच्युतदेव राय
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
- कृष्णदेव राय ने अपने भाई अच्युतदेव राय (1529-1542 ई.) को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था।
- अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाण बतलाते हैं कि, अच्चुतदेव राय एकदम वैसा व्यक्ति नहीं था, जैसा कि नूनिज ने उसका वर्णन किया है।
- अच्युतदेव ने मदुरा के राजप्रतिनिधि को दण्ड दिया तथा तिरूवांकुर के राजा को (जिसने मदुरा के राजप्रतिनिधि को शरण दी थी) अधीन कर लिया था।
- उसने अपने शासन काल में बीजापुर के शासक 'इस्माइल आदिल ख़ान' से रायचूर एवं मुद्गल के क़िले को छीन लिया।
- अच्युतदेव राय ने गजपति शासक के आक्रमण को असफल किया और साथ ही 1530 ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान को पराजित किया।
- अच्युतदेव राय के समय महामण्डलेश्वर नामक एक नवीन अधिकारी की नियुक्ति की गई।
- 1542 ई. में उसकी मृत्यु के बाद अच्युत के साले 'सलकराज तिरुमल' ने अच्युत के अल्पायु पुत्र 'वेंकट प्रथम' को सिंहासन पर बैठाया।
- उसका शासन काल मात्र 6 महीने तक रहा।
- इसके बाद विजयनगर साम्राज्य की सत्ता अच्युत के भतीजे सदाशिव राय के हाथों में आ गई।
|
|
|
|
|