केशव , कहि न जाइ, का कहिये। देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये। शून्य भीति पर चित्र, रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे। धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे। रविकर नीर बसै अति दारुन, मकर रुप तेहि माहीं। बदन हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं। कोउ कह सत्य, झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै। तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम, सो आपुन पहिचानै।