वक्रोक्ति अलंकार

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जहाँ किसी वाक्य में वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाती है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।

  • वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद होते हैं-
  1. काकु वक्रोक्ति
  2. श्लेष वक्रोक्ति
काकु वक्रोक्ति-

यह अलंकार वहाँ होता है, जहाँ वक्ता के कथन का कण्ठ ध्वनि के कारण श्रोता भिन्न अर्थ लगाता है।[1]

उदाहरण-

मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।

श्लेष वक्रोक्ति-

जहाँ श्लेष के द्वारा वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण-

को तुम हौ इत आये कहां घनस्याम हौ तौ कितहूं बरसो ।
चितचोर कहावत हैं हम तौ तहां जाहुं जहां धन है सरसों ।।


इन्हें भी देखें: अलंकार, रस एवं छन्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी व्याकरण (हिन्दी) हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम। अभिगमन तिथि: 15, 2014।

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