राजेन्द्र प्रथम

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  • चोलमण्डल का सबसे प्रतापी राजा राजेन्द्र प्रथम था, और उसके शासन काल में चोल राज्य उन्नति की चरम सीमा पर पहुँच गया था।
  • उसके सिंहलद्वीप पर आक्रमण कर उसे अविकल रूप से अपने अधीन कर लिया, और सम्पूर्ण सिंहल को चोल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।
  • पाड्य और केरल राज्यों पर उसने चोलों के आधिपत्य को और अधिक दृढ़ किया, और उनका शासन करने के लिए अपने पुत्र जटावर्मा को नियत किया।
  • इस प्रकार सुदूर दक्षिण के सब प्रदेशों को पूर्ण रूप से अपने शासन में लाकर राजेन्द्र ने दक्षिणापथ की ओर दृष्टि फेरी, और कल्याणी के चालुक्यों के साथ युद्ध शुरू किए। कल्याणी के राजसिंहासन पर इस समय जयसिंह जगदेकमल्ल आरूढ़ था। उसे अनेक बाद चोल सेनाओं के द्वारा परास्त होना पड़ा।
  • वेंगि के चालुक्य राजा इस समय चोलों के निकट सम्बन्धी व परम सहायक थे, अतः उनके साथ युद्ध करने की राजेन्द्र को कोई आवश्यकता नहीं हुई। वे चोल सम्राट को अपना अधिपति स्वीकार करते थे।
  • दक्षिणापथ में चालुक्य राजा जयसिंह को परास्त करने के बाद राजेन्द्र ने उत्तरी भारत पर हमला किया, और विजय यात्रा करते-करते गंगा नदी के तट पर पहुँच गया।
  • उत्तरी भारत की विजय यात्रा में जिन राज्यों को राजेन्द्र ने आक्रान्त किया, उनमें कलिंग, दक्षिण कोशल, दण्डभुक्ति (बालासोर और मिदनापुर) राढ, पूर्वी बंगाल और गौढ़ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
  • उत्तर-पूर्वी भारत में इस समय पालवंशी राजा महीपाल का शासन था। राजेन्द्र ने उसे पराजित किया, और गंगा के तट पर पहुँचकर 'गगैकोंण्ड' की उपाधि धारण की।
  • उत्तरी भारत में स्थायी रूप से शासन करने का प्रयास राजेन्द्र ने नहीं किया।
  • अपने साम्राज्य का विस्तार कर चोलराज्य ने समुद्र पार भी अनेक आक्रमण किए, और पेगू (बरमा) के राज्य को जीत लिया।
  • निःसन्देह, राजेन्द्र प्रथम अनुपम वीर और विजेता था। उसकी शक्ति केवल स्थम में ही प्रकट नहीं हुई, नौ-सेना द्वारा उसने समुद्र पार भी विजय यात्राएँ कीं।
  • 'गंगौकोण्डचोलपुरम्' नामक नगरी की स्थापना कर राजेन्द्र ने उसे अपनी राजधानी बनाया, और उसे अनेक मन्दिरों व एक विशाल सरोवर से विभूषित किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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