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श्रीकृष्ण कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर वंशीध्वनि की। वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को [[वंशी]] बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं। वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये। आज भी वे चरण-चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं। पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये, जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण-चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं। [[लुकलुकी कुण्ड काम्यवन|लुकलुकी कुण्ड]] में जलक्रीड़ा हुई थी। इसलिए इसे 'जलक्रीड़ा कुण्ड' भी कहते हैं। | श्रीकृष्ण कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर वंशीध्वनि की। वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को [[वंशी]] बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं। वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये। आज भी वे चरण-चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं। पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये, जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण-चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं। [[लुकलुकी कुण्ड काम्यवन|लुकलुकी कुण्ड]] में जलक्रीड़ा हुई थी। इसलिए इसे 'जलक्रीड़ा कुण्ड' भी कहते हैं। | ||
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06:39, 24 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
चरण पहाड़ी, काम्यवन
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विवरण | चरण पहाड़ी ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध काम्यवन में स्थित है। इस पहाड़ी का सम्बंध भगवान श्रीकृष्ण से बताया जाता है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
बस, कार, ऑटो आदि | |
संबंधित लेख | काम्यवन, वृन्दावन, निधिवन, गोवर्धन, राधाकुण्ड गोवर्धन, ललिता कुण्ड काम्यवन
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अद्यतन | 12:09, 24 जुलाई 2016 (IST)
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चरण पहाड़ी ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध काम्यवन में स्थित है। इस पहाड़ी का सम्बंध भगवान श्रीकृष्ण से बताया जाता है।
गोचारण करते समय कभी श्रीकृष्ण अपने सखाओं को खेलते हुए छोड़कर कुछ समय के लिए एकान्त में इस परम रमणीय स्थान पर गोपियों से मिले। वे उन ब्रज-रमणियों के साथ यहाँ पर लुका-छिपी की क्रीड़ा करने लगे। सब गोपियों ने अपनी-अपनी आँखें मूँद लीं और कृष्ण निकट ही पर्वत की एक कन्दरा में प्रवेश कर गये। सखियाँ चारों ओर खोजने लगीं, किन्तु कृष्ण को ढूँढ़ नहीं सकीं। वे बहुत ही चिन्तित हुई कि कृष्ण हमें छोड़कर कहाँ चले गये? वे कृष्ण का ध्यान करने लगीं, जहाँ पर वे बैठकर ध्यान कर रही थीं, वह स्थल 'ध्यान कुण्ड' है। जिस कन्दरा में कृष्ण छिपे थे, उसे 'लुकलुक कन्दरा' कहते हैं।
श्रीकृष्ण कन्दरा में प्रवेशकर पहाड़ी के ऊपर प्रकट हुए और वहीं से उन्होंने मधुर वंशीध्वनि की। वंशीध्वनि सुनकर सखियों का ध्यान टूट गया और उन्होंने पहाड़ी के ऊपर प्रियतम को वंशी बजाते हुए देखा। वे दौड़कर वहाँ पर पहुँची और बड़ी आतुरता के साथ कृष्ण से मिलीं। वंशीध्वनि से पर्वत पिघल जाने के कारण उसमें श्रीकृष्ण के चरण चिह्न उभर आये। आज भी वे चरण-चिह्न स्पष्ट रूप में दर्शनीय हैं। पास में उसी पहाड़ी पर जहाँ बछडे़ चर रहे थे और सखा खेल रहे थे, उसके पत्थर भी पिघल गये, जिस पर उन बछड़ों और सखाओं के चरण-चिह्न अंकित हो गये, जो पाँच हज़ार वर्ष बाद आज भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं। लुकलुकी कुण्ड में जलक्रीड़ा हुई थी। इसलिए इसे 'जलक्रीड़ा कुण्ड' भी कहते हैं।
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