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ज्वालाप्रसाद

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ज्वालाप्रसाद (जन्म- 1872, बिजनौर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 16 सितम्बर, 1944) प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर तथा वर्ष 1936 में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' के प्रत्युकुलपति थे। प्रथम और द्वितीय 'दिल्ली दरबार' की तैयारियों में भी इन्होंने कार्य किया था। विश्विविद्यालय के भवनों पर भारतीय स्थापत्य का जो प्रभाव आज दृष्टिगत होता है, वह सब इन्हीं की सूझबूझ का परिणाम है। काशी के मणिकार्णिका घाट तथा हरिश्चंद्र घाट के सुधार में इनका महत्वपूर्ण योगदान था।

जन्म तथा शिक्षा

ज्वालाप्रसाद जी का जन्म 1872 ई. में उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के मंडवार कस्बे में हुआ था। इन्होंने 'टॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज', रुड़की से अपनी इंजीनियरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी और सर्वप्रथम रहे। सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करने के कारण इन्हें 'कौंसिल ऑफ़ इंडिया' तथा 'टॉमसन पुरस्कार' और गणित में प्रथम होने के कारण 'काटेल स्वर्ण पदक' प्राप्त हुआ था।[1]

कार्यपालक इंजीनियर

जब देश में प्रथम और द्वितीय 'दिल्ली दरबार' आयोजित हुए, तब उनकी तैयारियों में भी ज्वालाप्रसाद जी ने कार्य किया। कुछ दिनों तक आपने पटियाला राज्य में कार्यपालक इंजीनियर के पद पर कार्य किया। यहाँ पर आप 'आर्य समाज सभा' के अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे।

गिरफ़्तारी

ज्वालाप्रसाद 10 अक्टूबर, 1909 ई. को पटियाला में राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार कर लिए गए और इन्हें पटियाला छोड़ने की आज्ञा दी गई। पर बाद में इन्हें निर्दोष घोषित किया गया और उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें फतेहपुर का कार्यपालक इंजीनियर नियुक्त किया।[1]

विशेष योगदान

'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' के भवनों के निर्माण के लिये सन 1916 ई. में ज्वालाप्रसाद की सेवाएँ प्रतिनियुक्ति (डेप्युटेशन) पर माँग कर ली गई थीं। आज विश्विविद्यालय के भवनों पर भारतीय स्थापत्य का जो प्रभाव दृष्टिगत होता है, वह सब इन्हीं की सूझबूझ का परिणाम है। 1924 ई. में इन्होंने जलविद्यत एवं नलकूप योजनाएँ बनाई थीं, जिन्हें अंग्रेज़ी सरकार द्वारा स्वीकृत कर कर लिया गया था। 'शारदा नहर योजना' में भी इन्होंने योगदान दिया। आपने ही काली नदी तथा रामगंगा से जलविद्युत द्वारा पानी चढ़ाने का विचार विकसित किया था।

राजा की उपाधि

ज्वालाप्रसाद जी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य इंजीनियर तथा सिंचाई विभाग के सहसचिव पद पद छह वर्षों तक कार्य किया था। इसके पश्चात 1931 ई. में आप सरकारी सेवा से निवृत्त हुए। सरकार ने सन 1932 में इन्हें 'राजा' की उपाधि से विभूषित किया। इसके बाद इन्होंने अपना बहुत समय कृषि के कार्य और चीनी उद्योग में लगाया।

धर्मपुर नगरी की स्थापना

गंगा और मालिनी नदी के संगम पर धर्मपुर नगरी की स्थापना की और उसे सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूर्ण बनाया। अनेक प्रकार के उन्नत बीज इन्होंने तैयार किए। 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' के अर्थसचिव और प्रत्युपकुलपति पद पर रहकर इन्होंने इसकी चिरस्मरणीय सेवाएँ की थीं। काशी के मणिकार्णिका घाट तथा हरिश्चंद्र घाट के सुधार में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। उत्तर प्रदेश के अनेक सार्वजनिक भवनों के निर्माण में इनका हाथ था।[1]

निधन

भारत तथा भारतवासियों की सेवा करने वाले इस निष्ठावान व्यक्तित्व का 16 सितम्बर, 1944 ई. को देहावसान हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 ज्वालाप्रसाद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 अप्रैल, 2014।

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