"कुलपर्वत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''कुलपर्वत''' [[भारत]] के प्रमुख पर्वत कहे गए हैं। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार इनकी संख्या सात है। '[[वायुपुराण]]' में '[[मलयगिरी शिखर|मलय]]', '[[महेंद्र पर्वत|महेंद्र]]', 'सह्य', 'शुक्तिमान', 'ऋक्ष', '[[विंध्य पर्वत|विंध्य]]' तथा 'पारिपात्र' (अथवा पारियात्र) पर्वतों को कुलपर्वतों के अंतर्गत गिना गया है।
+
'''कुलपर्वत''' [[भारत]] के प्रमुख पर्वत कहे गए हैं। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार इनकी संख्या सात है। '[[वायुपुराण]]' में '[[मलयगिरी शिखर|मलय]]', '[[महेंद्र पर्वत|महेंद्र]]', 'सह्य', '[[शुक्तिमान]]', 'ऋक्ष', '[[विंध्य पर्वत|विंध्य]]' तथा 'पारिपात्र' (अथवा पारियात्र) पर्वतों को कुलपर्वतों के अंतर्गत गिना गया है।
  
 
#[[महेंद्र पर्वत|महेंद्र]] - [[उड़ीसा]] से लेकर [[मदुरै|मदुरै ज़िले]] तक प्रसृत पर्वत श्रृंखला। इसमें [[पूर्वी घाट पर्वत|पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ]] तथा [[गोंडवाना]] तक फैली पर्वत श्रृंखलाएँ भी सम्मिलित हैं। [[गंजाम]] के समीप पहाड़ के एक भाग को अब भी 'महेंद्रमलै' कहते हैं। '[[हर्षचरित]]' के अनुसार महेंद्र पर्वत दक्षिण में [[मलय]] से मिलता है। [[परशुराम]] ने यहीं आकर तपस्या की थी। '[[रामायण]]' के अनुसार महेंद्र पर्वत का विस्तार और भी दक्षिण तक प्रतीत होता है। [[कालिदास]] के '[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]' तथा [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के 'नैषधचरित'<ref>12|24 </ref> में इसे [[कलिंग]] में रखा गया है। जो पर्वत गंजाम को [[महानदी]] से अलग कर देता है, उसे आजकल महेंद्र कहते हैं।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4|title= कुलपर्वत|accessmonthday=30 मई|accessyear= 2014|last= पांडे|first= चंद्रभान|authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
#[[महेंद्र पर्वत|महेंद्र]] - [[उड़ीसा]] से लेकर [[मदुरै|मदुरै ज़िले]] तक प्रसृत पर्वत श्रृंखला। इसमें [[पूर्वी घाट पर्वत|पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ]] तथा [[गोंडवाना]] तक फैली पर्वत श्रृंखलाएँ भी सम्मिलित हैं। [[गंजाम]] के समीप पहाड़ के एक भाग को अब भी 'महेंद्रमलै' कहते हैं। '[[हर्षचरित]]' के अनुसार महेंद्र पर्वत दक्षिण में [[मलय]] से मिलता है। [[परशुराम]] ने यहीं आकर तपस्या की थी। '[[रामायण]]' के अनुसार महेंद्र पर्वत का विस्तार और भी दक्षिण तक प्रतीत होता है। [[कालिदास]] के '[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]' तथा [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के 'नैषधचरित'<ref>12|24 </ref> में इसे [[कलिंग]] में रखा गया है। जो पर्वत गंजाम को [[महानदी]] से अलग कर देता है, उसे आजकल महेंद्र कहते हैं।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A4|title= कुलपर्वत|accessmonthday=30 मई|accessyear= 2014|last= पांडे|first= चंद्रभान|authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
#शुक्तिमान - विंध्यमेखला का वह भाग, जो एक ओर पारिपात्र से तथा दूसरी ओर ऋक्षपर्वत से मिलता है, जिसमें गोंडवाना की पहाड़ियाँ भी सम्मिलित हैं।<ref>[[कूर्मपुराण]], अ. 47</ref>
 
#शुक्तिमान - विंध्यमेखला का वह भाग, जो एक ओर पारिपात्र से तथा दूसरी ओर ऋक्षपर्वत से मिलता है, जिसमें गोंडवाना की पहाड़ियाँ भी सम्मिलित हैं।<ref>[[कूर्मपुराण]], अ. 47</ref>
 
#ऋक्षपर्वत - विंध्यमेखला का पूर्वी भाग, जो [[बंगाल की खाड़ी]] से लेकर शोण नद ([[सोन नदी]]) के उद्गम तक फैला हुआ है।<ref>[[ब्रह्मांडपुराण]], अध्याय 48</ref> इस पर्वत श्रृंखला में शोणनद के दक्षिण [[छोटा नागपुर]] तथा [[गोंडवाना]] की भी पहाड़ियाँ संमिलित हैं। [[महानदी]]<ref>[[शांतिपर्व महाभारत]], अध्याय 52</ref>, रेवा तथा शुक्तिमती नदियाँ इसी पर्वत से निकलती हैं।<ref>[[स्कंदपुराण]], रेवा खंड, अ. 4</ref>
 
#ऋक्षपर्वत - विंध्यमेखला का पूर्वी भाग, जो [[बंगाल की खाड़ी]] से लेकर शोण नद ([[सोन नदी]]) के उद्गम तक फैला हुआ है।<ref>[[ब्रह्मांडपुराण]], अध्याय 48</ref> इस पर्वत श्रृंखला में शोणनद के दक्षिण [[छोटा नागपुर]] तथा [[गोंडवाना]] की भी पहाड़ियाँ संमिलित हैं। [[महानदी]]<ref>[[शांतिपर्व महाभारत]], अध्याय 52</ref>, रेवा तथा शुक्तिमती नदियाँ इसी पर्वत से निकलती हैं।<ref>[[स्कंदपुराण]], रेवा खंड, अ. 4</ref>
#[[विंध्य पर्वत|विंध्य]] - पश्चिम से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैली पर्वत श्रृंखला। किंतु इसके कई भागों के शुक्तिमान; ऋक्ष पर्वत आदि स्वतंत्र नाम हैं। पारियात्र भी इसी के अंतर्गत है। अत: सीमित अर्थ में विंध्य [[उत्तर प्रदेश]] के [[मिर्जापुर ज़िला|मिर्जापुर ज़िले]] से लेकर [[सोन नदी]] और [[नर्मदा नदी]] के उद्गमों के उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला तक को कहते हैं। [[चित्रकूट]] इसी विंध्यमेखला के अंतर्गत है।
+
#[[विंध्य पर्वत|विंध्य]] - पश्चिम से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] तक फैली पर्वत श्रृंखला। किंतु इसके कई भागों के [[शुक्तिमान]], ऋक्ष पर्वत आदि स्वतंत्र नाम हैं। पारियात्र भी इसी के अंतर्गत है। अत: सीमित अर्थ में विंध्य [[उत्तर प्रदेश]] के [[मिर्जापुर ज़िला|मिर्जापुर ज़िले]] से लेकर [[सोन नदी]] और [[नर्मदा नदी]] के उद्गमों के उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला तक को कहते हैं। [[चित्रकूट]] इसी विंध्यमेखला के अंतर्गत है।
 
#पारियात्र - विंध्यमेखला का पश्चिमी भाग, जिससे 'चर्मण्वती' ([[चंबल नदी]]) तथा 'वेत्रवती' ([[बेतवा नदी]]) निकली हैं। इसमें अर्थली तथा पाथर पर्वत श्रृंखला भी संमिलित हैं। इसकी मालाएँ [[सौराष्ट्र]] और [[मालवा]] तक फैली हुई हैं।
 
#पारियात्र - विंध्यमेखला का पश्चिमी भाग, जिससे 'चर्मण्वती' ([[चंबल नदी]]) तथा 'वेत्रवती' ([[बेतवा नदी]]) निकली हैं। इसमें अर्थली तथा पाथर पर्वत श्रृंखला भी संमिलित हैं। इसकी मालाएँ [[सौराष्ट्र]] और [[मालवा]] तक फैली हुई हैं।
  

09:16, 25 अगस्त 2014 का अवतरण

कुलपर्वत भारत के प्रमुख पर्वत कहे गए हैं। पुराणों के अनुसार इनकी संख्या सात है। 'वायुपुराण' में 'मलय', 'महेंद्र', 'सह्य', 'शुक्तिमान', 'ऋक्ष', 'विंध्य' तथा 'पारिपात्र' (अथवा पारियात्र) पर्वतों को कुलपर्वतों के अंतर्गत गिना गया है।

  1. महेंद्र - उड़ीसा से लेकर मदुरै ज़िले तक प्रसृत पर्वत श्रृंखला। इसमें पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ तथा गोंडवाना तक फैली पर्वत श्रृंखलाएँ भी सम्मिलित हैं। गंजाम के समीप पहाड़ के एक भाग को अब भी 'महेंद्रमलै' कहते हैं। 'हर्षचरित' के अनुसार महेंद्र पर्वत दक्षिण में मलय से मिलता है। परशुराम ने यहीं आकर तपस्या की थी। 'रामायण' के अनुसार महेंद्र पर्वत का विस्तार और भी दक्षिण तक प्रतीत होता है। कालिदास के 'रघुवंश' तथा हर्ष के 'नैषधचरित'[1] में इसे कलिंग में रखा गया है। जो पर्वत गंजाम को महानदी से अलग कर देता है, उसे आजकल महेंद्र कहते हैं।[2]
  2. मलय - पश्चिमी घाट का दक्षिणी छोर, जो कावेरी के दक्षिण में पड़ता है।[3] ऋषि अगस्त्य का आश्रम यहीं बताया जाता है। आजकल इसको 'तिरूवांकुर की पहाड़ी' कहते हैं।
  3. सह्य - पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला का उत्तरी भाग। कृष्णा तथा कावेरी नदियाँ इसी से निकलती हैं।
  4. शुक्तिमान - विंध्यमेखला का वह भाग, जो एक ओर पारिपात्र से तथा दूसरी ओर ऋक्षपर्वत से मिलता है, जिसमें गोंडवाना की पहाड़ियाँ भी सम्मिलित हैं।[4]
  5. ऋक्षपर्वत - विंध्यमेखला का पूर्वी भाग, जो बंगाल की खाड़ी से लेकर शोण नद (सोन नदी) के उद्गम तक फैला हुआ है।[5] इस पर्वत श्रृंखला में शोणनद के दक्षिण छोटा नागपुर तथा गोंडवाना की भी पहाड़ियाँ संमिलित हैं। महानदी[6], रेवा तथा शुक्तिमती नदियाँ इसी पर्वत से निकलती हैं।[7]
  6. विंध्य - पश्चिम से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैली पर्वत श्रृंखला। किंतु इसके कई भागों के शुक्तिमान, ऋक्ष पर्वत आदि स्वतंत्र नाम हैं। पारियात्र भी इसी के अंतर्गत है। अत: सीमित अर्थ में विंध्य उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर ज़िले से लेकर सोन नदी और नर्मदा नदी के उद्गमों के उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला तक को कहते हैं। चित्रकूट इसी विंध्यमेखला के अंतर्गत है।
  7. पारियात्र - विंध्यमेखला का पश्चिमी भाग, जिससे 'चर्मण्वती' (चंबल नदी) तथा 'वेत्रवती' (बेतवा नदी) निकली हैं। इसमें अर्थली तथा पाथर पर्वत श्रृंखला भी संमिलित हैं। इसकी मालाएँ सौराष्ट्र और मालवा तक फैली हुई हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 12|24
  2. पांडे, चंद्रभान। कुलपर्वत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 मई, 2014।
  3. भवभूति, महावीरचरित, 5, 3
  4. कूर्मपुराण, अ. 47
  5. ब्रह्मांडपुराण, अध्याय 48
  6. शांतिपर्व महाभारत, अध्याय 52
  7. स्कंदपुराण, रेवा खंड, अ. 4

संबंधित लेख