मालवा पठार

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माण्डू पहाड़, मालवा पठार

मालवा पठार, उत्तर मध्य भारत, पश्चिम में गुजरात के मैदान दक्षिण और पूर्व में विंध्य श्रेणी, उत्तर में मध्य भारत पठार और बुंदेलखंड उच्च भूमि से घिरा है। ज्वालामुखीय उत्पत्ति वाला यह पठार मध्यवर्ती मध्य प्रदेश और दक्षिण पूर्वी राजस्थान का हिस्सा है। मालवा नाम की उत्पत्ति संस्कृत के मालव शब्द से हुई है, जिसका अर्थ देवी लक्ष्मी के निवास का हिस्सा है। इसका निर्माण मुख्यत: ग्रेनाइट तथा नीस से हुआ है। मालवा पठार विच्छेदित लावा पठार का एक उदाहरण है। यह मिट्टी के एक प्रकार 'काली मिट्टी' से ढका हुआ है।

इतिहास

मालवा पठार पर क्रमशः मौर्य, गुप्त और परमार वंशों का शासन रहा। अपने वास्तुशिल्प और मूर्तिशिल्प के लिए प्रसिद्ध कई बौद्ध मंदिरों और स्मारकों (उदाहरण के लिए साँची का स्तूप) का निर्माण यहाँ हुआ। 1390 में मुसलमानों ने इसे जीता और बाद में यह मराठा साम्राज्य का अंग बना। इसके बाद 1817 में इस पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

भौगोलिक स्थिति

मालवा पठार की ऊँचाई 500 मीटर से 610 मीटर के बीच है। अपरदन के कारण लावा निर्मित चट्टानें विलग पहाड़ियों में परिवर्तित हो गई हैं, जो समूचे पठार में पायी जाती हैं। कहीं-कहीं इनके साथ बलुआ पत्थर की पहाड़ियाँ भी हैं। इस क्षेत्र का पश्चिमी हिस्सा माही नदी, मध्यवर्ती हिस्सा चंबल नदी, पूर्वी हिस्सा बेतवा नदी और धसान नदीकेन नदियों के उदगम खंड से अपवाहित होता है। अन्य नदियों में पारबती, क्षिप्रा, चंबल, गंभीर और छोटी काली सिंध शामिल हैं, जिनकी घाटियाँ सीढ़ीदार ढलानों से घिरी हैं। यहाँ की वनस्पति सवाना जैसी है, जिसके बीच-बीच में बिखरे हुए सागौन और साल के वन हैं।

कृषि

इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर निर्भर है। अनाज, दलहन, तिलहन कपास यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं। यहाँ मुख्य रूप से सूती वस्त्र, ओटाई किए हुए कपास, चीनी, वनस्पति तेल, लकड़ी और काग़ज़ का उत्पादन होता है। चंबल घाटी विकास परियोजना से सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन के लिए पानी मिलता है।

उद्योग

रतलाम में चीनी मिट्टी के सामान बनाने के कारख़ाने हैं। भोपाल और उज्जैन में इंजीनियरिंग उद्योग और इंदौर में ढलाईख़ाना (फ़ाउंड्री) है।

परिवहन

इस क्षेत्र से होकर कई मुख्य सड़कें गुज़रती हैं। इंदौर और भोपाल में हवाई अड्डे हैं।


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