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==सम्मान व पुरस्कार== | ==सम्मान व पुरस्कार== | ||
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06:49, 21 अप्रैल 2024 के समय का अवतरण
केसरबाई केरकर
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पूरा नाम | केसरबाई केरकर |
जन्म | 13 जुलाई, 1892 |
जन्म भूमि | केरी गाँव, तालुका पोंडा, गोवा |
मृत्यु | 16 सितम्बर, 1977 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार, 1935 पद्म भूषण, 1969 |
प्रसिद्धि | शास्त्रीय गायिका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | केसरबाई केरकर ने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कई आयाम स्थापित किए। आगे चलकर किशोरी अमोनकर, गंगुबाई हंगल और हीराबाई बरोडकर ने उनकी गायन शैली को आगे बढ़ाया। |
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परिचय
पुर्तगालियों के अधीन गोवा के केरी गाँव में केसरबाई केरकर का जन्म 13 जुलाई, सन 1892 को हुआ। उन्हें आधुनिक शैली के संस्थापक कलाकारों में से एक माना जाता है। गोवा के छोटे से ताल्लुका पोंडा के गांव केरी से निकलकर केसरबाई केरकर अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आ गई थीं। यहां से ही उन्होंने उस्ताद करीम ख़ान की शार्गिदी में सुरों को पहचाना और उनकी बारीकियों पर अपनी पकड़ बनानी शुरू की। कुछ समय बाद वो वापस अपने गृहनगर में स्थित लामगांव वापस गईं और गायक रामाकृष्णाबुवा वाजे से संगीत की आगे की शिक्षा ली।[1]
आगे की शिक्षा
ये वो दौर था, जब भारत के दूर-दराज से लोग बॉम्बे प्रजीडेंसी पहुंचते थे। उस वक्त बॉम्बे एक व्यापारिक केंद्र के रूप में खुद को स्थापित भी कर चुका था। यहां पर सुविधाएं भी थीं और अपनी कला को दूसरों तक पहुंचाने का ये एक अहम जरिया भी था। 16 वर्ष की उम्र में केसरबाई केरकर अपने अंकल और मां के साथ दोबारा बॉम्बे वापस आईं। उनके गायन शैली से प्रभावित होकर बॉम्बे के एक स्थानीय व्यापारी सेठ विठ्ठलदास द्वारकादास ने उनकी आगे पढ़ाई में मदद की। इस मदद से उन्होंने उस्ताद बरकतुल्लाह ख़ान से आगे की शिक्षा हासिल की। उन्होंने ख़ान से गायन की दूसरी बारीकियां भी सीखीं। बरकतुल्लाह पटियाला रियासत के बड़े संगीतकार थे और सितारवादक भी थे।
प्रोफेशनल शुरुआत
बरकतुल्लाह ख़ान ने लगातार दो वर्ष तक केसरबाई केरकर को संगीत के विभिन्न आयाम सिखाए। इसके बाद उनके गुरू मैसूर रियासत के सबसे बड़े सगीतज्ञ बन गए थे। केसरबाई ने भास्करबुवा बाखले से भी संगीत की शिक्षा हासिल की थी। केसरबाई ने करीब 11 वर्षों तक उस्ताद अल्लादिया ख़ान से भी संगीत की शिक्षा हासिल की। ये उस दौर के सबसे बड़े उस्तादों में से एक थे और जयपुर अतरौली घराने के संस्थापक भी थे। सन 1930 में केसरबाई केरकर ने प्रोफेशनल सिंगर के तौर पर शुरुआत की। वे बतौर शार्गिद 1946 तक उस्ताद अल्लादिया से जुड़ी रहीं। सन 1946 में उस्ताद का निधन हो गया।
कई आयाम स्थापित किए
केसरबाई केरकर ने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कई आयाम स्थापित किए। आगे चलकर किशोरी अमोनकर, गंगुबाई हंगल और हीराबाई बरोडकर ने उनकी गायन शैली को आगे बढ़ाया। केसरबाई केरकर ने उस वक्त विश्व विख्यात एचएमवी के लिए रिकॉर्डिंग दी। उन्होंने खुद ख़्याल गायिका के तौर पर स्थापित किया।[1]
नासा के 'द साउंड्स ऑफ़ अर्थ' में केसरबाई की आवाज़
भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक अलग पहचान दिलाने के कारण ही साल 1977 में नासा की तरफ से भेजे गये वोयाजर 1 अंतरिक्ष यान में 12 इंच की सोने की परत चढ़ी तांबे की डिस्क है, जिसमें बीथोवेन से लेकर बाख से लेकर मोजार्ट तक के गाने हैं, जिसे विश्व सांस्कृतिक विविधता की झलक मिलती है। इन गानों को अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल सागन के जरीए काफी गहनता के साथ चुना गया है। जिसे 'द साउंड्स ऑफ़ अर्थ' एल्बम का नाम दिया गया है। जिसमें भारतीय आवाज़ के तौर पर हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में हिंदुस्तानी गायिका सुरश्री केसरबाई केरकर की आवाज़ भी है।
सम्मान व पुरस्कार
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार, 1935
- पद्म भूषण, 1969
- गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 'सुरश्री' की उपाधि
मृत्यु
केसरबाई केरकर का 16 सितंबर, 1977 को देहांत हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 अंतरिक्ष में आज भी मौजूद है केसरबाई की आवाज, गुरुदेव ने उन्हें दी थी सुरश्री की उपाधि (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 27 मार्च, 2024।
बाहरी कड़ियाँ
- Kesarbai Kerkar: Legendary Classical Singer Whose Voice Went Interstellar
- Birthday of Kesarbai Kerkar
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