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'''कैबिनेट मिशन''' [[एटली]] मंत्रिमण्डल द्वारा [[1946]] ई. में [[भारत]] भेजा गया था। इसका उद्देश्य भारतीय नेताओं से मिलकर उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना था कि, सरकार संवैधानिक मामलें पर शीघ्र ही समझौता करने को उत्सुक है। लेकिन ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजनैतिक नेताओं के बीच निर्णायक चरण मार्च, 1946 में आया, जब मंत्रिमण्डल के तीन सदस्य लार्ड पैथिक लारेंस, सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स और श्री ए.वी. अलेक्ज़ेण्डर [[भारत]] आए।
*लॉर्ड पैथिक लॉरेन्स प्रतिनिधि मण्डल के अध्यक्ष तथा सर स्टेफ़र्ड क्रिप्स और श्री ए.बी. अलेक्ज़ेन्डर इसके सदस्य थे।
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==कांग्रेस द्वारा विभाजन का विरोध==
*इस प्रतिनिधिमण्डल ने, जो कि अप्रैल में भारत आया था, [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] तथा [[मुस्लिम लीग]] में संवैधानिक प्रश्नों पर पहले समझौता कराने का प्रयास किया।
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एटली द्वारा भेजे गए इस मंत्रिमण्डल से [[कांग्रेस]] की ओर से बातचीत [[अबुल कलाम आज़ाद]] ने की। इस काम में [[जवाहर लाल नेहरू]] और [[वल्लभ भाई पटेल]] ने उनकी सहायता की। [[महात्मा गांधी]] से ये लोग सलाह लेते रहते थे। लेकिन इस मूल प्रश्न पर बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया कि [[भारत]] की एकता बनी रहेगी अथवा [[मुस्लिम लीग]] की [[पाकिस्तान]] की माँग को पूरा करने के लिए देश का विभाजन होगा। कांग्रेस विभाजन का विरोध कर रही थी और विभि़न्न प्रांतों को जितनी भी अधिक-से-अधिक आर्थिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय स्वायत्तता दे सकना संभव था, देने को तैयार थी। [[शिमला]] में आयोजित एक सम्मेलन में कांग्रेस और लीग के मतभेद दूर नहीं हो सके।
*समझौता प्रयासों के विफल होने पर प्रतिनिधिमण्डल ने भारत की संवैधानिक प्रगति के लिए स्वयं अपने प्रस्ताव प्रस्तुत किए।
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==मिशन की समझौता योजना==
*उनके द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव इस प्रकार थे-<br />
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कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मतभेद दूर न होने से कैबिनेट मिशन ने [[16 मई]], [[1946]] को अपनी समझौता योजना एक वक्तव्य में पेश की। उन्होंने भारत के लिए तीन स्तरीय संवैधानिक ढांचे की रूपरेखा प्रस्तुत की, जो इस प्रकार थी-<br />
#ब्रिटिश भारतीय प्रान्त के संघ की स्थापना, जिसे प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार व्यवस्था के नियंत्रण का अधिकार होगा।
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*संविधान संघ के ढंग का होगा, जिसमें रियासतें भी सम्मिलित होंगीं।
#समझौता वार्ता के बाद भारतीय संघ में देशी रियासतों का प्रवेश।
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*संघ सरकार पर केवल विदेशी मामले, सुरक्षा और यातायात संभालने का भार होगा।
#प्रान्तों द्वारा अपनी इच्छानुसार अपने अधीनस्थ संघों का निर्माण, जिन्हें इस निर्णय का अधिकार होगा कि, संघीय विषयों के अतिरिक्त अन्य कौन-कौन विषय उनके अधीन होंगे।
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*नीचे के स्तर पर प्रांत और रियासतें होंगी और सारे विशिष्ट अधिकार इन्हीं को मिलेंगे।
#उपर्युक्त तीन प्रावधानों के अनुसार संविधान सभा का गठन, जिसमें [[भारत]] का सर्वमान्य संविधान बनाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा।
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*बीच के स्तर पर प्रांतों द्वारा स्वेच्छा से बनाये ऐसे समूह होंगे, जो समान विषयों पर विचार करेंगे।
#इस बीच, भारतीय प्रशासन को चलाने के लिए अन्तरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन।
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==मिशन की असफलता==
*अन्तरिम सरकार में विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सीटों के बंटवारे के प्रश्न पर मतभेद उत्पन्न हो जाने के कारण कैबिनेट मिशन प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिये गए।
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मुस्लिम लीग ने ऊपर से तो इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन यह स्वीकृति वास्तविक न होकर दिखावा मात्र थी। [[5 जून]], 1946 को, [[मुहम्मद अली जिन्ना]] ने मुस्लिम लीग कौंसिल में भाषण देते हुए कहा- "मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि, जब तक हम अपने सारे क्षेत्र को मिला कर पूर्ण और प्रभुसत्ता सम्पन्न पाकिस्तान की स्थापना नहीं कर लेंगे, तब तक हम संतुष्ट होकर नहीं बैठेंगे।" लीग की इस विसंगति के कारण ही गांधीजी और कांग्रेस में उनके साथी, "प्रांतों के वर्गबंधन" की योजना के विषय में अशांत और आशंकित हो गए। लीग इस योजना को अनिवार्य करके इसे पाकिस्तान की स्थापना का साधन बनाना चाहती थी। इस बात पर मतभेद से कैबिनेट मिशन-योजना विफल हो गई।
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==विवाद की चरम सीमा==
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तीन स्तरीय संविधान योजना बड़ी सूक्ष्म व्यवस्था थी, जिसमें रोकथाम और संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत सारे उपाय किए गए थे। बड़े-बड़े दलों के बीच पूर्ण सहयोग के बिना संविधान बनाना असंभव था, उसे कार्यरूप देना तो दूर की बात थी। ऐसे सहयोग का अभाव था। कैबिनेट मिशन-योजना में समझौते का प्रयास था, लेकिन यह [[कांग्रेस]] और [[मुस्लिम लीग]] को एकमत नहीं कर सकी। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन मामलों को यह समझा जाता था कि, इस योजना से वे तय हो चुके हैं, वे ही मिशन के तीनों सदस्यों के इंग्लैंड लौटने पर तुरंत फिर उठाए गए। किन प्रांतों के 'वर्ग' बनाये जाएँ और अंतरिम सरकार में किस दल के कितने लोग होंगे, इन दो महत्वपूर्ण प्रश्नों पर वाद-विवाद की उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच गई।
  
 
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13:09, 17 जून 2011 का अवतरण

कैबिनेट मिशन एटली मंत्रिमण्डल द्वारा 1946 ई. में भारत भेजा गया था। इसका उद्देश्य भारतीय नेताओं से मिलकर उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना था कि, सरकार संवैधानिक मामलें पर शीघ्र ही समझौता करने को उत्सुक है। लेकिन ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजनैतिक नेताओं के बीच निर्णायक चरण मार्च, 1946 में आया, जब मंत्रिमण्डल के तीन सदस्य लार्ड पैथिक लारेंस, सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स और श्री ए.वी. अलेक्ज़ेण्डर भारत आए।

कांग्रेस द्वारा विभाजन का विरोध

एटली द्वारा भेजे गए इस मंत्रिमण्डल से कांग्रेस की ओर से बातचीत अबुल कलाम आज़ाद ने की। इस काम में जवाहर लाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल ने उनकी सहायता की। महात्मा गांधी से ये लोग सलाह लेते रहते थे। लेकिन इस मूल प्रश्न पर बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया कि भारत की एकता बनी रहेगी अथवा मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग को पूरा करने के लिए देश का विभाजन होगा। कांग्रेस विभाजन का विरोध कर रही थी और विभि़न्न प्रांतों को जितनी भी अधिक-से-अधिक आर्थिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय स्वायत्तता दे सकना संभव था, देने को तैयार थी। शिमला में आयोजित एक सम्मेलन में कांग्रेस और लीग के मतभेद दूर नहीं हो सके।

मिशन की समझौता योजना

कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मतभेद दूर न होने से कैबिनेट मिशन ने 16 मई, 1946 को अपनी समझौता योजना एक वक्तव्य में पेश की। उन्होंने भारत के लिए तीन स्तरीय संवैधानिक ढांचे की रूपरेखा प्रस्तुत की, जो इस प्रकार थी-

  • संविधान संघ के ढंग का होगा, जिसमें रियासतें भी सम्मिलित होंगीं।
  • संघ सरकार पर केवल विदेशी मामले, सुरक्षा और यातायात संभालने का भार होगा।
  • नीचे के स्तर पर प्रांत और रियासतें होंगी और सारे विशिष्ट अधिकार इन्हीं को मिलेंगे।
  • बीच के स्तर पर प्रांतों द्वारा स्वेच्छा से बनाये ऐसे समूह होंगे, जो समान विषयों पर विचार करेंगे।

मिशन की असफलता

मुस्लिम लीग ने ऊपर से तो इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन यह स्वीकृति वास्तविक न होकर दिखावा मात्र थी। 5 जून, 1946 को, मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग कौंसिल में भाषण देते हुए कहा- "मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि, जब तक हम अपने सारे क्षेत्र को मिला कर पूर्ण और प्रभुसत्ता सम्पन्न पाकिस्तान की स्थापना नहीं कर लेंगे, तब तक हम संतुष्ट होकर नहीं बैठेंगे।" लीग की इस विसंगति के कारण ही गांधीजी और कांग्रेस में उनके साथी, "प्रांतों के वर्गबंधन" की योजना के विषय में अशांत और आशंकित हो गए। लीग इस योजना को अनिवार्य करके इसे पाकिस्तान की स्थापना का साधन बनाना चाहती थी। इस बात पर मतभेद से कैबिनेट मिशन-योजना विफल हो गई।

विवाद की चरम सीमा

तीन स्तरीय संविधान योजना बड़ी सूक्ष्म व्यवस्था थी, जिसमें रोकथाम और संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत सारे उपाय किए गए थे। बड़े-बड़े दलों के बीच पूर्ण सहयोग के बिना संविधान बनाना असंभव था, उसे कार्यरूप देना तो दूर की बात थी। ऐसे सहयोग का अभाव था। कैबिनेट मिशन-योजना में समझौते का प्रयास था, लेकिन यह कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एकमत नहीं कर सकी। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन मामलों को यह समझा जाता था कि, इस योजना से वे तय हो चुके हैं, वे ही मिशन के तीनों सदस्यों के इंग्लैंड लौटने पर तुरंत फिर उठाए गए। किन प्रांतों के 'वर्ग' बनाये जाएँ और अंतरिम सरकार में किस दल के कितने लोग होंगे, इन दो महत्वपूर्ण प्रश्नों पर वाद-विवाद की उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँच गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 102।

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