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+ | '''ग्वालियर क़िला''' [[मध्य प्रदेश]] के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। क़िला जमीन से 300 फुट ऊंचा है। इसकी लम्बाई लगभग तीन किलोमीटर है। पूर्व से पश्चिम की ओर यह क़िला 600 से 3000 फीट चौड़ा है। शहर के कोने-कोने से इस क़िले को देखा जा सकता है। 1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर नरेशों के अधीन रहा था, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। क़िले के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास प्रतिबिंबित होता है। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
− | इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस क़िले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने करवाया था, जो इस क़िले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। जबकि | + | इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस क़िले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने करवाया था, जो इस क़िले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। जबकि क़िले को 15वीं शताब्दी में वर्तमान स्वरूप राजा मानसिंह तोमर ने दिया। |
*[[ग्वालियर]] का क़िला बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक [[इतिहास]] तिमिराच्छन्न है। [[हूण]] महाराजाधिराज [[तोरमाण]] के पुत्र [[मिहिरकुल]] के शासन काल के 15वें [[वर्ष]] (525 ई.) का एक [[शिलालेख]] ग्वालियर क़िले से प्राप्त हुआ था, जिसमें 'मातृचेत' नामक व्यक्ति द्वारा 'गोपाद्रि' या 'गोप' नाम की पहाड़ी<ref>जिस पर क़िला स्थित है</ref> पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम 'गोपाद्रि' (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती [[गुप्त काल]] में भी थी। | *[[ग्वालियर]] का क़िला बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक [[इतिहास]] तिमिराच्छन्न है। [[हूण]] महाराजाधिराज [[तोरमाण]] के पुत्र [[मिहिरकुल]] के शासन काल के 15वें [[वर्ष]] (525 ई.) का एक [[शिलालेख]] ग्वालियर क़िले से प्राप्त हुआ था, जिसमें 'मातृचेत' नामक व्यक्ति द्वारा 'गोपाद्रि' या 'गोप' नाम की पहाड़ी<ref>जिस पर क़िला स्थित है</ref> पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम 'गोपाद्रि' (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती [[गुप्त काल]] में भी थी। | ||
*1232 ई. में [[दिल्ली]] के [[ग़ुलाम वंश]] के सुल्तान [[इल्तुतमिश]] ने ग्वालियर के क़िले को हस्तगत किया और [[राजपूत]] रानियों ने [[सती प्रथा|जौहर प्रथा]] के अनुसार [[अग्नि]] में कूदकर प्राण त्याग दिए। | *1232 ई. में [[दिल्ली]] के [[ग़ुलाम वंश]] के सुल्तान [[इल्तुतमिश]] ने ग्वालियर के क़िले को हस्तगत किया और [[राजपूत]] रानियों ने [[सती प्रथा|जौहर प्रथा]] के अनुसार [[अग्नि]] में कूदकर प्राण त्याग दिए। | ||
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*1399 से 1516 ई. तक यह क़िला [[तोमर]] नरेशों के अधीन रहा, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। | *1399 से 1516 ई. तक यह क़िला [[तोमर]] नरेशों के अधीन रहा, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। | ||
*1528 ई. में [[बाबर]] ने यह क़िला जीता। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे। | *1528 ई. में [[बाबर]] ने यह क़िला जीता। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे। | ||
*[[औरंगज़ेब]] ने अपने भाई और गद्दी के हकदार [[मुराद, शाहजादा|मुराद]] और तत्पश्चात [[दारा शिकोह|दारा]] के पुत्र सुलेमान शिकोह को कैद करके इसी क़िले में बंद रखा। | *[[औरंगज़ेब]] ने अपने भाई और गद्दी के हकदार [[मुराद, शाहजादा|मुराद]] और तत्पश्चात [[दारा शिकोह|दारा]] के पुत्र सुलेमान शिकोह को कैद करके इसी क़िले में बंद रखा। | ||
− | *ग्वालियर | + | *ग्वालियर क़िले को '''भारत का गिब्राल्टर''' कहा जाता है। क़िले पर कई राजवंशों ने अनेक वर्षों तक राज्य किया। किला ब्रिटिश शासन के विरुद्ध [[झांसी]] की [[रानी लक्ष्मीबाई]] और [[तात्या टोपे]] द्वारा किये गए युद्ध की रणभूमि था। |
==शानदार स्मारक== | ==शानदार स्मारक== | ||
[[भारत]] का शानदार और भव्य स्मारक यह क़िला [[ग्वालियर]] के केंद्र में स्थित है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस स्थान से घाटी और शहर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। पहाड़ी की ओर जाने वाले वक्र रास्ते की चट्टानों पर [[जैन]] [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की सुंदर नक्काशियां देखी जा सकती हैं। क़िले में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पूर्वी दिशा में 'ग्वालियर गेट' है, जहां पैदल जाना पड़ता है। जबकि पश्चिमी दिशा में 'उर्वई द्वार' है, जहां वाहन से पहुंचा जा सकता है। क़िले की पहाड़ी को दस मीटर ऊंची दीवार ने घेर रखा है। एक खड़ी ढाल वाली सड़क क़िले के ऊपर की ओर जाती है। क़िले में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पत्थर काटकर बनाई गई हैं। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में इस क़िले का बहुत अधिक महत्व रहा है। क़िले को '''हिन्द के क़िलों का मोती''' कहा गया है। यह क़िला कई शासकों के अधीन रहा, पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया। | [[भारत]] का शानदार और भव्य स्मारक यह क़िला [[ग्वालियर]] के केंद्र में स्थित है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस स्थान से घाटी और शहर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। पहाड़ी की ओर जाने वाले वक्र रास्ते की चट्टानों पर [[जैन]] [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] की सुंदर नक्काशियां देखी जा सकती हैं। क़िले में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पूर्वी दिशा में 'ग्वालियर गेट' है, जहां पैदल जाना पड़ता है। जबकि पश्चिमी दिशा में 'उर्वई द्वार' है, जहां वाहन से पहुंचा जा सकता है। क़िले की पहाड़ी को दस मीटर ऊंची दीवार ने घेर रखा है। एक खड़ी ढाल वाली सड़क क़िले के ऊपर की ओर जाती है। क़िले में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पत्थर काटकर बनाई गई हैं। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में इस क़िले का बहुत अधिक महत्व रहा है। क़िले को '''हिन्द के क़िलों का मोती''' कहा गया है। यह क़िला कई शासकों के अधीन रहा, पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया। | ||
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− | ग्वालियर | + | ग्वालियर क़िले की [[वास्तुकला]] अद्वितीय है, जिस पर [[चीन]] की वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है। क़िले के स्तंभों पर ड्रैगन की नक्काशियां हैं, जो उस समय के [[भारत]]-चीन संबंधों का प्रमाण हैं। यह मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के श्रेष्ठ उदाहरणों में से एक है। |
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13:54, 8 जनवरी 2014 का अवतरण
ग्वालियर क़िला
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विवरण | 'ग्वालियर का क़िला' भारत के प्रसिद्ध और भव्य दुर्गों में गिना जाता है। शहर के कोने-कोने से इस क़िले को देखा जा सकता है। |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | ग्वालियर |
निर्माता | हिंदू राजा |
निर्माण काल | 8वीं शताब्दी और 15वीं शताब्दी |
प्रसिद्धि | पर्यटन स्थल |
संबंधित लेख | भारत के दुर्ग, तोमर
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अन्य जानकारी | 1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर नरेशों के अधीन रहा, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। |
ग्वालियर क़िला मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। क़िला जमीन से 300 फुट ऊंचा है। इसकी लम्बाई लगभग तीन किलोमीटर है। पूर्व से पश्चिम की ओर यह क़िला 600 से 3000 फीट चौड़ा है। शहर के कोने-कोने से इस क़िले को देखा जा सकता है। 1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर नरेशों के अधीन रहा था, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। क़िले के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास प्रतिबिंबित होता है।
इतिहास
इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस क़िले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने करवाया था, जो इस क़िले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। जबकि क़िले को 15वीं शताब्दी में वर्तमान स्वरूप राजा मानसिंह तोमर ने दिया।
- ग्वालियर का क़िला बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक इतिहास तिमिराच्छन्न है। हूण महाराजाधिराज तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल के शासन काल के 15वें वर्ष (525 ई.) का एक शिलालेख ग्वालियर क़िले से प्राप्त हुआ था, जिसमें 'मातृचेत' नामक व्यक्ति द्वारा 'गोपाद्रि' या 'गोप' नाम की पहाड़ी[1] पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम 'गोपाद्रि' (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती गुप्त काल में भी थी।
- 1232 ई. में दिल्ली के ग़ुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश ने ग्वालियर के क़िले को हस्तगत किया और राजपूत रानियों ने जौहर प्रथा के अनुसार अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए।
- 1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर नरेशों के अधीन रहा, जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी 'गूजरी' या 'मृगनयनी' के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का 'गूजरी महल' मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है।
- 1528 ई. में बाबर ने यह क़िला जीता। मुग़लों ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे।
- औरंगज़ेब ने अपने भाई और गद्दी के हकदार मुराद और तत्पश्चात दारा के पुत्र सुलेमान शिकोह को कैद करके इसी क़िले में बंद रखा।
- ग्वालियर क़िले को भारत का गिब्राल्टर कहा जाता है। क़िले पर कई राजवंशों ने अनेक वर्षों तक राज्य किया। किला ब्रिटिश शासन के विरुद्ध झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे द्वारा किये गए युद्ध की रणभूमि था।
शानदार स्मारक
भारत का शानदार और भव्य स्मारक यह क़िला ग्वालियर के केंद्र में स्थित है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस स्थान से घाटी और शहर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। पहाड़ी की ओर जाने वाले वक्र रास्ते की चट्टानों पर जैन तीर्थंकरों की सुंदर नक्काशियां देखी जा सकती हैं। क़िले में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पूर्वी दिशा में 'ग्वालियर गेट' है, जहां पैदल जाना पड़ता है। जबकि पश्चिमी दिशा में 'उर्वई द्वार' है, जहां वाहन से पहुंचा जा सकता है। क़िले की पहाड़ी को दस मीटर ऊंची दीवार ने घेर रखा है। एक खड़ी ढाल वाली सड़क क़िले के ऊपर की ओर जाती है। क़िले में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पत्थर काटकर बनाई गई हैं। भारत के इतिहास में इस क़िले का बहुत अधिक महत्व रहा है। क़िले को हिन्द के क़िलों का मोती कहा गया है। यह क़िला कई शासकों के अधीन रहा, पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया।
वास्तुकला
ग्वालियर क़िले की वास्तुकला अद्वितीय है, जिस पर चीन की वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है। क़िले के स्तंभों पर ड्रैगन की नक्काशियां हैं, जो उस समय के भारत-चीन संबंधों का प्रमाण हैं। यह मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के श्रेष्ठ उदाहरणों में से एक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिस पर क़िला स्थित है
बाहरी कड़ियाँ
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