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'''चेतसिंह''', [[बनारस]] का राजा था। वह [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के प्रति निष्ठा रखता था। उसकी [[मैसूर]] और [[मराठा|मराठों]] से भी कभी नहीं बनती थी। हेस्टिंग्स ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके उसके भतीजे को सौंप दिया था।
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'''चेतसिंह''' [[बनारस]] का राजा था, जो [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के प्रति निष्ठा रखता था। उसकी [[मैसूर]] और [[मराठा|मराठों]] से कभी नहीं बनती थी। [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके उसके भतीजे को सौंप दिया था। कम्पनी के साथ हुई सन्धि के अनुसार उसे कम्पनी को सालाना नज़राना देना होता था। चेतसिंह के साथ हेस्टिंग्स का सदा ही क्रूर व्यवहार रहा था। यही कारण था कि हेस्टिंग्स पर पिट के द्वारा महाभियोग चलाया गया था।
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==कम्पनी के प्रति निष्ठा==
 
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पहले वह [[अवध]] के नवाब का सामन्त था, लेकिन बाद में उसने अपनी निष्ठा '''ईस्ट इंडिया कम्पनी''' के प्रति व्यक्त की। कम्पनी के साथ एक संधि हुई, जिसके अंतर्गत चेतसिंह ने कम्पनी को 22.5 लाख रुपये का सालाना नज़राना देना स्वीकार किया और बदले में कम्पनी ने क़रार किया कि वह किसी भी आधार पर अपनी माँग नहीं बढ़ायेगी और किसी भी व्यक्ति को राजा के अधिकार में दख़ल देने और उसके देश की शान्ति भंग करने की इजाज़त नहीं देगी। 1778 ई. में कम्पनी जब [[भारत]] में फ़्राँसीसियों के साथ युद्धरत थी और [[मैसूर]] तथा [[मराठा|मराठों]] से भी उसकी ठनी हुई थी।
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'''पहले चेतसिंह''' [[अवध]] के नवाब का सामन्त था, लेकिन बाद में उसने अपनी निष्ठा ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रति व्यक्त की। कम्पनी के साथ एक संधि हुई, जिसके अंतर्गत चेतसिंह ने कम्पनी को 22.5 लाख रुपये का सालाना नज़राना देना स्वीकार किया और बदले में कम्पनी ने क़रार किया कि, वह किसी भी आधार पर अपनी माँग नहीं बढ़ायेगी और किसी भी व्यक्ति को राजा के अधिकार में दखल देने और उसके देश की शान्ति भंग करने की इजाजत नहीं देगी।
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====वारेन हेस्टिंग्स की माँग====
[[वारेन हेस्टिंग्स]] ने चेतसिंह से पाँच लाख रुपये का एक विशेष अंशदान माँगा। राजा ने उसे दे दिया। 1779 ई. में यह माँग फिर से दोहराई गई और इस बार उसके साथ फ़ौजी कार्रवाई की धमकी भी दी गई। 1780 ई. में यह माँग तीसरी बार फिर से की गई। इस बार चेतसिंह ने 2 लाख रुपये व्यक्तिगत उपहार के रूप में हेस्टिंग्स को इस आशा के साथ भेजे की वह प्रसन्न हो जाएगा। हेस्टिंग्स ने यह राशि कम्पनी की फ़ौजों पर ख़र्च कर दी और अपनी माँग में ज़रा सी भी कमी किए बिना उसने राजा से 2 हज़ार घुड़सवार देने को कहा। राजा के अनुरोध पर उसने बाद में यह संख्या घटाकर एक हज़ार कर दी। लेकिन राजा 500 घुड़सवारों और 500 तोड़दारों का ही बंदोबस्त कर सका।
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'''1778 ई. में कम्पनी जब भारत में''' फ़्राँसीसियों के साथ युद्धरत थी और मैसूर तथा मराठों से भी उसकी ठनी हुई थी। वारेन हेस्टिंग्स ने चेतसिंह से पाँच लाख रुपये का एक विशेष अंशदान माँगा। राजा ने उसे दे दिया। 1779 ई. में यह माँग फिर से दोहराई गई और इस बार उसके साथ फ़ौजी कार्रवाई की धमकी भी दी गई। 1780 ई. में यह माँग तीसरी बार फिर से की गई। इस बार चेतसिंह ने 2 लाख रुपये व्यक्तिगत उपहार के रूप में हेस्टिंग्स को इस आशा के साथ भेजे की वह प्रसन्न हो जाएगा। हेस्टिंग्स ने यह राशि कम्पनी की फ़ौजों पर ख़र्च कर दी और अपनी माँग में ज़रा सी भी कमी किए बिना उसने राजा से 2 हज़ार घुड़सवार देने को कहा। राजा के अनुरोध पर उसने बाद में यह संख्या घटाकर एक हज़ार कर दी। लेकिन राजा 500 घुड़सवारों और 500 तोड़दारों का ही बंदोबस्त कर सका।
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==चेतसिंह का आत्मसमर्पण==
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'''राजा चेतसिंह ने हेस्टिंग्स के पास सूचना''' भिजवाई कि ये घुड़सवार और तोड़दार कम्पनी की सेवा के लिए तैयार हैं। हेस्टिंग्स ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और चेतसिंह से 50 लाख रुपये जुर्माना माँगने की ठानी। हेस्टिंग्स अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए स्वयं [[बनारस]] पहुँचा। उसने राजा को उसके महल में ही क़ैद कर लिया। राजा ने चुपचाप आत्मसमर्पण कर दिया।
राजा ने हेस्टिंग्स के पास सूचना भिजवाई कि ये घुड़सवार और तोड़दार कम्पनी की सेवा के लिए तैयार हैं। हेस्टिंग्स ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और चेतसिंह से 50 लाख रुपये जुर्माना माँगने की ठानी। हेस्टिंग्स अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए स्वयं [[बनारस]] पहुँचा। उसने राजा को उसके महल में ही क़ैद कर लिया। राजा ने चुपचाप आत्मसमर्पण कर दिया।
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==सिपाहियों का विद्रोह==  
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'''चेतसिंह के सिपाही राजा के इस अपमान से''' क्रुद्ध हो गए। उन्होंने उस छोटी-सी ब्रिटिश टुकड़ी का सफ़ाया कर दिया, जिसके साथ हेस्टिंग्स ने बनारस आने की ग़लती की थी। हेस्टिंग्स अपनी जान बचाने के लिए जल्दी से चुनार भाग गया। वहाँ से कुमुक लाकर उसने बनारस पर फिर से अधिकार कर लिया और चेतसिंह के महल को सिपाहियों से ख़ूब लुटवाया। लेकिन चेतसिंह न पकड़ा जा सका। वह [[ग्वालियर]] निकल भागा।
चेतसिंह के सिपाही राजा के इस अपमान से क्रुद्ध हो गए। उन्होंने उस छोटी सी ब्रिटिश टुकड़ी का सफ़ाया कर दिया, जिसके साथ हेस्टिंग्स ने बनारस आने की ग़लती की थी। हेस्टिंग्स अपनी जान बचाने के लिए जल्दी से [[चुनार]] भाग गया। वहाँ से कुमुक लाकर उसने बनारस पर फिर से अधिकार कर लिया और चेतसिंह के महल को सिपाहियों से ख़ूब लुटवाया। लेकिन चेतसिंह न पकड़ा जा सका। वह [[ग्वालियर]] निकल भागा।
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==हेस्टिंग्स पर महाभियोग==
====हेस्टिंग्स पर महाभियोग====
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'''हेस्टिंग्स ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके''' उसके भतीजे को इस शर्त पर सौंप दिया कि वह सालाना नज़राने की रक़म बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर देगा। राजा के लिए यह रक़म बहुत बड़ा बोझ थी और इससे उसकी आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पिट ने महसूस किया कि चेतसिंह के मामले में हेस्टिंग्स का व्यवहार क्रूर, अनुचित और दमनकारी था। हेस्टिंग्स पर महाभियोग लगाये जाने का एक कारण यह भी था।
हेस्टिंग्स ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके उसके भतीजे को इस शर्त पर सौंप दिया कि वह सालाना नज़राने की रक़म बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर देगा। राजा के लिए यह रक़म बहुत बड़ा बोझ थी और इससे उसकी आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पिट ने महसूस किया कि चेतसिंह के मामले में हेस्टिंग्स का व्यवहार क्रूर, अनुचित और दमनकारी था। हेस्टिंग्स पर महाभियोग लगाये जाने का एक कारण यह भी था।
 
  
 
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15:06, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण

चेतसिंह बनारस का राजा था, जो ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रति निष्ठा रखता था। उसकी मैसूर और मराठों से कभी नहीं बनती थी। वारेन हेस्टिंग्स ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके उसके भतीजे को सौंप दिया था। कम्पनी के साथ हुई सन्धि के अनुसार उसे कम्पनी को सालाना नज़राना देना होता था। चेतसिंह के साथ हेस्टिंग्स का सदा ही क्रूर व्यवहार रहा था। यही कारण था कि हेस्टिंग्स पर पिट के द्वारा महाभियोग चलाया गया था।

कम्पनी के प्रति निष्ठा

पहले चेतसिंह अवध के नवाब का सामन्त था, लेकिन बाद में उसने अपनी निष्ठा ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रति व्यक्त की। कम्पनी के साथ एक संधि हुई, जिसके अंतर्गत चेतसिंह ने कम्पनी को 22.5 लाख रुपये का सालाना नज़राना देना स्वीकार किया और बदले में कम्पनी ने क़रार किया कि, वह किसी भी आधार पर अपनी माँग नहीं बढ़ायेगी और किसी भी व्यक्ति को राजा के अधिकार में दखल देने और उसके देश की शान्ति भंग करने की इजाजत नहीं देगी।

वारेन हेस्टिंग्स की माँग

1778 ई. में कम्पनी जब भारत में फ़्राँसीसियों के साथ युद्धरत थी और मैसूर तथा मराठों से भी उसकी ठनी हुई थी। वारेन हेस्टिंग्स ने चेतसिंह से पाँच लाख रुपये का एक विशेष अंशदान माँगा। राजा ने उसे दे दिया। 1779 ई. में यह माँग फिर से दोहराई गई और इस बार उसके साथ फ़ौजी कार्रवाई की धमकी भी दी गई। 1780 ई. में यह माँग तीसरी बार फिर से की गई। इस बार चेतसिंह ने 2 लाख रुपये व्यक्तिगत उपहार के रूप में हेस्टिंग्स को इस आशा के साथ भेजे की वह प्रसन्न हो जाएगा। हेस्टिंग्स ने यह राशि कम्पनी की फ़ौजों पर ख़र्च कर दी और अपनी माँग में ज़रा सी भी कमी किए बिना उसने राजा से 2 हज़ार घुड़सवार देने को कहा। राजा के अनुरोध पर उसने बाद में यह संख्या घटाकर एक हज़ार कर दी। लेकिन राजा 500 घुड़सवारों और 500 तोड़दारों का ही बंदोबस्त कर सका।

चेतसिंह का आत्मसमर्पण

राजा चेतसिंह ने हेस्टिंग्स के पास सूचना भिजवाई कि ये घुड़सवार और तोड़दार कम्पनी की सेवा के लिए तैयार हैं। हेस्टिंग्स ने इसका कोई जवाब नहीं दिया और चेतसिंह से 50 लाख रुपये जुर्माना माँगने की ठानी। हेस्टिंग्स अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए स्वयं बनारस पहुँचा। उसने राजा को उसके महल में ही क़ैद कर लिया। राजा ने चुपचाप आत्मसमर्पण कर दिया।

सिपाहियों का विद्रोह

चेतसिंह के सिपाही राजा के इस अपमान से क्रुद्ध हो गए। उन्होंने उस छोटी-सी ब्रिटिश टुकड़ी का सफ़ाया कर दिया, जिसके साथ हेस्टिंग्स ने बनारस आने की ग़लती की थी। हेस्टिंग्स अपनी जान बचाने के लिए जल्दी से चुनार भाग गया। वहाँ से कुमुक लाकर उसने बनारस पर फिर से अधिकार कर लिया और चेतसिंह के महल को सिपाहियों से ख़ूब लुटवाया। लेकिन चेतसिंह न पकड़ा जा सका। वह ग्वालियर निकल भागा।

हेस्टिंग्स पर महाभियोग

हेस्टिंग्स ने चेतसिंह का सारा राजपाट ज़ब्त करके उसके भतीजे को इस शर्त पर सौंप दिया कि वह सालाना नज़राने की रक़म बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर देगा। राजा के लिए यह रक़म बहुत बड़ा बोझ थी और इससे उसकी आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पिट ने महसूस किया कि चेतसिंह के मामले में हेस्टिंग्स का व्यवहार क्रूर, अनुचित और दमनकारी था। हेस्टिंग्स पर महाभियोग लगाये जाने का एक कारण यह भी था।


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