"दोहनी कुण्ड काम्यवन" के अवतरणों में अंतर

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[[बरसाना]] [[मथुरा]] से लगभग 50 कि.मी. है। यह स्थान बरसाना के पास है। गह्वर वन की पश्चिम–दिशा में समीप ही चिकसौली ग्राम के दक्षिण में स्थित है । यहाँ प्रकट लीला के समय गोदोहन सम्पन्न होता था । यह स्थान महाराज [[वृषभानु]] की लाखों गायों के रहने का खिड़क (स्थान) है ।
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एक समय गोदोहन के समय किशोरी श्री [[राधा|राधिका]] खड़ी–खड़ी गोदोहन का कार्य देख रही थीं । देखते–देखते उनकी भी गोदोहन की इच्छा हुई वे भी एक मटकी लेकर एक गईया का दूध दोहने लगीं । उसी समय कौतुकी [[कृष्ण]] भी वहाँ आ पहुँचे और बोले– सखि ! 'तोपे दूध काढ़वो भी नहीं आवे है, ला मैं बताऊँ ।' यह कहकर पास ही में बैठ गये । राधिका जी ने उनसे कहा– 'अरे मोहन ! मोए सिखा ।' यह कहकर सामने बैठ गई । कृष्ण ने कहा–'अच्छौ दो थन आप दुहो और दो मैं दुहों, आप मेरी ओर निगाह राखो । ' कृष्ण ठिठोली करते हुए दूध की धार निकालने लगे । उन्होंने हठात एक धार राधा जी के मुख मण्डल में ऐसी मारी कि राधा जी का मुखमण्डल दूध से भर गया । फिर तो आप भी हँसने लगे और सखियाँ भी हँसने लगीं
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दूध धार मुख पर पड़त दृग भये चन्द्र चकोर॥</poem></blockquote>
==डभरारो==
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यहाँ श्री राधिका के दर्शन से [[कृष्ण]] की दोनों आँखों में आँसू भर आये। डभरारो शब्द का अर्थ आँसुओं का डब–डबाना है। अब इस गाँव का नाम डभरारो है । यह स्थान [[बरसाना]] से दो मील दक्षिण में हैं ।
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==रसोली==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
डभरारो से डेढ़ मील दूर नैऋत कोण में रसोली स्थान है यहाँ राधा-कृष्ण का गोपियों के साथ सर्वप्रथम प्रसिद्ध [[रासलीला]] सम्पन्न हुआ था । यह तुंग विद्या सखी की जन्मस्थली है। तुंग विद्या के पिता का नाम पुष्कर गोप, माता का नाम मेधा गोपी तथा पति का नाम वालिश है। तुंग विद्या जी अष्टसखियों में से  एक हैं। वे नृत्य–गीत–वाद्य, ज्योतिष, पद्य-रचना, पाक क्रिया, पशु–पक्षियों की भाषाविद राधा-कृष्ण का परस्पर मिलन कराने आदि विविध कलाओं में पूर्ण रूप से निपुण हैं ।
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<references/>
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==संबंधित लेख==
 
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07:21, 7 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

दोहनी कुण्ड काम्यवन
दोहनी कुण्ड काम्यवन
विवरण दोहनी कुण्ड बरसाना, मथुरा के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
मार्ग स्थिति बरसाना, से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर है।
प्रसिद्धि धार्मिक स्थल
कब जाएँ कभी भी
यातायात बस, कार, ऑटो आदि
संबंधित लेख राधा, कृष्ण, बरसाना, राधाकुण्ड गोवर्धन, ललिता कुण्ड काम्यवन


अन्य जानकारी इस में प्राकट्य लीला के समय गोदोहन सम्पन्न होता था। यह महाराज वृषभानु की लाखों गायों के रहने का स्थान था।

दोहनी कुण्ड बरसाना, मथुरा से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह स्थान बरसाना के पास ही है। गहवर वन की पश्चिम दिशा के समीप ही चिकसौली ग्राम के दक्षिण में यह स्थित है। यहाँ प्राकट्य लीला के समय गोदोहन सम्पन्न होता था। यह स्थान महाराज वृषभानु की लाखों गायों के रहने का खिड़क[1] था।

कथा

एक बार गोदोहन के समय किशोरी राधिका खड़ी-खड़ी गोदोहन का कार्य देख रही थीं। देखते ही देखते उनकी भी गोदोहन की इच्छा हुई। वे भी मटकी लेकर एक गाय का दूध दुहने लगीं। उसी समय कौतुकी कृष्ण भी वहाँ आ पहुँचे और बोले- "सखि! तोपे दूध काढ़वो भी नहीं आवे है ला मैं बताऊँ।" यह कहकर पास ही में बैठ गये। राधिका जी ने उनसे कहा- "अरे मोहन! मोए सिखा।" यह कहकर सामने बैठ गईं। कृष्ण ने कहा- "अच्छौ दो थन आप दुहो और दो मैं दुहों, आप मेरी ओर निगाह राखो।" कृष्ण ठिठोली करते हुए दूध की धार निकालने लगे। उन्होंने हठात एक धार राधा जी के मुखमण्डल में ऐसी मारी कि राधा जी का मुखमण्डल दूध से भर गया। फिर तो आप भी हँसने लगे और सखियाँ भी हँसने लगीं

आमें सामें बैठ दोऊ दोहत करत ठठोर।
दूध धार मुख पर पड़त दृग भये चन्द्र चकोर॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्थान

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