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[[चित्र:Nashik-Map.jpg|नासिक का मानचित्र<br /> Nashik Map|thumb|250px]]
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{{सूचना बक्सा पर्यटन
'''नासिक''' शहर दक्षिण-पश्चिमी [[भारत]] के पश्चिमोत्तर [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[गोदावरी नदी]] के किनारे बसा हुआ है और [[मुंबई]] से 180 किमी पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहां हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और [[महाकाव्य]] [[रामायण]] के नायक [[राम]] द्वारा अपनी पत्नि [[सीता]] और भाई [[लक्ष्मण]] के साथ यहां कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।
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|चित्र का नाम=रामकुण्ड, नासिक
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|विवरण='नासिक' एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो दक्षिण-पश्चिमी [[भारत]] के पश्चिमोत्तर [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[गोदावरी नदी]] के किनारे बसा हुआ है।
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|भौगोलिक स्थिति=[https://www.google.com/maps/place/20%C2%B000'00.0%22N+73%C2%B046'48.0%22E/@19.9995967,73.7866948,13z/data=!4m2!3m1!1s0x0:0x0?hl=en  20.00° उत्तर  73.78°पूर्व]
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|मार्ग स्थिति=यह [[मुंबई]] से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है।
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|कब जाएँ=कभी भी जा सकते हैं
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|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज, रेल, बस, टैक्सी
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|हवाई अड्डा=गांधीनगर हवाई अड्डा, नासिक
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|रेलवे स्टेशन=देश के लगभग हर कोने से नासिक रोड स्टेशन और देवलाली स्टेशन तक रेल से पहुँचा जा सकता है।
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|बस अड्डा=ओमकार नगर बस डिपो, नासिक
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|यातायात=
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|क्या देखें=कालाराम मंदिर, नारायण का मंदिर, सीता गुफ़ा आदि
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|कहाँ ठहरें=
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|क्या खायें=
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|क्या ख़रीदें=
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|सावधानी=
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|मानचित्र लिंक=[https://www.google.co.in/maps/dir/Gandhinagar+Airport,+Gandhi+Nagar+Airport+Area,+Nashik,+Maharashtra/Nashik,+Maharashtra/@19.9822878,73.7870869,14z/data=!3m1!4b1!4m13!4m12!1m5!1m1!1s0x3bddc049cbc5e523:0x5ade22f8be8b06cb!2m2!1d73.8167!2d19.9667!1m5!1m1!1s0x3bddd290b09914b3:0xcb07845d9d28215c!2m2!1d73.7898023!2d19.9974533?hl=en गूगल मानचित्र]
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|संबंधित लेख=[[त्र्यम्बकेश्वर मंदिर|त्र्यम्बकेश्वर]], [[इगतपुरी]], [[चक्रतीर्थ (महाराष्ट्र)|चक्रतीर्थ]]
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|शीर्षक 1=नामकरण
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|पाठ 1=माना जाता है कि [[श्रीराम]] के अनुज [[लक्ष्मण]] ने इसी स्थान पर [[लंका]] के [[रावण|राजा रावण]] की बहन [[शूर्पणखा]] की नाक काटी थी, जिस कारण इस स्थान का नाम नासिक पड़ा।
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|पाठ 2=
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|अन्य जानकारी=1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर [[औरंगज़ेब]] की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और [[महालक्ष्मी]] के मंदिर उल्लखेनीय है।
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|बाहरी कड़ियाँ=[http://nashik.nic.in/ अधिकारिक वेबसाइट]
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'''नासिक''' / '''नाशिक''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Nashik'') शहर दक्षिण-पश्चिमी [[भारत]] के पश्चिमोत्तर [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[गोदावरी नदी]] के किनारे बसा हुआ है। यह [[मुंबई]] से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहाँ हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और [[महाकाव्य]] [[रामायण]] के नायक भगवान [[श्रीराम]] द्वारा अपनी पत्नी [[सीता]] और भाई [[लक्ष्मण]] के साथ यहाँ कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।
 
==नामकरण==
 
==नामकरण==
कहा जाता है कि रामायण में वर्णित [[पंचवटी]] जहाँ श्री राम, लक्ष्मण और सीता वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। [[किंवदंती]] है कि इसी स्थान पर [[रावण]] की भगिनी [[शूर्पणखा]] को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था जिसके कारण इस स्थान को नासिक कहा जाता है।
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कहा जाता है कि रामायण में वर्णित [[पंचवटी]], जहाँ [[राम|श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] सहित वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। [[किंवदंती]] है कि इसी स्थान पर [[लंका]] के राजा [[रावण]] की भगिनी (बहन) [[शूर्पणखा]] को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'नासिक' कहा जाता है। नासिक [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की आस्था प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा मिश्रण है।
 
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====इतिहास====
==इतिहास और दर्शनीय स्थल==
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[[चित्र:Nasik-Maharashtra.jpg|thumb|250px|left|[[गोदावरी नदी]], नासिक (1848)]]
नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक [[बौद्ध]] गुफाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त [[जैन|जैनों]] के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभुस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है।  
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नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक [[बौद्ध]] गुफ़ाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त [[जैन|जैनों]] के आठवें [[तीर्थंकर]] [[चन्द्रप्रभ|चंद्र प्रभस्वामी]] और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है। 1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर [[औरंगज़ेब]] की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और [[महालक्ष्मी]] के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की [[जामा मस्जिद]] की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट, जो असरा फाटक के पास था, अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।
[[चित्र:Nasik-Maharashtra.jpg|thumb|300px|[[गोदावरी नदी]], नासिक, [[महाराष्ट्र]]- 1848]]
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==प्रसिद्ध मंदिर==
1680 ई. में लिखित तारीखे-[[औरंगज़ेब]] के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर [[औरंगज़ेब]] की धर्माधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, [[राम|राम जी]], कपालेश्वर और [[महालक्ष्मी]] के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट जो असरा फाटक के पास था। अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।  
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नासिक के प्रायः सभी मंदिर [[मुस्लिम]] शासन काल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं और स्वयं [[पेशवा|पेशवाओं]] तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में 18 लाख रुपये की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में [[पुर्तग़ाल]] से बनकर आया था।
 
 
नासिक के प्रायः सभी मंदिर मुस्लिम शासनकाल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं औरस्वयं [[पेशवा|पेशवाओं]] तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और श्री संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में, 18 लाख की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में [[पुर्तग़ाल]] से बनकर आया था।  
 
 
====कालाराम मंदिर====
 
====कालाराम मंदिर====
कालाराम नामक दूसरा मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह [[वर्ष|वर्षों]] में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की हैं।
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कालाराम नामक मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह [[वर्ष|वर्षों]] में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां [[राम|श्रीराम]] ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की है।[[चित्र:Trimbakeshwar.jpg|[[त्र्यम्बकेश्वर मंदिर]], नासिक|left|thumb|250px]]
[[चित्र:Trimbakeshwar.jpg|त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक|thumb|250px]]
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====सुंदर नारायण का मंदिर====
====नारायण का मंदिर====
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सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम [[सत युग|सतयुग]] में [[पद्यनगर]], [[त्रेता युग|त्रेता]] में [[त्रिकंटक]], [[द्वापर युग|द्वापर]] में [[जनस्थान]] और [[कलि युग|कलियुग]] में नासिक है।
सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम [[सत युग|सतयुग]] में [[पद्यनगर]], [[त्रेता युग|त्रेता]] में [[त्रिकंटक]], [[द्वापर युग|द्वापर]] में [[जनस्थान]] और [[कलि युग|कलियुग]] में नासिक है।  
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====त्रयम्बकेश्वर मंदिर====
====शिव पूजा का केंद्र====
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{{Main|त्र्यम्बकेश्वर मंदिर}}
:'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'
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नासिक से 38 किलोमीटर दूर स्थित है 'त्रयम्बकेश्वर मंदिर'। यहाँ भक्तजन कभी भी आ सकते हैं। इस पवित्र स्थान पर सदैव भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है। इस मंदिर को [[भारत]] के [[द्वादश ज्योतिर्लिंग|बारह ज्योतिर्लिंगों]] में सबसे प्रमुख माना जाता है, क्योंकि यहाँ त्रिदेव के दर्शन होते हैं। [[गोदावरी नदी]] के उद्गम स्थल और ब्रह्मगिरी की खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में नागर वास्तुकला में बने इस मंदिर को देखना अपने आप में एक उपलब्धि है। काले पत्थर से निर्मित यह मंदिर अपनी प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के कारण भी सैलानियों को आकर्षित करता है। यह मंदिर 270 वर्गफुट में फैला हुआ है। यहाँ स्वयंभू रूप में अंगूठे के आकार जितने बड़े तीन लिंग हैं, जिन्हें [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[महेश]] का रूप माना गया है।
नासिक को [[शिव]] पूजा का केंद्र होने के कारण दक्षिण [[काशी]] भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] [[गंगा नदी|गंगा]] के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से [[पूना]] के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-
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==शिव पूजा का केंद्र==
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<blockquote>'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'</blockquote>
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नासिक को [[शिव]] पूजा का केंद्र होने के कारण 'दक्षिण काशी' भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] [[गंगा नदी|गंगा]] के समान ही पवित्र मानी गई है। [[मराठा साम्राज्य]] में महत्त्व की दृष्टि से [[पूना]] के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-
 
#जूनीगढ़ी
 
#जूनीगढ़ी
 
#नवी गढ़ी
 
#नवी गढ़ी
# कोंकणीटेक  
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#कोंकणीटेक  
 
#जोगीवाड़ा टेक  
 
#जोगीवाड़ा टेक  
 
#म्हास टेक
 
#म्हास टेक
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#गणपति टेक   
 
#गणपति टेक   
 
#चित्रघंट टेक  
 
#चित्रघंट टेक  
[[मराठी भाषा|मराठी]] की प्रचलित कहावत की 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात नासिक नौ टेकरियों पर बसा है नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।  
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[[मराठी भाषा|मराठी]] की प्रचलित कहावत 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात् नासिक नौ टेकरियों पर बसा है, नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।
====महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख====
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==श्राद्ध स्थल==
नासिक के निकट एक गुफा में क्षहरात नरेश [[नहपान]] के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्णलेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी [[भारत]] के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह [[अभिलेख]] [[शक संवत]] संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु<ref>सेनार्ट पृ. 363</ref> में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।<ref>कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े</ref>
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[[चित्र:Shradha.jpg|thumb|250px|[[श्राद्ध]] करते लोग]]
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'त्रयम्बकेश्वर' [[गौतम ऋषि]] की तपोभूमि है। यह स्थान नासिक से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि गौतम ऋषि ने [[शिव]] की तपस्या करके [[गंगा]] को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा था, जिसके फलस्वरूप यहाँ [[गोदावरी नदी]] की धारा प्रवाहित हुई। इसलिए गोदावरी को '''दक्षिण भारत की गंगा''' भी कहा जाता है। इस स्थान पर किया [[श्राद्ध]] और [[पिण्डदान]] सीधा पितरों तक पहुँचता है। इससे पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है और वह उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ श्राद्ध, [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]], पिण्डदान एवं पितरों की संतुष्टि हेतु [[ब्राह्मण]] भोजन करवाने से पितर तृप्त होकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/feature/spirituality/holy-shradh-place-prevents-birth-as-evil-spirit/?page=4|title=श्राद्ध स्थल जहाँ मिलती है प्रेतयोनी से मुक्ति|accessmonthday=19 सितम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> यहाँ गौतम ऋषि की गुफ़ा है, जिसमें 108 [[शिवलिंग]] बने हुए हैं। वहीं आगे जाकर [[नाथ संप्रदाय]] के सबसे पहले नाथ [[गोरखनाथ]] का भी मंदिर है। राम-लक्ष्मण तीर्थ भी यहीं हैं, जहाँ अपने वनवास के दौरान कुछ दिन रुक कर भगवान श्रीराम ने अपने [[पिता]] [[दशरथ]] का श्राद्ध किया था। यहाँ राम का काफ़ी विशाल मंदिर भी बना हुआ है। यहीं 'गंगासागर' नाम का बड़ा-सा कुंड भी बना हुआ है।<ref>{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/home-and-relations/tour-travel/-/articleshow/6641472.cms|title=घूमने का पुण्य|accessmonthday= 19 सितम्बर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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{{seealso|श्राद्ध|पितृपक्ष|सर्वपितृ अमावस्या}}
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==कुम्भ पर्व चक्र==
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[[चित्र:Kumbh-Vrindavan-Mathura-11.jpg|thumb|220px|left|कुम्भ मेले में स्नान करते लोग]]
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'कुम्भ पर्व' विश्व में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं। कुम्भ का [[संस्कृत]] अर्थ है- 'कलश'। ज्योतिष शास्त्र में [[कुम्भ राशि]] का भी यही चिन्ह है। [[हिन्दू धर्म]] में कुम्भ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है- [[हरिद्वार]] में [[गंगा]], [[उज्जैन]] में [[क्षिप्रा नदी|क्षिप्रा]], [[नासिक]] में [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] और [[इलाहाबाद]] में [[संगम]], जहाँ [[गंगा]], [[यमुना]] और [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] तीनों मिलती हैं।
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====नासिक में कुम्भ पर्व====
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[[भारत]] में 12 में से एक [[ज्योतिर्लिंग]], त्र्यम्बकेश्वर नामक पवित्र शहर में स्थित है। यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और [[गोदावरी नदी]] का उद्गम भी यहीं से हुआ है। 12 वर्षों में एक बार [[सिंहस्थ (कुम्भ)|सिंहस्थ कुम्भ मेला]] नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहाँ अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें गिरी थीं। कुम्भ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में [[स्नान]] कर अपनी [[आत्मा]] की शुद्धि एवं मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ पर [[शिवरात्रि]] का त्यौहार भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।
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==महत्त्वपूर्ण उत्कीर्ण लेख==
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नासिक के निकट एक गुफ़ा में क्षहरात नरेश [[नहपान]] के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी [[भारत]] के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह [[अभिलेख]] [[शक संवत]] संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु<ref>सेनार्ट पृ. 363</ref> में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।<ref>कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े</ref>
 
==यातायात और परिवहन==
 
==यातायात और परिवहन==
नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम मे, [[मुम्बई]] से 150 किलोमीटर और [[पूना]] से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर [[गोदावरी नदी]] के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।  
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[[चित्र:Nashik-Map.jpg|नासिक का मानचित्र<br /> Nashik Map|thumb|250px]]
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नासिक [[महाराष्ट्र]] के उत्तर पश्चिम में, [[मुम्बई]] से 150 किलोमीटर और [[पूना]] से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर [[गोदावरी नदी]] के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।  
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====कैसे जाएँ====
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;बस द्वारा
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नासिक के लिए महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्टेशन की ओर से काफ़ी बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। यात्री [[मुंबई]], [[पुणे]], [[सतारा]], [[कोल्हापुर]], [[अहमदाबाद]] और [[इंदौर]] से बस से सफर कर सकते है।
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;रेल सेवा
 +
देश के लगभग हर कोने से नासिक रोड स्टेशन और देवलाली स्टेशन तक रेल से पहुँचा जा सकता है।
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;हवाई यात्रा
 +
यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इस समय मुंबई है।
 +
[[चित्र:Nashik-Ramkund.jpg|नासिक, रामकुण्ड|thumb|left|250px]]
 
==उद्योग और व्यापार==
 
==उद्योग और व्यापार==
इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले [[रबड़]] उत्पाद, [[कृषि]] उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।
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इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां [[भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक|इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय]] जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले [[रबड़]] उत्पाद, [[कृषि]] उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं। यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।
 
 
 
==कृषि और खनिज==
 
==कृषि और खनिज==
[[चित्र:Surya-Narayan-Mandir-Nasik.jpg|thumb|250px|सूर्य नारायण मंदिर, नासिक]]
 
 
नासिक जिस क्षेत्र में अवस्थित है, उसे गोदावरी और गिरना नदियां अपवाहित करती हैं। जो खुली उपजाऊ घाटियों से गुज़रती है। [[गेंहूँ]], [[ज्वार]]-[[बाजरा]], [[मूँगफली]] यहां की प्रमुख फ़सलें हैं। [[गन्ना]] अग्रणी फ़सल है। नासिक क्षेत्र [[अंगूर|अंगूरों]] के लिए विख्यात है।  
 
नासिक जिस क्षेत्र में अवस्थित है, उसे गोदावरी और गिरना नदियां अपवाहित करती हैं। जो खुली उपजाऊ घाटियों से गुज़रती है। [[गेंहूँ]], [[ज्वार]]-[[बाजरा]], [[मूँगफली]] यहां की प्रमुख फ़सलें हैं। [[गन्ना]] अग्रणी फ़सल है। नासिक क्षेत्र [[अंगूर|अंगूरों]] के लिए विख्यात है।  
==शिक्षण संस्थान==
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====शिक्षण संस्थान====
 
नासिक एक शैक्षणिक केंद्र भी है, जहां पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं।
 
नासिक एक शैक्षणिक केंद्र भी है, जहां पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं।
 
==पर्यटन==
 
==पर्यटन==
शहर का मुख्य हिस्सा नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर [[त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग|त्रयंबकेश्वर]] गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
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[[चित्र:Surya-Narayan-Mandir-Nasik.jpg|thumb|300px|सूर्य नारायण मंदिर, नासिक]]
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शहर का मुख्य हिस्सा [[गोदावरी नदी]] के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु ([[बौद्ध]]) और चामर ([[जैन]]) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर [[त्र्यम्बकेश्वर मंदिर|त्रयंबकेश्वर]] गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
नासिक के पास सीता गुफा नामक एक नीची गुफा है, जिसके अंदर दो गुफाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर [[गौतम]] ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।  
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नासिक के पास सीता गुफ़ा नामक एक नीची गुफ़ा है, जिसके अंदर दो गुफ़ाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात् [[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर [[गौतम]] ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।
  
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* [http://nashik.nic.in/ अधिकारिक वेबसाइट]
 
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07:45, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

नासिक
रामकुण्ड, नासिक
विवरण 'नासिक' एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमोत्तर महाराष्ट्र राज्य में गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है।
राज्य महाराष्ट्र
भौगोलिक स्थिति 20.00° उत्तर 73.78°पूर्व
मार्ग स्थिति यह मुंबई से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है।
कब जाएँ कभी भी जा सकते हैं
कैसे पहुँचें हवाई जहाज, रेल, बस, टैक्सी
हवाई अड्डा गांधीनगर हवाई अड्डा, नासिक
रेलवे स्टेशन देश के लगभग हर कोने से नासिक रोड स्टेशन और देवलाली स्टेशन तक रेल से पहुँचा जा सकता है।
बस अड्डा ओमकार नगर बस डिपो, नासिक
क्या देखें कालाराम मंदिर, नारायण का मंदिर, सीता गुफ़ा आदि
एस.टी.डी. कोड 0-253
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
संबंधित लेख त्र्यम्बकेश्वर, इगतपुरी, चक्रतीर्थ नामकरण माना जाता है कि श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी, जिस कारण इस स्थान का नाम नासिक पड़ा।
अन्य जानकारी 1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर औरंगज़ेब की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और महालक्ष्मी के मंदिर उल्लखेनीय है।
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट

नासिक / नाशिक (अंग्रेज़ी:Nashik) शहर दक्षिण-पश्चिमी भारत के पश्चिमोत्तर महाराष्ट्र राज्य में गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है। यह मुंबई से 180 कि.मी. पूर्वोत्तर में प्रमुख सड़क और रेलमार्ग पर स्थित है। नासिक एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष यहाँ हज़ारों तीर्थयात्री गोदावरी नदी की पवित्रता और महाकाव्य रामायण के नायक भगवान श्रीराम द्वारा अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहाँ कुछ समय तक निवास करने की किंवदंती के कारण आते हैं।

नामकरण

कहा जाता है कि रामायण में वर्णित पंचवटी, जहाँ श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित वनवास काल में बहुत दिनों तक रहे थे, नासिक के निकट ही है। किंवदंती है कि इसी स्थान पर लंका के राजा रावण की भगिनी (बहन) शूर्पणखा को लक्ष्मण ने नासिका विहीन किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'नासिक' कहा जाता है। नासिक हिन्दुओं की आस्था प्राकृतिक सौन्दर्य का अनोखा मिश्रण है।

इतिहास

गोदावरी नदी, नासिक (1848)

नासिक में 200 ई. पू. से द्वितीय शती ई. तक की पांडुलेण नामक बौद्ध गुफ़ाओं का एक समूह है। इसके अतिरिक्त जैनों के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभस्वामी और कुंतीबिहार नामक जैन चैत्य के 14वीं शती में यहाँ होने का उल्लेख जैन लेखक जिनप्रभु सूरि के ग्रंथों में मिलता है। 1680 ई. में लिखित 'तारीखे-औरंगज़ेब' के अनुसार, नासिक के 25 मंदिर औरंगज़ेब की धर्मांधता के शिकार हुए थे। इन विनिष्ट मंदिरों में नारायण, उमामहेश्वर, राम जी, कपालेश्वर और महालक्ष्मी के मंदिर उल्लखेनीय है। इन मंदिरों की सामग्री से यहाँ की जामा मस्जिद की रचना की गई। मस्जिद के स्थान पर पहले महालक्ष्मी का मंदिर स्थित था। नीलकंठेश्वर महादेव के उस प्राचीन मंदिर की चौखट, जो असरा फाटक के पास था, अब भी इसी मंदिर में लगी दिखाई देती है।

प्रसिद्ध मंदिर

नासिक के प्रायः सभी मंदिर मुस्लिम शासन काल के अंतिम दिनों के बने हुए हैं और स्वयं पेशवाओं तथा उनके संबंधियों अथवा राज्याधिकारियों द्वारा बनवाये गए थे। इनमें सबसे अधिक अलंकृत और संपन्न मालेगांव का मंदिर राजा नारूशंकर द्वारा 1747 ई. में 18 लाख रुपये की लागत से बना था। यह मंदिर 83 फुट चौड़ा और 123 फुट लंबा है। शिल्प की दृष्टि से नासिक के सभी मंदिरों में यह सर्वोत्कृष्ट है। इसका विशाल घंटा 1721 ई. में पुर्तग़ाल से बनकर आया था।

कालाराम मंदिर

कालाराम नामक मंदिर 1798 ई. का है। जो बारह वर्षों में 22 लाख रुपये की लागत से बना था। यह 285 फुट लंबे और 105 फुट चौड़े चबूतरे पर अवस्थित है। कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर है जहां श्रीराम ने वनवास काल में अपनी पर्णकुटी बनाई थी। किंवदंती है कि यादव शास्त्री नामक पंडित ने इस मंदिर का पूर्वी भाग इस प्रकार बनवाया था कि मेष और तुला की संक्रांति के दिन, सूर्योदय के समय, सूर्यरश्मियां सीधी भगवान राम की मूर्ति के मुख पर पड़ती हैं। श्री राम की मूर्ति काले पत्थर की है।

सुंदर नारायण का मंदिर

सुंदर नारायण का मंदिर 1756 ई. में और भद्रकाली का मंदिर 1790 ई. में बने थे। नासिक में त्रयंबकेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इसी कारण नासिक का मामात्म्य और भी बढ़ जाता है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नासिक का नाम सतयुग में पद्यनगर, त्रेता में त्रिकंटक, द्वापर में जनस्थान और कलियुग में नासिक है।

त्रयम्बकेश्वर मंदिर

नासिक से 38 किलोमीटर दूर स्थित है 'त्रयम्बकेश्वर मंदिर'। यहाँ भक्तजन कभी भी आ सकते हैं। इस पवित्र स्थान पर सदैव भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है। इस मंदिर को भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रमुख माना जाता है, क्योंकि यहाँ त्रिदेव के दर्शन होते हैं। गोदावरी नदी के उद्गम स्थल और ब्रह्मगिरी की खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में नागर वास्तुकला में बने इस मंदिर को देखना अपने आप में एक उपलब्धि है। काले पत्थर से निर्मित यह मंदिर अपनी प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला के कारण भी सैलानियों को आकर्षित करता है। यह मंदिर 270 वर्गफुट में फैला हुआ है। यहाँ स्वयंभू रूप में अंगूठे के आकार जितने बड़े तीन लिंग हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है।

शिव पूजा का केंद्र

'कृते तु पद्यनगरं त्रेतायां तु त्रकिंटकम्, द्वापरे च जनस्थानुं कलौ नासिकमुच्चते'

नासिक को शिव पूजा का केंद्र होने के कारण 'दक्षिण काशी' भी कहा जाता है। यहाँ आज भी साठ के लगभग मंदिर हैं। 'कलौ गोदावरी गंगा' के अनुसार कलियुग में गोदावरी गंगा के समान ही पवित्र मानी गई है। मराठा साम्राज्य में महत्त्व की दृष्टि से पूना के बाद नासिक का ही स्थान माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार नासिक का यह नाम पहाड़ियों के नवशिखों या शिखरों पर इस नगरी की स्थिति होने के कारण हुआ था। ये नौ शिखर हैं-

  1. जूनीगढ़ी
  2. नवी गढ़ी
  3. कोंकणीटेक
  4. जोगीवाड़ा टेक
  5. म्हास टेक
  6. महालक्ष्मी टेक
  7. सुनार टेक
  8. गणपति टेक
  9. चित्रघंट टेक

मराठी की प्रचलित कहावत 'नासिक नव टेका वर वसाविले' अर्थात् नासिक नौ टेकरियों पर बसा है, नासिक के नाम के बारे में इस किंवदंती की पुष्टि करती है।

श्राद्ध स्थल

श्राद्ध करते लोग

'त्रयम्बकेश्वर' गौतम ऋषि की तपोभूमि है। यह स्थान नासिक से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि गौतम ऋषि ने शिव की तपस्या करके गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा था, जिसके फलस्वरूप यहाँ गोदावरी नदी की धारा प्रवाहित हुई। इसलिए गोदावरी को दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। इस स्थान पर किया श्राद्ध और पिण्डदान सीधा पितरों तक पहुँचता है। इससे पितरों को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है और वह उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान एवं पितरों की संतुष्टि हेतु ब्राह्मण भोजन करवाने से पितर तृप्त होकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।[1] यहाँ गौतम ऋषि की गुफ़ा है, जिसमें 108 शिवलिंग बने हुए हैं। वहीं आगे जाकर नाथ संप्रदाय के सबसे पहले नाथ गोरखनाथ का भी मंदिर है। राम-लक्ष्मण तीर्थ भी यहीं हैं, जहाँ अपने वनवास के दौरान कुछ दिन रुक कर भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। यहाँ राम का काफ़ी विशाल मंदिर भी बना हुआ है। यहीं 'गंगासागर' नाम का बड़ा-सा कुंड भी बना हुआ है।[2] इन्हें भी देखें: श्राद्ध, पितृपक्ष एवं सर्वपितृ अमावस्या

कुम्भ पर्व चक्र

कुम्भ मेले में स्नान करते लोग

'कुम्भ पर्व' विश्व में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं। कुम्भ का संस्कृत अर्थ है- 'कलश'। ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिन्ह है। हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है- हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों मिलती हैं।

नासिक में कुम्भ पर्व

भारत में 12 में से एक ज्योतिर्लिंग, त्र्यम्बकेश्वर नामक पवित्र शहर में स्थित है। यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ है। 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुम्भ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहाँ अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें गिरी थीं। कुम्भ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में स्नान कर अपनी आत्मा की शुद्धि एवं मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ पर शिवरात्रि का त्यौहार भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।

महत्त्वपूर्ण उत्कीर्ण लेख

नासिक के निकट एक गुफ़ा में क्षहरात नरेश नहपान के जमाता उशवदात का एक महत्त्वपूर्ण उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुआ है। जिससे पश्चिमी भारत के द्वितीय शती ई. के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। यह अभिलेख शक संवत संबंधित नारियल के कुंज के दान में दिए जाने का उल्लेख है। नासिक का एक प्राचीन नाम गोवर्धन है। जिसका उल्लेख महावस्तु[3] में है। जैन तीर्थों में भी नासिक की गणना है। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस स्थान को कुंतीबिहार कहा गया है।[4]

यातायात और परिवहन

नासिक का मानचित्र
Nashik Map

नासिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से 150 किलोमीटर और पूना से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम रेलवे के नासिक रोड स्टेशन से 5 मील दूर गोदावरी नदी के तट पर यह प्राचीन नगर बसा है।

कैसे जाएँ

बस द्वारा

नासिक के लिए महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्टेशन की ओर से काफ़ी बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। यात्री मुंबई, पुणे, सतारा, कोल्हापुर, अहमदाबाद और इंदौर से बस से सफर कर सकते है।

रेल सेवा

देश के लगभग हर कोने से नासिक रोड स्टेशन और देवलाली स्टेशन तक रेल से पहुँचा जा सकता है।

हवाई यात्रा

यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इस समय मुंबई है।

नासिक, रामकुण्ड

उद्योग और व्यापार

इस शहर के औद्योगिक क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और यहां बुनाई तथा चीनी व तेल प्रसंस्करण उद्योग प्रमुख हैं। यहां इंडिया सिक्युरिटी प्रेस और करेंसी नोट मुद्रणालय जैसी औद्योगिक इकाइंयां भी स्थित हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों में उपकरण निर्माण, बिजली उपकरणों के उत्पादन में काम आने वाले रबड़ उत्पाद, कृषि उत्पाद और मशीनों के पुर्ज़े शामिल हैं। यहां हवाई जहाज बनाने का एक कारख़ाना भी है।

कृषि और खनिज

नासिक जिस क्षेत्र में अवस्थित है, उसे गोदावरी और गिरना नदियां अपवाहित करती हैं। जो खुली उपजाऊ घाटियों से गुज़रती है। गेंहूँ, ज्वार-बाजरा, मूँगफली यहां की प्रमुख फ़सलें हैं। गन्ना अग्रणी फ़सल है। नासिक क्षेत्र अंगूरों के लिए विख्यात है।

शिक्षण संस्थान

नासिक एक शैक्षणिक केंद्र भी है, जहां पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय हैं।

पर्यटन

सूर्य नारायण मंदिर, नासिक

शहर का मुख्य हिस्सा गोदावरी नदी के दाएं (दक्षिण) तट पर है, जबकि बांए किनारे पर स्थित खंड पंचवटी में कई मंदिर हैं। यह शहर नदी घाटों (सीढ़ीदार स्नान स्थल) से युक्त हैं। नासिक में पांडु (बौद्ध) और चामर (जैन) गुफ़ा मंदिर भी है, जो पहली शताब्दी के हैं। यहां स्थित कई हिंदू मंदिरों में काला राम और गोरा राम को सबसे पावन माना जाता है। नासिक से 22 किमी दूर त्रयंबकेश्वर गांव, जहां 12 शैव ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, तीर्थस्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण है।

सीता गुफ़ा

नासिक के पास सीता गुफ़ा नामक एक नीची गुफ़ा है, जिसके अंदर दो गुफ़ाएं हैं। पहली में नौ सीढ़ियों के पश्चात् राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं और दूसरी पंचरत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। नासिक से दो मील गोदावरी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम है। गोदावरी का उद्गम त्र्यम्बकेश्वर की पहाड़ी में है। जो नासिक से प्रायः बीस मील दूर है।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्राद्ध स्थल जहाँ मिलती है प्रेतयोनी से मुक्ति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2013।
  2. घूमने का पुण्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2013।
  3. सेनार्ट पृ. 363
  4. कुंती पल्लबिहार तारणगढ़े

बाहरी कड़ियाँ

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