"रूमी दरवाज़ा लखनऊ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - " कब्र" to " क़ब्र")
 
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 22 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{incomplete}}
+
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक इमारत
*रूमी दरवाज़े का निर्माण [[नवाब आसफउद्दौला]] ने करवाया था।  
+
|चित्र=Rumi-Darwaza-Lucknow.jpg
*यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था जिससे लोगों को रोजगार मिल सके।[[Category:उत्तर_प्रदेश]]
+
|चित्र का नाम=रूमी दरवाज़ा
 +
|विवरण=[[अवध]] [[वास्तुकला]] के प्रतीक इस दरवाज़े को '''तुर्किश गेटवे''' कहा जाता है।
 +
|राज्य=[[उत्तर प्रदेश]]
 +
|नगर=[[लखनऊ]]
 +
|निर्माता=[[आसफ़उद्दौला]]
 +
|स्वामित्व=
 +
|प्रबंधक=
 +
|निर्माण=1786 ई.
 +
|वास्तुकार=किफ़ायतउल्ला
 +
|वास्तु शैली=रूमी दरवाज़े की ऊंचाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाज़े की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है।
 +
|पुन: निर्माण=
 +
|स्थापना=
 +
|पुन: स्थापना=
 +
|भौगोलिक स्थिति=
 +
|मार्ग स्थिति=
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|एस.टी.डी. कोड=
 +
|मानचित्र लिंक=[https://maps.google.com/maps?saddr=Rumi+Darwaza,+State+Highway+25,+Machchhi+Bhavan,+Lucknow,+Uttar+Pradesh,+India&daddr=Lucknow+Railway+Station,+Kanpur+Road,+Charbagh,+Lucknow,+Uttar+Pradesh,+India&hl=en&ll=26.874,80.922031&spn=0.044252,0.084543&sll=26.858815,80.92936&sspn=0.044258,0.084543&geocode=FfMFmgEdKp_SBCHHoOkM7YgNeym_lctT8P2bOTHHoOkM7YgNew%3BFeBomQEdrNPSBCFJlYlS0YF0sykR_1GWS_ybOTFJlYlS0YF0sw&oq=Lucknow,&mra=ls&t=m&z=14&iwloc=lyrftr:m,903237961405887398,26.87132,80.912075 गूगल मानचित्र]
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=भौगोलिक निर्देशांक
 +
|पाठ 1=26° 51′ 38″ उत्तर, 80° 54′ 57″ पूर्व
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=रूमी दरवाज़ा जब बन रहा था उस वक्त [[अवध]] में [[अकाल]] पड़ा हुआ था, लोगों को रोज़गार मिल सके इसलिए आसफ़उद्दौला ने इन इमारतों की विस्तृत योजना बनाई थी।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
'''रूमी दरवाज़ा''' [[लखनऊ]] के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। लखनऊ का यह भवन विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखता है। नवाब [[आसफ़उद्दौला]] ने सन‍् 1775 में लखनऊ को अपनी सल्तनत का केंद्र बना लिया था।  यह दरवाज़ा जनपद [[लखनऊ]] का '''हस्ताक्षर शिल्प भवन''' है। [[अवध]] [[वास्तुकला]] के प्रतीक इस दरवाज़े को '''तुर्किश गेटवे''' कहा जाता है।
 +
==इतिहास==
 +
सन् 1784 में नवाब आसफ़उद्दौला ने रूमी दरवाज़ा और इमामबाड़ा बनवाना शुरू कर दिया था। इनका निर्माण कार्य सन् 1786 में पूरा हुआ। कहते हैं इनके निर्माण में उस ज़माने में एक करोड़ की लागत आई थी।
 +
रूमी दरवाज़ा जब बन रहा था उस वक्त [[अवध]] में [[अकाल]] पड़ा हुआ था, लोगों को रोज़गार मिल सके इसलिए आसफ़उद्दौला ने इन इमारतों की विस्तृत योजना बनाई थी।[[चित्र:Rumi-Darwaza-Lucknow-2.jpg|left|thumb|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1814-15)]]
 +
==वास्तुशिल्प==
 +
आसफ़उद्दौला के द्वारा बनवाये गये प्रसिद्ध इमामबाड़े और रूमी दरवाज़े का वास्तुशिल्प 'किफ़ायतउल्ला' नाम के एक व्यक्ति ने बनाया था। यह वही कारीगर था, जिसने रूमी दरवाज़े के चंद्राकार अर्धगुंबद का और इमामबाड़े की लदावतार छत की डाट को बखूबी संभाला था। इन सारी इमारतों में लखौड़ी ईंट और बादामी चूने का प्रयोग किया गया है। रूमी दरवाज़ा कॉन्स्टेंटिनोपल के एक प्राचीन दुर्ग द्वार की नकल पर बनवाया गया था और यही कारण है कि इसे 19वीं सदी में लोग '''कुस्तुनतुनिया''' कहकर पुकारा करते थे। नाइटन अपनी किताब 'प्राइवेट लाइफ ऑफ इन ईस्टर्न किंग' में लिखते हैं कि टर्की के सुल्तान के दरबार का प्रवेश द्वार भी इसी मॉडल का था और इसीलिए आज तक योरोपियन इतिहासकार इसे 'टर्किश गेट' कहते हैं। लखनऊ में निर्मित इमारतें किसी एक शैली से संबद्ध नहीं हैं। नवाब आसफ़उद्दौला के समय से ही इमारतों में [[गॉथिक कला]] का असर दिखने लगा था। रोम से अनायास जुड़ जाने वाला रूमी दरवाज़ा रोमन लिपि की तरह भले ही विदेशी वास्तु का प्रतीक मान लिया जाय, इसका मूल प्रभाव भारतीय कला का पोषण करता है।[[चित्र:Rumi-darwaza-lucknow.JPG|left|thumb|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]]]]
 +
==हिंदू-मुस्लिम कला==
 +
रूमी दरवाज़े की ऊंचाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाज़े की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है। दरवाज़े के दोनों तरफ तीन मंजिला हवादार परकोटा बना हुआ है, जिसके सिरे पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए हैं जिन पर गुंबद नहीं है। रूमी दरवाज़े की सजावट निराली है जिसमें हिंदू-मुस्लिम कला का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। यह द्वार ही शंखाकार है, जिसकी मेहराबें कमान की तरह झुकी हुईं हैं। बाहरी मेहराब को नागफनों से सजाया गया है जिन्हें कमल दल भी समझा जा सकता है। यह दोनों निशान अवध प्रदेश के सांस्कृतिक चिन्ह हैं। नागफनों के बीच से सनाल कमल फूलों की सजावट कतार में मिलती है। द्वार के दोनों तरफ कमलासन पर छोटी छतरियां बनाई गई हैं। अंदर की मेहराब मुग़ल परंपरा की शाहजहानी मेहराब है। जिसकी सजावट में नागर कला के बेलबूटे बने हुए हैं उसके शिखर पर फिर एक फूल हुआ कमल बना है।
 +
==कला की एक परंपरा==
 +
18वीं सदी में बनवाया गया ये रूमी दरवाज़ा बाद में भवन निर्माण कला की एक परंपरा बन गया। इस दरवाज़े के पीछे कभी चहारदीवारी हुआ करती थी जिसमें उन अंग्रेज शहीदों की मजारें थीं, जो सन् 1857 की जंगे आज़ादी में किला मच्छी भवन के मोर्चे पर मारे गए थे। इन ब्रिटिश सैनिकों में सार्जेंट लारेंस वर्ग और गर्नर मार्टन की क़ब्रें प्रमुख हैं, जिनके निशान अब भी बाकी हैं।
  
  
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]]__INDEX__
+
 
 +
 
 +
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
 +
==वीथिका==
 +
<gallery>
 +
चित्र:Rumi-Darwaza.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]]
 +
चित्र:Iman-Barra-And-Roome-Durwaza-From-Moosah-Bagh.jpg|मूसा बाग़ से [[बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ|बड़े इमामबाड़े]] और रूमी दरवाज़े का एक दृश्य, [[लखनऊ]] (1860)
 +
चित्र:A-Veiw-Of-Lucknow-1.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1860)
 +
चित्र:Rumi-Darwaza-Lucknow-1.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1811)
 +
चित्र:Gates-Of-Bara-Imambara-And-Rumi-Darwaza.jpg|[[बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ|बड़े इमामबाड़े]] और रूमी दरवाज़े का द्वार, [[लखनऊ]] (1900)
 +
चित्र:Rumi-Darwaza-Lucknow-3.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1857)
 +
चित्र:Rumi-Darwaza-Lucknow-4.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1800)
 +
चित्र:Rumi-Darwaza-Lucknow-5.jpg|रूमी दरवाज़ा, [[लखनऊ]] (1800)
 +
</gallery>
 +
==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
 +
[[Category:लखनऊ]]
 +
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]]
 +
[[Category:उत्तर प्रदेश]]
 +
[[Category:पर्यटन कोश]]
 +
__INDEX__
 +
__NOTOC__

14:14, 13 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

रूमी दरवाज़ा लखनऊ
रूमी दरवाज़ा
विवरण अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाज़े को तुर्किश गेटवे कहा जाता है।
राज्य उत्तर प्रदेश
नगर लखनऊ
निर्माता आसफ़उद्दौला
निर्माण 1786 ई.
वास्तुकार किफ़ायतउल्ला
वास्तु शैली रूमी दरवाज़े की ऊंचाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाज़े की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है।
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
भौगोलिक निर्देशांक 26° 51′ 38″ उत्तर, 80° 54′ 57″ पूर्व
अन्य जानकारी रूमी दरवाज़ा जब बन रहा था उस वक्त अवध में अकाल पड़ा हुआ था, लोगों को रोज़गार मिल सके इसलिए आसफ़उद्दौला ने इन इमारतों की विस्तृत योजना बनाई थी।

रूमी दरवाज़ा लखनऊ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। लखनऊ का यह भवन विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखता है। नवाब आसफ़उद्दौला ने सन‍् 1775 में लखनऊ को अपनी सल्तनत का केंद्र बना लिया था। यह दरवाज़ा जनपद लखनऊ का हस्ताक्षर शिल्प भवन है। अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाज़े को तुर्किश गेटवे कहा जाता है।

इतिहास

सन् 1784 में नवाब आसफ़उद्दौला ने रूमी दरवाज़ा और इमामबाड़ा बनवाना शुरू कर दिया था। इनका निर्माण कार्य सन् 1786 में पूरा हुआ। कहते हैं इनके निर्माण में उस ज़माने में एक करोड़ की लागत आई थी।

रूमी दरवाज़ा जब बन रहा था उस वक्त अवध में अकाल पड़ा हुआ था, लोगों को रोज़गार मिल सके इसलिए आसफ़उद्दौला ने इन इमारतों की विस्तृत योजना बनाई थी।

रूमी दरवाज़ा, लखनऊ (1814-15)

वास्तुशिल्प

आसफ़उद्दौला के द्वारा बनवाये गये प्रसिद्ध इमामबाड़े और रूमी दरवाज़े का वास्तुशिल्प 'किफ़ायतउल्ला' नाम के एक व्यक्ति ने बनाया था। यह वही कारीगर था, जिसने रूमी दरवाज़े के चंद्राकार अर्धगुंबद का और इमामबाड़े की लदावतार छत की डाट को बखूबी संभाला था। इन सारी इमारतों में लखौड़ी ईंट और बादामी चूने का प्रयोग किया गया है। रूमी दरवाज़ा कॉन्स्टेंटिनोपल के एक प्राचीन दुर्ग द्वार की नकल पर बनवाया गया था और यही कारण है कि इसे 19वीं सदी में लोग कुस्तुनतुनिया कहकर पुकारा करते थे। नाइटन अपनी किताब 'प्राइवेट लाइफ ऑफ इन ईस्टर्न किंग' में लिखते हैं कि टर्की के सुल्तान के दरबार का प्रवेश द्वार भी इसी मॉडल का था और इसीलिए आज तक योरोपियन इतिहासकार इसे 'टर्किश गेट' कहते हैं। लखनऊ में निर्मित इमारतें किसी एक शैली से संबद्ध नहीं हैं। नवाब आसफ़उद्दौला के समय से ही इमारतों में गॉथिक कला का असर दिखने लगा था। रोम से अनायास जुड़ जाने वाला रूमी दरवाज़ा रोमन लिपि की तरह भले ही विदेशी वास्तु का प्रतीक मान लिया जाय, इसका मूल प्रभाव भारतीय कला का पोषण करता है।

रूमी दरवाज़ा, लखनऊ

हिंदू-मुस्लिम कला

रूमी दरवाज़े की ऊंचाई 60 फीट है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर एक अठपहलू छतरी बनी हुई है, जहां तक जाने के लिए रास्ता है। पश्चिम की ओर से रूमी दरवाज़े की रूपरेखा त्रिपोलिया जैसी है जबकि पूर्व की ओर से यह पंचमहल मालूम होता है। दरवाज़े के दोनों तरफ तीन मंजिला हवादार परकोटा बना हुआ है, जिसके सिरे पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए हैं जिन पर गुंबद नहीं है। रूमी दरवाज़े की सजावट निराली है जिसमें हिंदू-मुस्लिम कला का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। यह द्वार ही शंखाकार है, जिसकी मेहराबें कमान की तरह झुकी हुईं हैं। बाहरी मेहराब को नागफनों से सजाया गया है जिन्हें कमल दल भी समझा जा सकता है। यह दोनों निशान अवध प्रदेश के सांस्कृतिक चिन्ह हैं। नागफनों के बीच से सनाल कमल फूलों की सजावट कतार में मिलती है। द्वार के दोनों तरफ कमलासन पर छोटी छतरियां बनाई गई हैं। अंदर की मेहराब मुग़ल परंपरा की शाहजहानी मेहराब है। जिसकी सजावट में नागर कला के बेलबूटे बने हुए हैं उसके शिखर पर फिर एक फूल हुआ कमल बना है।

कला की एक परंपरा

18वीं सदी में बनवाया गया ये रूमी दरवाज़ा बाद में भवन निर्माण कला की एक परंपरा बन गया। इस दरवाज़े के पीछे कभी चहारदीवारी हुआ करती थी जिसमें उन अंग्रेज शहीदों की मजारें थीं, जो सन् 1857 की जंगे आज़ादी में किला मच्छी भवन के मोर्चे पर मारे गए थे। इन ब्रिटिश सैनिकों में सार्जेंट लारेंस वर्ग और गर्नर मार्टन की क़ब्रें प्रमुख हैं, जिनके निशान अब भी बाकी हैं।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख