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==स्थापत्य==
 
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उस समय का सबसे विशाल पुल माने जाने वाले पुल से [[गोमती नदी]] का अवलोकन करने के लिए भी लार्ड हडिंग ने इंतजाम किए थे। अधिकारियों और इंजीनियरों ने यहां पुल के दोनों ओर 6-6 नक्काशीदार अटारियां (बालकनी) भी बनवाई थीं। पुल के दोनों ओर लगभग 10 मीटर ऊंचाई के भारी भरकम कलात्मक स्तंभ भी बनवाए। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण का कहना है कि अंग्रेजों की यह कृति इस मायने में भी ख़ास है कि आज भी इसकी बनावट बेजोड़ है। ये कलात्मक रूप से मजबूत है।
 
उस समय का सबसे विशाल पुल माने जाने वाले पुल से [[गोमती नदी]] का अवलोकन करने के लिए भी लार्ड हडिंग ने इंतजाम किए थे। अधिकारियों और इंजीनियरों ने यहां पुल के दोनों ओर 6-6 नक्काशीदार अटारियां (बालकनी) भी बनवाई थीं। पुल के दोनों ओर लगभग 10 मीटर ऊंचाई के भारी भरकम कलात्मक स्तंभ भी बनवाए। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण का कहना है कि अंग्रेजों की यह कृति इस मायने में भी ख़ास है कि आज भी इसकी बनावट बेजोड़ है। ये कलात्मक रूप से मजबूत है।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
डॉ. यागेश प्रवीण का कहना है कि पक्के पुल के स्थान पर पहले पत्थर का बना पुल था, जिसे '''शाही पुल''' कहा जाता था। इसे शाही पुल इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस पुल पर से पार जाने का टोल टैक्स नवाब आसिफुद्दौला की बेगम शमशुन निशां लेती थीं। [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के गदर]] के बाद जब [[अंग्रेज़ी शासन|अंग्रेजों]] ने [[अवध]] संभाला तो उन्होंने पुल को कमज़ोर करार दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि सेना, तोपों के आने-जाने के बाद से ये कमज़ोर हो गया है। तब अंग्रेजों ने इसे तोड़ने का फैसला किया। पुराना पुल 1911 में तोड़ा गया और उसी के साथ नए पुल की आधारशिला रखी गई। लार्ड हडिंग ने इसका 10 जनवरी 1914 को उद्घाटन किया। इसे चूंकि [[लाल रंग]] से रंगा पोता गया था, इसलिए इसे '''लाल पुल या पक्का पुल''' के नाम से भी जाना जाता है।
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डॉ. यागेश प्रवीण का कहना है कि पक्के पुल के स्थान पर पहले पत्थर का बना पुल था, जिसे '''शाही पुल''' कहा जाता था। इसे शाही पुल इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस पुल पर से पार जाने का टोल टैक्स नवाब आसिफुद्दौला की बेगम शमशुन निशां लेती थीं। [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 के गदर]] के बाद जब [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] ने [[अवध]] संभाला तो उन्होंने पुल को कमज़ोर करार दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि सेना, तोपों के आने-जाने के बाद से ये कमज़ोर हो गया है। तब अंग्रेजों ने इसे तोड़ने का फैसला किया। पुराना पुल 1911 में तोड़ा गया और उसी के साथ नए पुल की आधारशिला रखी गई। लार्ड हडिंग ने इसका 10 जनवरी 1914 को उद्घाटन किया। इसे चूंकि [[लाल रंग]] से रंगा पोता गया था, इसलिए इसे '''लाल पुल या पक्का पुल''' के नाम से भी जाना जाता है।[[चित्र:Lal pul.JPG|thumb|left|लाल पुल, [[लखनऊ]]]]
 
==आधुनिक निर्माण==
 
==आधुनिक निर्माण==
पी.डब्ल्यू.डी. की ओर से बनाए गए इस ऐतिहासिक पक्के पुल के कॉन्ट्रैक्टर गुरप्रसाद थे। पुल के निर्माण में कई अंग्रेज अधिकारियों की टीम भी लगी हुई थी। एच.एस. विब्लुड और आर.जे. पावेल दोनों इंजीनियर, मेजर एस.डी.ए. क्रुकशैंक, ए.सी. वैरियर्स और कैप्टन जे.ए. ग्रीम तीनों एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर रहे। जबकि सी.एफ. हंटर और एस.सी. एडगर्ब पुल निर्माण के समय असिस्टेंट इंजीनियर थे। अवध के नवाब वज़ीर आसिफुद्दौला के समय में बनाए गए पुराने शाही पुल के स्थान पर इस पुल को बनाया गया।
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पी.डब्ल्यू.डी. की ओर से बनाए गए इस ऐतिहासिक पक्के पुल के कॉन्ट्रैक्टर गुरप्रसाद थे। पुल के निर्माण में कई अंग्रेज़ अधिकारियों की टीम भी लगी हुई थी। एच.एस. विब्लुड और आर.जे. पावेल दोनों इंजीनियर, मेजर एस.डी.ए. क्रुकशैंक, ए.सी. वैरियर्स और कैप्टन जे.ए. ग्रीम तीनों एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर रहे। जबकि सी.एफ. हंटर और एस.सी. एडगर्ब पुल निर्माण के समय असिस्टेंट इंजीनियर थे। अवध के नवाब वज़ीर आसफ़उद्दौला के समय में बनाए गए पुराने शाही पुल के स्थान पर इस पुल को बनाया गया।
[[चित्र:Lal pul.JPG|thumb|लाल पुल, [[लखनऊ]]]]
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==सिनेमा में योगदान==
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[[लखनऊ]] में शूट होने वाली फिल्मों में पक्का पुल खूब दिखता है। सनी देओल की गदर एक प्रेम कथा में तो बकायदा एक चेज सीन तक इस पर फिल्माया गया है। इसके अलावा हाल ही में शहर में शूट हुई यशराज बैनर की फिल्म दावत-ए-इश्क में भी कई सीन इसके आसपास फिल्माए गए। कई फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में लखनऊ की पहचान दिखाते स्थलों में [[रूमी दरवाज़ा लखनऊ|रूमी दरवाजे]], [[घंटाघर लखनऊ|घंटाघर]] के बाद इसी पुल का दिग्दर्शन होता है।
 
  
  
  
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11:30, 4 मार्च 2014 का अवतरण

लाल पुल लखनऊ
लाल पुल
विवरण लाल पुल जिसे ‘पक्का पुल’ के नाम से भी जाना जाता है सन् 1914 में बनकर तैयार हुआ था।
राज्य उत्तर प्रदेश
नगर लखनऊ
निर्माता आसफ़उद्दौला
पुन: निर्माण 10 जनवरी, 1914
मार्ग स्थिति अमौसी हवाई अड्डे से कानपुर रोड द्वारा लगभग 16 किमी की दूरी पर है।
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी आसफ़उद्दौला द्वारा निर्मित पुराने शाही पुल को 1911 में कमज़ोर बता कर तोड़ दिये जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने 10 जनवरी 1914 यह पुल बनाकर लखनऊ की जनता को सौंपा था।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर का लाल पुल जिसे ‘पक्का पुल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पुल 10 जनवरी 1914 को बनकर तैयार हुआ था। इस पुल को बने 100 साल हो गये हैं।

निर्माण

अवध के नवाब आसफ़उद्दौला द्वारा निर्मित पुराने शाही पुल को 1911 में कमज़ोर बता कर तोड़ दिये जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने 10 जनवरी 1914 यह पुल बनाकर लखनऊ की जनता को सौंपा था।

स्थापत्य

उस समय का सबसे विशाल पुल माने जाने वाले पुल से गोमती नदी का अवलोकन करने के लिए भी लार्ड हडिंग ने इंतजाम किए थे। अधिकारियों और इंजीनियरों ने यहां पुल के दोनों ओर 6-6 नक्काशीदार अटारियां (बालकनी) भी बनवाई थीं। पुल के दोनों ओर लगभग 10 मीटर ऊंचाई के भारी भरकम कलात्मक स्तंभ भी बनवाए। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण का कहना है कि अंग्रेजों की यह कृति इस मायने में भी ख़ास है कि आज भी इसकी बनावट बेजोड़ है। ये कलात्मक रूप से मजबूत है।

इतिहास

डॉ. यागेश प्रवीण का कहना है कि पक्के पुल के स्थान पर पहले पत्थर का बना पुल था, जिसे शाही पुल कहा जाता था। इसे शाही पुल इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस पुल पर से पार जाने का टोल टैक्स नवाब आसिफुद्दौला की बेगम शमशुन निशां लेती थीं। 1857 के गदर के बाद जब अंग्रेजों ने अवध संभाला तो उन्होंने पुल को कमज़ोर करार दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि सेना, तोपों के आने-जाने के बाद से ये कमज़ोर हो गया है। तब अंग्रेजों ने इसे तोड़ने का फैसला किया। पुराना पुल 1911 में तोड़ा गया और उसी के साथ नए पुल की आधारशिला रखी गई। लार्ड हडिंग ने इसका 10 जनवरी 1914 को उद्घाटन किया। इसे चूंकि लाल रंग से रंगा पोता गया था, इसलिए इसे लाल पुल या पक्का पुल के नाम से भी जाना जाता है।

लाल पुल, लखनऊ

आधुनिक निर्माण

पी.डब्ल्यू.डी. की ओर से बनाए गए इस ऐतिहासिक पक्के पुल के कॉन्ट्रैक्टर गुरप्रसाद थे। पुल के निर्माण में कई अंग्रेज़ अधिकारियों की टीम भी लगी हुई थी। एच.एस. विब्लुड और आर.जे. पावेल दोनों इंजीनियर, मेजर एस.डी.ए. क्रुकशैंक, ए.सी. वैरियर्स और कैप्टन जे.ए. ग्रीम तीनों एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर रहे। जबकि सी.एफ. हंटर और एस.सी. एडगर्ब पुल निर्माण के समय असिस्टेंट इंजीनियर थे। अवध के नवाब वज़ीर आसफ़उद्दौला के समय में बनाए गए पुराने शाही पुल के स्थान पर इस पुल को बनाया गया।

सिनेमा में योगदान

लखनऊ में शूट होने वाली फिल्मों में पक्का पुल खूब दिखता है। सनी देओल अभिनीत गदर एक प्रेम कथा में तो बकायदा एक चेज सीन तक इस पर फिल्माया गया है। इसके अलावा हाल ही में शहर में शूट हुई यशराज बैनर की फिल्म दावत-ए-इश्क में भी कई सीन इसके आसपास फिल्माए गए। कई फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में लखनऊ की पहचान दिखाते स्थलों में रूमी दरवाजे, घंटाघर के बाद इसी पुल का दिग्दर्शन होता है।



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