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सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षि‍त महाराजा सुखदेव जी से भागवत गीता सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहाँ पर पर भगवान [[गणेश]] की 35 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्‍थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर [[अक्षय वट]] और भगवान [[हनुमान]] जी की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। प्रत्येक वर्ष इस स्थान पर कई भक्त आते हैं और इस अमर, बरगद के पेड़ (अक्षय वट वृक्ष) की परिक्रमा करना नहीं भूलते।  
 
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वह स्थान कहाँ है जहाँ 16 वर्षीय [[व्यास]] जी के पुत्र शुकदेव जी सम्राट [[परीक्षित]] को उनके अंतिम समय आने पर 18000 श्लोकोंकी भागवत - कथा सुनाई थी ? जबकि [[शुकदेव]] जी किसी जगह पर मात्र उतनें समय तक रुकते थे जितना समय एक [[गाय]] के [[दूध]] को निकालने में लगता है। इस सम्बन्ध में भागवत के अनुसार [[गंगा]] के तट पर जहाँ परीक्षित बैठे थे।
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# वह गंगा का दक्षिणी तट था। अर्थात वहाँ गंगा पश्चिम से पूर्व की ओर बह रही थी जबकि आज हरिद्वार से हस्तिनापुर के मध्य गंगा कहीं भी पूर्व मुखी नहीं दिखती।
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# परीक्षित उत्तर मुखी कुश के आसन पर बैठे थे।
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# कुश पूर्व मुखी स्थिति में बिछाए गए थे अर्थात कुश के नोकीले छोर पूर्व मुखी रखे गए थे।
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* वर्तमान में [[हरिद्वार]] से [[हस्तिनापुर]] तक गंगा उत्तर से दक्षिण दिशा में बह रही हैं। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मुज़फ़्फ़र नगर से पूर्व में स्थित शुक्रताल वह स्थान है जहाँ सुकदेवजी परीक्षित को भागवत कथा सुनायी थी। शुक्रताल हस्तिनापुर से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर में है और गंगा के ठीक तट पर नहीं है। शुक्रताल मुज़फ़्फ़र नगर से लगभग 28 किलोमीटर पूर्व में गंगा की ओर है। हो सकता है कि उस समय गंगा शुक्रताल से बह रही हो और वहाँ उनका बहाव पूर्व मुखी रहा हो।
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* परीक्षित के बाद 6वें बंशज हुए नेमिचक्र जिनके समय में गंगा हस्तिनापुर को बहा ले गयी थी और नेमिचक्र [[यमुना]] के तट पर [[प्रयाग]] के पास स्थित [[कौशाम्बी]] नगर में जा बसे थे।
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* कौशाम्बी [[बुद्ध]] के समय एक ख्याति प्राप्त व्यापारिक केंद्र होता था जो बुद्ध के आवागमन का भी केंद्र था।
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* जब गंगा हस्तिनापुर को बहा के ले गयी तब गंगा का मार्ग आज के शुक्रताल से कुछ और पूर्व की ओर हो गया हो। हस्तिनापुर को गंगा आज से लगभग 3450 साल पहले बहा ले गयी थी।<ref>भागवत : 12.1-12.2</ref><ref>{{cite web |url=http://jurawans.blogspot.in/2014/06/blog-post.html |title=शुक्रताल का रहस्य |accessmonthday=7 मई|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= html|publisher=aum shanti aum|language=हिन्दी }}</ref>
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

12:18, 7 मई 2016 का अवतरण

शुक्रताल प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल हॅ। यह मुज़फ़्फ़र नगर के समीप स्थित है। यहाँ संस्कृत महाविद्यालय है। यह स्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित शुक्रताल जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

पौराणिक मान्यता

कहा जाता है कि शुक्रताल पर अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पश्चात् केवल महर्षि सुखदेव जी ने भागवत गीता का वर्णन किया था। इसके समीप स्थित वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही सुखदेव जी भागवत गीता के बारे में बताया करते थे।

सुखदेव मंदिर

सुखदेव मंदिर के भीतर एक यज्ञशाला भी है। राजा परीक्षि‍त महाराजा सुखदेव जी से भागवत गीता सुना करते थे। इसके अतिरिक्त यहाँ पर पर भगवान गणेश की 35 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्‍थापित है। इसके साथ ही इस जगह पर अक्षय वट और भगवान हनुमान जी की 72 फीट ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। प्रत्येक वर्ष इस स्थान पर कई भक्त आते हैं और इस अमर, बरगद के पेड़ (अक्षय वट वृक्ष) की परिक्रमा करना नहीं भूलते।

शुक्रताल का रहस्य

वह स्थान कहाँ है जहाँ 16 वर्षीय व्यास जी के पुत्र शुकदेव जी सम्राट परीक्षित को उनके अंतिम समय आने पर 18000 श्लोकोंकी भागवत - कथा सुनाई थी ? जबकि शुकदेव जी किसी जगह पर मात्र उतनें समय तक रुकते थे जितना समय एक गाय के दूध को निकालने में लगता है। इस सम्बन्ध में भागवत के अनुसार गंगा के तट पर जहाँ परीक्षित बैठे थे।

  1. वह गंगा का दक्षिणी तट था। अर्थात वहाँ गंगा पश्चिम से पूर्व की ओर बह रही थी जबकि आज हरिद्वार से हस्तिनापुर के मध्य गंगा कहीं भी पूर्व मुखी नहीं दिखती।
  2. परीक्षित उत्तर मुखी कुश के आसन पर बैठे थे।
  3. कुश पूर्व मुखी स्थिति में बिछाए गए थे अर्थात कुश के नोकीले छोर पूर्व मुखी रखे गए थे।
  • वर्तमान में हरिद्वार से हस्तिनापुर तक गंगा उत्तर से दक्षिण दिशा में बह रही हैं। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि मुज़फ़्फ़र नगर से पूर्व में स्थित शुक्रताल वह स्थान है जहाँ सुकदेवजी परीक्षित को भागवत कथा सुनायी थी। शुक्रताल हस्तिनापुर से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर में है और गंगा के ठीक तट पर नहीं है। शुक्रताल मुज़फ़्फ़र नगर से लगभग 28 किलोमीटर पूर्व में गंगा की ओर है। हो सकता है कि उस समय गंगा शुक्रताल से बह रही हो और वहाँ उनका बहाव पूर्व मुखी रहा हो।
  • परीक्षित के बाद 6वें बंशज हुए नेमिचक्र जिनके समय में गंगा हस्तिनापुर को बहा ले गयी थी और नेमिचक्र यमुना के तट पर प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी नगर में जा बसे थे।
  • कौशाम्बी बुद्ध के समय एक ख्याति प्राप्त व्यापारिक केंद्र होता था जो बुद्ध के आवागमन का भी केंद्र था।
  • जब गंगा हस्तिनापुर को बहा के ले गयी तब गंगा का मार्ग आज के शुक्रताल से कुछ और पूर्व की ओर हो गया हो। हस्तिनापुर को गंगा आज से लगभग 3450 साल पहले बहा ले गयी थी।[1][2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत : 12.1-12.2
  2. शुक्रताल का रहस्य (हिन्दी) (html) aum shanti aum। अभिगमन तिथि: 7 मई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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