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'''स्वामी रामतीर्थ''' (जन्म: [[1873]] गुजरांवाला, ब्रिटिश भारत - मृत्यु: [[17 अक्टूबर]] [[1906]] [[टिहरी गढ़वाल|टिहरी]])<ref>[http://www.ramatirtha.org/rama.htm आधिकारिक वेबसाइट]</ref> [[वेदांत]] की जीती-जागती मूर्ति थे।
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'''स्वामी रामतीर्थ''' (जन्म- [[1873]] मीरालीवाला, [[पंजाब]] प्रांत<ref>अब पाकिस्तान में</ref>; मृत्यु- [[17 अक्टूबर]] [[1906]], [[टिहरी गढ़वाल|टिहरी]]) [[वेदांत]] की जीती-जागती मूर्ति थे।<ref>[http://www.ramatirtha.org/rama.htm आधिकारिक वेबसाइट]</ref> उनका मूल नाम 'तीरथ राम' था। वे एक [[हिन्दू]] धार्मिक नेता थे, जो अत्यधिक व्यक्तिगत और काव्यात्मक ढंग के व्यावहारिक [[वेदांत]] को पढ़ाने के लिए विख्यात थे। वह मनुष्य के दैवी स्वरूप के वर्णन के लिए सामान्य अनुभवों का प्रयोग करते थे। रामतीर्थ के लिए हर प्रत्यक्ष वस्तु ईश्वर का प्रतिबिंब थी।
==जन्म==
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स्वामी रामतीर्थ का जन्म अविभाजित [[पंजाब]] के मुरारीवाला गांव में 1873 ई. में हुआ था।
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==शिक्षा==
==जीवन परिचय==
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'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' एवं 'गवर्नमेंट कॉलेज, [[लाहौर]] से शिक्षित रामतीर्थ [[1895]] में क्रिश्चियन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक नियुक्त हुए थे। [[स्वामी विवेकानंद]] के साथ मुलाकात सें धार्मिक अध्ययन में रुचि तथा अद्वैत वेदांत के [[एकेश्वरवाद|एकेश्वरवादी]] सिद्धांत के प्रचार के प्रति उनकी इच्छा और भी मजबूत हुई। उन्होंने [[उर्दू भाषा|उर्दू]] पत्रिका 'अलिफ़' को स्थापित करने मे अपना सहयोग दिया, जिसमें वेदांत के बारे में उनके कई लेख छपे।
इनका बचपन का नाम तीर्थराम था। इन्होंने बड़ी हृदय-विदारक परिस्थितियों में विद्याध्ययन किया। आध्यात्मिक लग्न और तीव्र बुद्धि इनमें बचपन से ही थी। अध्ययन पूरा करने के बाद गणित के प्रोफेसर बने, किंतु ध्यान आध्यात्म में ही लगा रहता था। अत: एक दिन गणित की अध्यापकी को अलविदा कहकर साधना के उद्देश्य से [[उत्तराखंड]] की ओर चल दिए। संन्यास ग्रहण किया, तीर्थराम से स्वामी रामतीर्थ बन गए। यहीं इन्हें आत्मबोध हुआ। ये किसी के चेले नहीं बने, न कभी किसी को अपना चेला बनाया। अद्वैत वेदांत इनका प्रिय विषय था और जीवन से जुड़ा हुआ था। स्वामीजी [[हिन्दी]] के समर्थक थे और देश की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे। वे कहा करते थे कि राष्ट्र के धर्म को निजी [[धर्म]] से ऊंचा स्थान दो। देश के भूखे नारायणों की और मेहनत करने वाले [[विष्णु]] की पूजा करो। स्वामीजी ने [[जापान]] और [[अमेरिका]] की यात्रा की और सर्वत्र लोग उनके विचारों की ओर आकृष्ट हुए। वे [[स्वामी विवेकानंद]] के समकालीन थे और दोनों में संपर्क भी था।  
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रामतीर्थ ने बड़ी हृदय-विदारक परिस्थितियों में विद्याध्ययन किया था। आध्यात्मिक लगन और तीव्र बुद्धि इनमें बचपन से ही थी। यद्यपि वे शिक्षक के रूप में अपना कार्य भली-भाँति कर रहे थे, फिर भी [[ध्यान]] हमेशा अध्यात्म की ओर ही लगा रहता था। अत: एक दिन गणित की अध्यापकी को अलविदा कह दिया। [[1901]] में वे अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़कर [[हिमालय]] में एकातंवास के लिए चले गए और संन्यास ग्रहण कर लिया। यहीं से उनका नाम तीरथ राम से 'स्वामी रामतीर्थ' हो गया। यहीं इन्हें आत्मबोध हुआ। ये किसी के चेले नहीं बने, न कभी किसी को अपना चेला बनाया। अद्वैत वेदांत इनका प्रिय विषय था और जीवन से जुड़ा हुआ था।
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स्वामीजी [[हिन्दी]] के समर्थक थे और देश की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे। वे कहा करते थे कि राष्ट्र के [[धर्म]] को निजी धर्म से ऊँचा स्थान दो। देश के भूखे नारायणों की और मेहनत करने वाले [[विष्णु]] की [[पूजा]] करो। स्वामीजी ने [[जापान]] और [[अमेरिका]] की यात्रा की और सर्वत्र लोग उनके विचारों की ओर आकृष्ट हुए। वे [[स्वामी विवेकानंद]] के समकालीन थे और दोनों में संपर्क भी था। स्वामी जी ने व्यक्ति की निजी मुक्ति से शुरू होकर पूरी मानव जाति की पूर्ण मुक्ति की वकालत की। जिस आनंद के साथ वह [[वेदांत]] की पांरपरिक शिक्षा का प्रचार करते थे, उसी में उनका अनोखापन था। अक्सर वह धार्मिक प्रश्नों का जवाब दीर्घ हंसी के साथ देते थे। अपने आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ वह पशिचमी विज्ञान एवं प्रौधोगिकी को [[भारत]] की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के समाधान का साधन भी मानते थे। उन्होंने जन शिक्षा के हर रूप का भरपूर समर्थन किया।
 
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स्वामी रामतीर्थ

स्वामी रामतीर्थ (जन्म- 1873 मीरालीवाला, पंजाब प्रांत[1]; मृत्यु- 17 अक्टूबर 1906, टिहरी) वेदांत की जीती-जागती मूर्ति थे।[2] उनका मूल नाम 'तीरथ राम' था। वे एक हिन्दू धार्मिक नेता थे, जो अत्यधिक व्यक्तिगत और काव्यात्मक ढंग के व्यावहारिक वेदांत को पढ़ाने के लिए विख्यात थे। वह मनुष्य के दैवी स्वरूप के वर्णन के लिए सामान्य अनुभवों का प्रयोग करते थे। रामतीर्थ के लिए हर प्रत्यक्ष वस्तु ईश्वर का प्रतिबिंब थी।

शिक्षा

'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' एवं 'गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से शिक्षित रामतीर्थ 1895 में क्रिश्चियन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक नियुक्त हुए थे। स्वामी विवेकानंद के साथ मुलाकात सें धार्मिक अध्ययन में रुचि तथा अद्वैत वेदांत के एकेश्वरवादी सिद्धांत के प्रचार के प्रति उनकी इच्छा और भी मजबूत हुई। उन्होंने उर्दू पत्रिका 'अलिफ़' को स्थापित करने मे अपना सहयोग दिया, जिसमें वेदांत के बारे में उनके कई लेख छपे।

संन्यास

रामतीर्थ ने बड़ी हृदय-विदारक परिस्थितियों में विद्याध्ययन किया था। आध्यात्मिक लगन और तीव्र बुद्धि इनमें बचपन से ही थी। यद्यपि वे शिक्षक के रूप में अपना कार्य भली-भाँति कर रहे थे, फिर भी ध्यान हमेशा अध्यात्म की ओर ही लगा रहता था। अत: एक दिन गणित की अध्यापकी को अलविदा कह दिया। 1901 में वे अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़कर हिमालय में एकातंवास के लिए चले गए और संन्यास ग्रहण कर लिया। यहीं से उनका नाम तीरथ राम से 'स्वामी रामतीर्थ' हो गया। यहीं इन्हें आत्मबोध हुआ। ये किसी के चेले नहीं बने, न कभी किसी को अपना चेला बनाया। अद्वैत वेदांत इनका प्रिय विषय था और जीवन से जुड़ा हुआ था।

राष्ट्र धर्म के पक्षधर

स्वामीजी हिन्दी के समर्थक थे और देश की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे। वे कहा करते थे कि राष्ट्र के धर्म को निजी धर्म से ऊँचा स्थान दो। देश के भूखे नारायणों की और मेहनत करने वाले विष्णु की पूजा करो। स्वामीजी ने जापान और अमेरिका की यात्रा की और सर्वत्र लोग उनके विचारों की ओर आकृष्ट हुए। वे स्वामी विवेकानंद के समकालीन थे और दोनों में संपर्क भी था। स्वामी जी ने व्यक्ति की निजी मुक्ति से शुरू होकर पूरी मानव जाति की पूर्ण मुक्ति की वकालत की। जिस आनंद के साथ वह वेदांत की पांरपरिक शिक्षा का प्रचार करते थे, उसी में उनका अनोखापन था। अक्सर वह धार्मिक प्रश्नों का जवाब दीर्घ हंसी के साथ देते थे। अपने आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ वह पशिचमी विज्ञान एवं प्रौधोगिकी को भारत की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के समाधान का साधन भी मानते थे। उन्होंने जन शिक्षा के हर रूप का भरपूर समर्थन किया।

मृत्यु

1906 ई. में दीपावली के दिन, जब वे केवल 33 वर्ष के थे, टिहरी के पास भागीरथी में स्नान करते समय भंवर में फंस जाने के कारण उनका शरीर पवित्र नदी में समा गया। उनकी मृत्यु एक दुर्घटना थी या किसी षड़यंत्र के कारण ऐसा हुआ, यह उनके अनुयायियों के बीच आज भी रहस्य बना हुआ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अब पाकिस्तान में
  2. आधिकारिक वेबसाइट

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