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'''हीराबाई बरोदेकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hirabai Barodekar'', जन्म- [[29 मई]], [[1905]]; मृत्यु- [[20 नवंबर]], [[1989]]) किराना घराने की हिन्दुस्तानी शस्त्रीय गायिका थीं। उन्हें [[कला]] के क्षेत्र में [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[1970]] में '[[पद्म भूषण]]' से सम्मानित किया गया था। हीराबाई बरोदेकर एक प्रतिभाशाली गायिका ही नहीं, बल्कि [[भारत]] की पहली महिला कलाकार थीं जिन्हें पुरुषों के वर्चस्व के दौर में लोग कॉन्सर्ट में सुनने आए। साल [[1947]] में हीराबाई ने अपने जीवन की सबसे ख़ास प्रस्तुति दी थी। [[15 अगस्त]] के दिन जब देश आज़ाद हुआ, उन्हें [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िले]] पर ख़ासतौर पर आमंत्रित किया गया था, जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय गीत ‘[[वंदे मातरम]]’ गाया था।
 
'''हीराबाई बरोदेकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hirabai Barodekar'', जन्म- [[29 मई]], [[1905]]; मृत्यु- [[20 नवंबर]], [[1989]]) किराना घराने की हिन्दुस्तानी शस्त्रीय गायिका थीं। उन्हें [[कला]] के क्षेत्र में [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[1970]] में '[[पद्म भूषण]]' से सम्मानित किया गया था। हीराबाई बरोदेकर एक प्रतिभाशाली गायिका ही नहीं, बल्कि [[भारत]] की पहली महिला कलाकार थीं जिन्हें पुरुषों के वर्चस्व के दौर में लोग कॉन्सर्ट में सुनने आए। साल [[1947]] में हीराबाई ने अपने जीवन की सबसे ख़ास प्रस्तुति दी थी। [[15 अगस्त]] के दिन जब देश आज़ाद हुआ, उन्हें [[लाल क़िला दिल्ली|लाल क़िले]] पर ख़ासतौर पर आमंत्रित किया गया था, जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय गीत ‘[[वंदे मातरम]]’ गाया था।
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==जन्म==
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हीराबाई बरोदेकर का जन्म 29 मई, 1905 में [[महाराष्ट्र]] के मिरज में हुआ था। [[पिता]] उस्ताद अब्दुल करीम खां बड़ौदा राजघराने के शाही गायक थे और [[माता]] ताराबाई माने उस राजघराने की सदस्य थीं। परिवारों की रज़ामंदी न होने पर भी दोनों ने [[विवाह]] किया। उनके पांच बच्चे हुए। इनमें से दूसरी बच्ची थीं हीराबाई, जिनका नाम उनके मां और पिता ने चंपाकली रखा था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://hindi.feminisminindia.com/2020/02/13/first-indian-female-singer-hirabai-barodekar-perform-in-concert-hindi/ |title=भारत की पहली गायिका जिन्होंने कॉन्सर्ट में गाया था|accessmonthday=21 अप्रॅल|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.feminisminindia.com |language=हिंदी}}</ref>
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====शिक्षा====
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हीराबाई की [[संगीत]] की शिक्षा बचपन से ही शुरू हो गई थी। तब तक उनके बड़े भाई सुरेशबाबू माने, भी संगीत की दुनिया में अपना कदम रख चुके थे। आगरा घराने के गायक उस्ताद अहमद खां ने हीराबाई को गाना सिखाना शुरू किया। बाद में जब साल [[1922]] में उस्ताद अब्दुल करीम और ताराबाई का तलाक़ हो गया, तब हीराबाई अपने भाई-बहनों के साथ अपनी मां के साथ चली गईं और सुरेशबाबू से संगीत सीखने लगी। बाद में उन्होंने उस दौर के कुछ जानेमाने संगीतकारों से भी शिक्षा ली, जैसे- भास्करबुवा बखळे और उस्ताद अब्दुल वाहिद, जो उनके पिता के भाई भी थे।
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==सफलता==
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साल [[1921]] में हीराबाई ने बंबई (वर्तमान [[मुम्बई]]) में गांधर्व महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में अपना पहला परफॉरमेंस दिया था। इसके बाद उन्होंने साल [[1937]] में कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) के 'ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ़्रेंस' में भी भाग लिया। उनकी प्रतिभा ने सुनने वालों को चौंका दिया था, क्योंकि किसी ने सोचा नहीं था कि दुबली-पतली, दिखने में साधारण हीराबाई में इतना टैलेंट होगा। हीराबाई का नाम धीरे-धीरे सब जानने लगे थे और आने वाले कुछ सालों में उन्होंने अपना पहला पब्लिक कॉन्सर्ट दिया। तब साधारण समाज में महिलाओं के स्टेज पर परफॉर्म करने को बुरी नज़र में देखा जाता था। उनके चरित्र पर सवाल उठाए जाते थे। ऐसे में हीराबाई [[भारत]] की पहली महिला गायिका बनीं, जिन्होंने आमजनता के लिए स्टेज पर गाया और जिन्हें लोग टिकट खरीदकर सुनने भी गए।
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साल [[1924]] में मानिकचंद गाँधी से विवाह के बाद हीराबाई बरोदेकर [[पुणे]] चली आईं। उनकी संगीत की चर्चा रुकी नहीं और कॉन्सर्ट में गाने के साथ-साथ वे अपने घर में बच्चों को गाना सिखाने लगीं। वे [[ख़याल]] और [[ठुमरी]] जैसी शैलियों से लेकर भजन, नाट्य संगीत और [[मराठी]] लोकगीत भी गाती थीं। उन्होंने इस बीच एक जर्मन रिकॉर्डिंग कंपनी और ओडियन के साथ अपने गानों का रिकॉर्ड निकाला। इसमें उनके कुछ मशहूर गाने थे, जैसे- ‘नाच रे नंदलाला’ और ‘उपवनी गात कोकिला।’ इस रिकॉर्ड में उनके भाई-बहन और [[पिता]] के भी कुछ गाने थे। साल [[1947]] में हीराबाई बरोदेकर ने अपनी ज़िन्दग़ी का सबसे ख़ास परफॉरमेंस दिया। [[15 अगस्त]], [[1947]] के दिन जब देश आज़ाद हुआ, उन्हें लाल क़िले पर ख़ासतौर पर आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने राष्ट्रीय गीत ‘[[वंदे मातरम]]’ गाया। इसके बाद साल [[1953]] में उन्होंने [[चीन]] और कुछ अफ़्रीकन देशों में परफॉर्म किया।<ref name="pp"/>
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==पुरस्कार व सम्मान==
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*हीराबाई बरोदेकर को कई उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जगद्गुरु शंकराचार्य ने उन्हें ‘गान सरस्वती’ की उपाधि दी और [[सरोजिनी नायडू]] ने ‘गान कोकिला’ नाम दिया।
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*साल [[1955]] में उन्हें [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] मिला।
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*साल [[1970]] में [[पद्म भूषण]] से नवाज़ा गया।
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बड़े भाई और गुरु सुरेशबाबू माने की मृत्यु साल [[1952]] में हो गई, जिसकी वजह से हीराबाई बरोदेकर को बहुत बड़ा धक्का लगा था। वो धीरे-धीरे अपने अंदर सिमटती रहीं और कम कॉन्सर्टस देने लगीं। [[संगीत]] का अभ्यास उन्होंने फिर भी छोड़ा नहीं और साल [[1968]] में अपनी सबसे छोटी बहन सरस्वती माने के साथ उन्होंने एक रिकॉर्ड निकाला। साल [[1984]] में भी मराठी गानों का एक रिकॉर्ड निकला था, जिसमें उनके और उनके पिता के गाने थे।
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==मृत्यु==
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[[20 नवंबर]] [[1989]] में हीराबाई बरोदेकर अपने पुणे के घर में चल बसीं। अपने आख़िरी दिन तक वे गाती रहीं और बच्चों को गाना सिखाती रहीं, भले ही उन्होंने खुद बाहर परफॉर्म करना छोड़ दिया हो। उनका घर संगीत के प्रेमियों के लिए एक अलग दुनिया था, जहां हर किसी का स्वागत था, चाहे वो कोई मशहूर कलाकार हो या पहली बार संगीत सीख रहा हो।<ref name="pp"/>
  
 
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हीराबाई बरोदेकर (अंग्रेज़ी: Hirabai Barodekar, जन्म- 29 मई, 1905; मृत्यु- 20 नवंबर, 1989) किराना घराने की हिन्दुस्तानी शस्त्रीय गायिका थीं। उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। हीराबाई बरोदेकर एक प्रतिभाशाली गायिका ही नहीं, बल्कि भारत की पहली महिला कलाकार थीं जिन्हें पुरुषों के वर्चस्व के दौर में लोग कॉन्सर्ट में सुनने आए। साल 1947 में हीराबाई ने अपने जीवन की सबसे ख़ास प्रस्तुति दी थी। 15 अगस्त के दिन जब देश आज़ाद हुआ, उन्हें लाल क़िले पर ख़ासतौर पर आमंत्रित किया गया था, जहाँ उन्होंने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ गाया था।

जन्म

हीराबाई बरोदेकर का जन्म 29 मई, 1905 में महाराष्ट्र के मिरज में हुआ था। पिता उस्ताद अब्दुल करीम खां बड़ौदा राजघराने के शाही गायक थे और माता ताराबाई माने उस राजघराने की सदस्य थीं। परिवारों की रज़ामंदी न होने पर भी दोनों ने विवाह किया। उनके पांच बच्चे हुए। इनमें से दूसरी बच्ची थीं हीराबाई, जिनका नाम उनके मां और पिता ने चंपाकली रखा था।[1]

शिक्षा

हीराबाई की संगीत की शिक्षा बचपन से ही शुरू हो गई थी। तब तक उनके बड़े भाई सुरेशबाबू माने, भी संगीत की दुनिया में अपना कदम रख चुके थे। आगरा घराने के गायक उस्ताद अहमद खां ने हीराबाई को गाना सिखाना शुरू किया। बाद में जब साल 1922 में उस्ताद अब्दुल करीम और ताराबाई का तलाक़ हो गया, तब हीराबाई अपने भाई-बहनों के साथ अपनी मां के साथ चली गईं और सुरेशबाबू से संगीत सीखने लगी। बाद में उन्होंने उस दौर के कुछ जानेमाने संगीतकारों से भी शिक्षा ली, जैसे- भास्करबुवा बखळे और उस्ताद अब्दुल वाहिद, जो उनके पिता के भाई भी थे।

सफलता

साल 1921 में हीराबाई ने बंबई (वर्तमान मुम्बई) में गांधर्व महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में अपना पहला परफॉरमेंस दिया था। इसके बाद उन्होंने साल 1937 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के 'ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ़्रेंस' में भी भाग लिया। उनकी प्रतिभा ने सुनने वालों को चौंका दिया था, क्योंकि किसी ने सोचा नहीं था कि दुबली-पतली, दिखने में साधारण हीराबाई में इतना टैलेंट होगा। हीराबाई का नाम धीरे-धीरे सब जानने लगे थे और आने वाले कुछ सालों में उन्होंने अपना पहला पब्लिक कॉन्सर्ट दिया। तब साधारण समाज में महिलाओं के स्टेज पर परफॉर्म करने को बुरी नज़र में देखा जाता था। उनके चरित्र पर सवाल उठाए जाते थे। ऐसे में हीराबाई भारत की पहली महिला गायिका बनीं, जिन्होंने आमजनता के लिए स्टेज पर गाया और जिन्हें लोग टिकट खरीदकर सुनने भी गए।

साल 1924 में मानिकचंद गाँधी से विवाह के बाद हीराबाई बरोदेकर पुणे चली आईं। उनकी संगीत की चर्चा रुकी नहीं और कॉन्सर्ट में गाने के साथ-साथ वे अपने घर में बच्चों को गाना सिखाने लगीं। वे ख़याल और ठुमरी जैसी शैलियों से लेकर भजन, नाट्य संगीत और मराठी लोकगीत भी गाती थीं। उन्होंने इस बीच एक जर्मन रिकॉर्डिंग कंपनी और ओडियन के साथ अपने गानों का रिकॉर्ड निकाला। इसमें उनके कुछ मशहूर गाने थे, जैसे- ‘नाच रे नंदलाला’ और ‘उपवनी गात कोकिला।’ इस रिकॉर्ड में उनके भाई-बहन और पिता के भी कुछ गाने थे। साल 1947 में हीराबाई बरोदेकर ने अपनी ज़िन्दग़ी का सबसे ख़ास परफॉरमेंस दिया। 15 अगस्त, 1947 के दिन जब देश आज़ाद हुआ, उन्हें लाल क़िले पर ख़ासतौर पर आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ गाया। इसके बाद साल 1953 में उन्होंने चीन और कुछ अफ़्रीकन देशों में परफॉर्म किया।[1]

पुरस्कार व सम्मान

बड़े भाई और गुरु सुरेशबाबू माने की मृत्यु साल 1952 में हो गई, जिसकी वजह से हीराबाई बरोदेकर को बहुत बड़ा धक्का लगा था। वो धीरे-धीरे अपने अंदर सिमटती रहीं और कम कॉन्सर्टस देने लगीं। संगीत का अभ्यास उन्होंने फिर भी छोड़ा नहीं और साल 1968 में अपनी सबसे छोटी बहन सरस्वती माने के साथ उन्होंने एक रिकॉर्ड निकाला। साल 1984 में भी मराठी गानों का एक रिकॉर्ड निकला था, जिसमें उनके और उनके पिता के गाने थे।

मृत्यु

20 नवंबर 1989 में हीराबाई बरोदेकर अपने पुणे के घर में चल बसीं। अपने आख़िरी दिन तक वे गाती रहीं और बच्चों को गाना सिखाती रहीं, भले ही उन्होंने खुद बाहर परफॉर्म करना छोड़ दिया हो। उनका घर संगीत के प्रेमियों के लिए एक अलग दुनिया था, जहां हर किसी का स्वागत था, चाहे वो कोई मशहूर कलाकार हो या पहली बार संगीत सीख रहा हो।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारत की पहली गायिका जिन्होंने कॉन्सर्ट में गाया था (हिंदी) hindi.feminisminindia.com। अभिगमन तिथि: 21 अप्रॅल, 2024।

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