सिकन्दर

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सिकन्दर
पूरा नाम सिकंदर महान् / Alexander
अन्य नाम अलक्ष्येन्द्र, एलेक्ज़ेंडर तृतीय, एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन
जन्म 20 जुलाई, 356 ई. पू.
जन्म भूमि पेला, मैसेडोन, यूनान
मृत्यु तिथि 10 या 11 जून, 323 ई. पू. (उम्र 33 वर्ष)
मृत्यु स्थान बेबीलोन
पिता/माता फिलिप द्वितीय, ओलंपियाज़
पति/पत्नी रुखसाना, बैक्ट्रिया, स्ट्रैटेयरा द्वितीय
संतान सिकंदर चतुर्थ
उपाधि किंग
राज्य सीमा यूनान, फ़ारस और पंजाब
शासन काल 336 – 323 ई. पू.
शा. अवधि 13 वर्ष
पूर्वाधिकारी फिलिप द्वितीय

सिकन्दर अथवा अलक्ष्येन्द्र, मेसेडोनिया का ग्रीक प्रशासक था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय, Alexander the Great तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में सिकन्दर सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। अपनी मृत्यु तक सिकन्दर उस तमाम भूमि को जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन यवन (ग्रीक) लोगों को थी। इसलिए उसे विश्वविजेता भी कहा जाता है। सिकन्दर के पिता का नाम फ़िलिप था।

ऐतिहासिक उल्लेख

  • सिकन्दर को सबसे पहले एक गणराज्य के प्रधान के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसे यूनानी ऐस्टीज़ कहते हैं, संस्कृत में जिसका नाम हस्तिन है; वह उस जाति का प्रधान था जिसका भारतीय नाम हास्तिनायन था [1]। यूनानी में इसके लिए अस्टाकेनोई या अस्टानेनोई-जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, और उसकी राजधानी प्यूकेलाओटिस अर्थात् पुष्कलावती लिखी गई है। इस वीर सरदार ने अपने नगरकोट पर यूनानियों की घेरेबंदी का पूरे तीस दिन तक मुकाबला किया और अंत में लड़ता हुआ मारा गया। इसी प्रकार आश्वायन तथा आश्वकायन भी आखिरी दम तक लड़े, जैसा कि इस बात से पता चलता है कि उनके कम से कम 40,000 सैनिक बंदी बना लिए गए। उनकी आर्थिक समृद्धि का भी अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस लड़ाई में 2,30,000 बैल सिकन्दर के हाथ लगे।[2]
  • आश्वकायनों ने 30,000 घुड़सवार 38,000 पैदल और 30 हाथियों की सेना लेकर, जिनकी सहायता के लिए मैदानों के रहने वाले 7,000 वेतनभोगी सिपाही और थे, सिकन्दर से मोर्चा लिया। यह पूरी आश्वकायनों की क़िलेबंद राजधानी मस्सग[3] में अपनी वीरांगना रानी क्लियोफ़िस[4] के नेतृत्व में आश्वकायनों ने "अंत तक अपने देश की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प किया।" रानी के साथ ही वहाँ की स्त्रियों ने भी प्रतिरक्षा में भाग लिया। वेतनभोगी सैनिक के रूप में बड़े निरुत्साह होकर लड़े, परन्तु बाद में उन्हें जोश आ गया और उन्होंने "अपमान के जीवन की अपेक्षा गौरव के मर जाना" ही बेहतर समझा।[5] उनके इस उत्साह को देखकर अभिसार नामक निकटवर्ती पर्वतीय देश में भी उत्साह जाग्रत हुआ और वहाँ के लोग भी प्रतिरक्षा के लिए डट गए। उस प्रदेश के स्वतंत्र नगरों ने भी, जैसे आओर्नोस, बज़ीरा, ओरा अथवा डायर्टा आदि ने, प्रतिशोध का यही मार्ग अपनाया और उनमें प्रत्येक ने बहुत लम्बी घेरेबंदी के बाद ही हथियार डाले।[2]

शासन क्षेत्र

सिकन्दर ने अपने कार्यकाल में ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बैक्ट्रिया और भारत में पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी। सिकन्दर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर वह एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ बढ़ा। उस क्षेत्र पर उस समय फ़ारस का शासन था। फ़ारसी साम्राज्य मिस्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फ़ारस के शाह दारा तृतीय को उसने तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया, हालाँकि उसकी तथाकथित 'विश्व-विजय' फ़ारस विजय से अधिक नहीं थी पर उसे शाह दारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रांतपालों से भी युद्ध करना पड़ा था। मिस्र, बॅक्ट्रिया, तथा आधुनिक ताज़िकिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।

भारत में सिकन्दर

भारत में सिकन्दर का पुरु से युद्ध हुआ। जिसमें पुरु की हार हुई। भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के समय चाणक्य (विष्णुगुप्त अथवा कौटिल्य) तक्षशिला में प्राध्यापक थे। तक्षशिला और गान्धार के राजा आम्भि ने सिकन्दर से समझौता कर लिया। चाणक्य ने भारत की संस्कृति को विदेशियों से बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया किन्तु सिकन्दर से लड़ने कोई नहीं आया। पुरु ने सिकन्दर से युद्ध किया, किन्तु हार गया। मगध के राजा महापद्मनंद ने चाणक्य का साथ देने से मना कर दिया और चाणक्य का अपमान भी किया। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर एक नये साम्राज्य की स्थापना की और सिकन्दर द्वारा जीते गए राज्य पंजाब के राजदूत सेल्यूकस को हराया। सिकन्दर के आक्रमण के समय सिन्धु नदी की घाटी के निचले भाग में शिविगण के पड़ोस में रहने वाला एक गण का नाम अगलस्सोई था। सिकन्दर जब सिन्धु नदी के मार्ग से भारत से वापस लौट रहा था, तो इस गण के लोगों से उसका मुक़ाबला हुआ। अस्सकेनोई लोगों ने सिकन्दर से जमकर लोहा लिया और उनके एक तीर से सिकन्दर घायल भी हो गया। लेकिन अन्त में विजय सिकन्दर की ही हुई। उसने मस्सग दुर्ग पर अधिकार कर लिया और भंयकर नरसंहार के बाद अस्सकेनोई लोगों का दमन कर दिया। अस्सपेसिओई गण भारत पर सिकन्दर महान् के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर सीमा पर कुनड़ अथवा त्रिचाल नदी की घाटी में रहता था। अभिसारेश सिकन्दर के आक्रमण के समय अभिसार जनपद का राजा था।

विभिन्न जातियों का संघर्ष

भारतीय सैन्यबल अपने चरम रूप में राजा पोरस (पौरव) की सेना में दिखाई दिया, जो सिकन्दर का सबसे शक्तिशाली शत्रु था। उसने अर्रियन के अनुमान के अनुसार 30,000 पैदल सिपाहियों, 4,000 घुड़सवारों, 300 रथों और 200 हाथियों की सेना लेकर सिकन्दर का मुकाबला किया। उसकी पराजय के बाद भी सिकन्दर को उसकी तरफ़ मैत्री का हाथ बढ़ाना पड़ा।

  • अगालास्सोई जाति के लोगों ने 40,000 पैदल सिपाहियों और 3,000 घुड़सवारों की सेना लेकर सिकन्दर से टक्कर ली। कहा जाता है कि उनके एक नगर के 20,000 निवासियों ने अपने-आपको बंदियों के रूप में शत्रुओं के हाथों में समर्पित करने के बजाय बाल-बच्चों सहित आग में कूदकर प्राण दे देना ही उचित समझा।
  • इसके बाद सिकन्दर को कई स्वायत्त जातियों के संघ के संगठित विरोध का सामना करना पड़ा, जिनमें मालव तथा क्षुद्रक आदि जातियाँ थीं, जिनकी संयुक्त सेना में 90,000 पैदल सिपाही, 10,000 घुड़सवार और 900 से अधिक रथ थे। उनके ब्राह्मणों ने भी पढ़ने-लिखने का काम छोड़कर तलवार सम्भाली और रणक्षेत्र में लड़ते हुए मारे गए, "बहुत ही कम लोग बंदी बनाए जा सके।"
  • कठ एक और वीर जाति थी, जो अपने शौर्य के लिए दूर-दूर तक विख्यात थी।[6] कहा जाता है कि रणक्षेत्र में उनके 17,000 लोग मारे गए थे और 70,000 बंदी बना लिए गए थे।
  • मालवों ने अलग से भी 50,000 सैनिकों की सेना लेकर एक नदी की घाटी की रक्षा की। अंबष्ठों की सेना में 60,000 पैदल, 6,000 घुड़सवार और 500 रथ थे। अकेले सिंधु घाटी के निचले भाग में होने वाले युद्धों में 80,000 सिपाही मारे गए।
  • इस इलाके में ब्राह्मणों ने अगुवाई की और प्रतिरोध की भावना तथा युद्ध के प्रति लोगों में अदम्य उत्साह पैदा किया और धर्म की रक्षा करते हुए हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी।[7][2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (पाणिनि, VI, 4, 174)
  2. 2.0 2.1 2.2 चंद्रगुप्त मौर्य और उसका काल |लेखक: राधाकुमुद मुखर्जी |प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन |
  3. संस्कृत:- मशक, जो मशकावती नामक नदी के तट पर स्थित था, जिसका उल्लेख पाणिनि के काशिक भाष्य में मिलता है (VI, 2, 85;VI,3,119)};
  4. (संस्कृत:- कृपा?)
  5. मैकक्रिंडिल-कृत इनवेज़न, पृष्ठ 194 (कर्टियस), 270 (डियोडोरस)
  6. (अर्रियन, V. 22,2)
  7. (प्लूटार्क, लाइव्स X; कैंब्रिज हिस्ट्री, I, पृष्ठ 378)

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