"षट् दर्शन" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "छः" to "छह")
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''षट् दर्शन''' अर्थात [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के तत्त्व-ज्ञान सम्बन्धी छः दर्शन, जो कि निम्नलिखित हैं-
+
'''षट् दर्शन''' अर्थात [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के तत्त्व-ज्ञान सम्बन्धी छह दर्शन, जो कि निम्नलिखित हैं-
 
#[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
 
#[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]
 
#[[वेदांत]]
 
#[[वेदांत]]
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
#[[सांख्य दर्शन|सांख्य]]
 
#[[सांख्य दर्शन|सांख्य]]
 
#[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]
 
#[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]
==मीमांसा==
+
'मीमांसा' शब्द का अर्थ किसी वस्तु के स्वरूप का यथार्थ वर्णन है। मीमांसा के दो प्रकारों की व्याख्या की गई है- 'कर्ममीमांसा' और 'ज्ञानमीमांसा'। कर्ममीमांसा तथा पूर्वमीमांसा के नाम से अभिहित दर्शन 'मीमांसा' कहा जाता है। 'ज्ञानमीमांसा' तथा 'उत्तरमीमांसा' के नाम से प्रसिद्ध दर्शन '[[वेदान्त]]' कहलाता है। मीमांसा दर्शन पूर्णतया वैदिक है। 'मीमांसते' क्रियापद तथा 'मीमांसा' संज्ञापद, दोनों का प्रयोग [[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण]] तथा [[उपनिषद]] ग्रन्थों में मिलता है। अत: मीमांसा दर्शन का सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीन काल से सिद्ध होता है। मीमांसा का प्रतिपाद्य विषय [[धर्म]] का विवेचन है- 'धर्माख्यं विषयं वस्तु मीमांसाया: प्रयोजनम्'। वेदविहित इष्टसाधन धर्म है और वेदविपरीत अनिष्टसाधन अधर्म है। इस जगत में कर्म ही सर्वेश्रेष्ठ है। कर्म करने से फल अवश्यमेव उत्पन्न होता है। [[बादरायण]] ईश्वर को कर्मफल का दाता मानते हैं, किन्तु मीमांसा दर्शन के आदि [[जैमिनि|आचार्य जैमिनि]] कर्म को फलदाता मानते हैं। उनके अनुसार यज्ञकर्म से ही तत्तत् फल उत्पन्न होते हैं। मीमांसा दर्शन में 'अपूर्व' नामक सिद्धान्त प्रतिपादित है। कर्म से उत्पन्न होता है फल। इस प्रकार अपूर्व ही कर्म और कर्मफल को बांधने वाली शृंखला है। मीमांसा दर्शन [[वेद]] को सत्य मानता है।
 
  
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
{{reflist|2}}
 
{{reflist|2}}

11:48, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

षट् दर्शन अर्थात हिन्दुओं के तत्त्व-ज्ञान सम्बन्धी छह दर्शन, जो कि निम्नलिखित हैं-

  1. मीमांसा
  2. वेदांत
  3. न्याय
  4. योग
  5. सांख्य
  6. वैशेषिक



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रुतियाँ