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वर्तमान राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर 1947 ई. तक इसी नाम की एक देशी रियासत की राजधानी थी। कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ [[राजस्थान]] का इतिहास प्रसिद्ध नगर है। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। बाज़ार सब सीधी सड़कों के दोनों ओर हैं और इनके भवनों का निर्माण भी एक ही आकार-प्रकार का है। नगर के चारों ओर चौड़ी और ऊँची दीवार है, जिसमें सार द्वार हैं। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हवा महल, जंतर-मंतर और कुछ पुराने क़िले अधिक प्रसिद्ध हैं।
 
वर्तमान राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर 1947 ई. तक इसी नाम की एक देशी रियासत की राजधानी थी। कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ [[राजस्थान]] का इतिहास प्रसिद्ध नगर है। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। बाज़ार सब सीधी सड़कों के दोनों ओर हैं और इनके भवनों का निर्माण भी एक ही आकार-प्रकार का है। नगर के चारों ओर चौड़ी और ऊँची दीवार है, जिसमें सार द्वार हैं। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हवा महल, जंतर-मंतर और कुछ पुराने क़िले अधिक प्रसिद्ध हैं।
 
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[[चित्र:Jal-Mahal-Jaipur.jpg|thumb|220px|left|[[जल महल जयपुर|जल महल]], जयपुर<br /> Jal Mahal, Jaipur]]
 
==इतिहास==
 
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कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री [[राम]]चन्द्र जी के पुत्र [[लव कुश|कुश]] को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग [[ग्वालियर]] चले आए। एक ऐतिहासिक [[अनुश्रुति]] के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई. के लगभग, [[अयोध्या]]-नरेश [[लक्ष्मण]] ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई. में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में भारमल आमेर का राजा था। उसने [[हुमायूँ]] और [[अकबर]] से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री [[हरकाबाई]] (वर्तमान में [[जोधाबाई]] के नाम से प्रचलित) का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र [[जहाँगीर|सलीम]] के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र [[मानसिंह]] 1590 ई. से 1614 ई. तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था।  
 
कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री [[राम]]चन्द्र जी के पुत्र [[लव कुश|कुश]] को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग [[ग्वालियर]] चले आए। एक ऐतिहासिक [[अनुश्रुति]] के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई. के लगभग, [[अयोध्या]]-नरेश [[लक्ष्मण]] ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई. में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में भारमल आमेर का राजा था। उसने [[हुमायूँ]] और [[अकबर]] से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री [[हरकाबाई]] (वर्तमान में [[जोधाबाई]] के नाम से प्रचलित) का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र [[जहाँगीर|सलीम]] के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र [[मानसिंह]] 1590 ई. से 1614 ई. तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था।  
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==यातायात और परिवहन==
 
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जयपुर में प्रमुख सड़क, रेल और वायुसम्पर्क उपलब्ध है।   
 
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==कृषि और खनिज==
 
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चित्र:City-Palace-Jaipur-1.jpg|[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]], जयपुर<br /> City Palace, Jaipur
 
चित्र:City-Palace-Jaipur-1.jpg|[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]], जयपुर<br /> City Palace, Jaipur
 
चित्र:Amber-Fort-Jaipur-2.jpg|[[आमेर का क़िला जयपुर|आमेर का क़िला]], जयपुर<br /> Amber Fort, Jaipur
 
चित्र:Amber-Fort-Jaipur-2.jpg|[[आमेर का क़िला जयपुर|आमेर का क़िला]], जयपुर<br /> Amber Fort, Jaipur
 
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चित्र:B-M-Birla-Planetarium-Jaipur.jpg|[[बी.एम. बिडला सभागार जयपुर|बी.एम. बिडला सभागार]], जयपुर<br /> B.M.Birla Auditorium, Jaipur
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12:27, 28 सितम्बर 2010 का अवतरण

जयपुर
Hawa-Mahal-Jaipur.jpg
विवरण जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी है। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं।
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर ज़िला
निर्माता राजा जयसिंह द्वितीय
स्थापना सन 1728 ई. में स्थापित
भौगोलिक स्थिति 26.9260°N 75.8235°E
प्रसिद्धि कराँची का हलवा
कब जाएँ सितंबर से मार्च
कैसे पहुँचें दिल्ली से अजमेर शताब्दी और दिल्ली जयपुर एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। कोलकाता से हावड़ा-जयपुर एक्सप्रेस और मुम्बई से अरावली व बॉम्बे सेन्ट्रल एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुँचा जा सकता है जो 256 किमी. की दूरी पर है। राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं।
हवाई अड्डा जयपुर के दक्षिण में स्थित संगनेर हवाई अड्डा नजदीकी हवाई अड्डा है। जयपुर और संगनेर की दूरी 14 किमी. है।
रेलवे स्टेशन जयपुर जक्शन
बस अड्डा सिन्धी कैम्प, घाट गेट
यातायात स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
क्या देखें पर्यटन स्थल
क्या ख़रीदें कला व हस्तशिल्प द्वारा तैयार आभूषण, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, होज़री, क़ालीन, कम्बल आदि ख़रीदे जा सकते है।
एस.टी.डी. कोड 0141
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा
जयपुर जयपुर पर्यटन जयपुर ज़िला

वर्तमान राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर 1947 ई. तक इसी नाम की एक देशी रियासत की राजधानी थी। कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ राजस्थान का इतिहास प्रसिद्ध नगर है। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। बाज़ार सब सीधी सड़कों के दोनों ओर हैं और इनके भवनों का निर्माण भी एक ही आकार-प्रकार का है। नगर के चारों ओर चौड़ी और ऊँची दीवार है, जिसमें सार द्वार हैं। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हवा महल, जंतर-मंतर और कुछ पुराने क़िले अधिक प्रसिद्ध हैं।

जल महल, जयपुर
Jal Mahal, Jaipur

इतिहास

कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री रामचन्द्र जी के पुत्र कुश को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग ग्वालियर चले आए। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई. के लगभग, अयोध्या-नरेश लक्ष्मण ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई। ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई. में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में भारमल आमेर का राजा था। उसने हुमायूँ और अकबर से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री हरकाबाई (वर्तमान में जोधाबाई के नाम से प्रचलित) का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र मानसिंह 1590 ई. से 1614 ई. तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था।


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सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील (4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील (7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं।Blockquote-close.gif |} कहते हैं उसी के कहने से अकबर ने चित्तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577 ई.)। मानसिंह के पश्चात जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने भी शाहजहाँ और औरंगज़ेब से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम शिवाजी को औरंग़ज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंग़ज़ेब ने 1667 ई. में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई. से 1743 ई. तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई. में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील(4.8 कि0 मी0 ) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील(7.8 वर्ग कि0 मी0) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई। ये मुख्य सड़क को कई स्थानों पर समकोणों पर काटती थी। कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्थर के बनवाए गए थे जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंज़िला है। इसमें एक दिवानेख़ास है। इसके समीप ही तत्कालीन सचिवालय--बावन कचहरी--स्थित है। 18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंज़िला हवामहल भी नगर की मुख्य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस, और उज्जैन में वेधशालाएँ भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि जयसिंह को नगर का नक्शा बनाने में दो बंगाली पंड़ितों से विशेष सहायता प्राप्त हुई थी।

यातायात और परिवहन

अल्‍बर्ट हॉल संग्रहालय, जयपुर
Albert Hall Museum, Jaipur

जयपुर में प्रमुख सड़क, रेल और वायुसम्पर्क उपलब्ध है।

कृषि और खनिज

बाजरा, जौ, चना, दलहन और कपास इस क्षेत्र की मुख्य फ़सलें हैं। लौह अयस्क, बेरिलियम, अभ्रक, फ़ेल्सपार, संगमरमर, ताँबा और रक्तमणि का खनन होता है।

उद्योग और व्यापार

यह वाणिज्यिक व्यापार केन्द्र है। यहाँ के उद्योगों में इंजीनियरिंग और धातुकर्म, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, होज़री, क़ालीन, कम्बल, जूतों और दवाइयों का निर्माण प्रमुख है। जयपुर के विख्यात कला व हस्तशिल्प में आभूषणों की मीनाकारी, धातुकर्म व छापेवाले वस्त्र के साथ-साथ पत्थर, संगमरमर व हाथीदांत पर नक़्क़ाशी शामिल है।

शिक्षण संस्थान

जयपुर में 1947 में स्थापित राजस्थान विश्वविद्यालय स्थित है।

जनसंख्या

जयपुर की जनसंख्या (2001) 23,24,319 है और जयपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 52,52,388 है।

पर्यटन

राजस्थान पर्यटन की दृष्टि से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों, ऊँची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर राजस्थान में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारों) से घिरा है, जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाजे बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई मानसिहं ने इस शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। यहाँ के प्रमुख भवनों में सिटी पैलेस, 18वीं शताब्दी में बना जंतर-मंतर, हवामहल, रामबाग़ पैलेस और नाहरगढ़ शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और एक पुस्तकालय शामिल है।

वीथिका

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