आवाहन अखाड़ा, शैव
श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Shri Panchdashnaam Aavahan Akhada) जूना अखाड़े से सम्मिलित है। कहा जाता है कि इस अखाड़े की स्थापना सन 547 में हुई थी, लेकिन जदुनाथ सरकार इसे 1547 बताते हैं। इस अखाड़े का केंद्र दशाश्वमेध घाट, काशी में है। इस अखाड़े के संन्यासी भगवान श्रीगणेश व दत्तात्रेय को अपना इष्टदेव मानते हैं क्योंकि ये दोनों देवता आवाहन से ही प्रगट हुए थे। हरिद्वार में इनकी शाखा है।
परिचय
काशी के श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़े की बात करें तो यह काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित है। जिसे छठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित किया गया था। यह अखाड़ा कई दशकों पुराना है। पहले इसे 'आवाहन सरकार' के नाम से जाना जाता था क्योंकि यह धर्म की रक्षा के साथ-साथ लोगों को धर्म के पथ पर चलना भी सिखाता था। अखाड़े का उद्देश्य सदैव धर्म की रक्षा करना रहा है। वर्तमान समय में भी यह इसी उद्देश्य पर काम कर रहा है। जहां भी विधर्म होगा, वहां नागा साधुओं का यह अखाड़ा मौजूद रहेगा। नागा साधु हर परिस्थिति में धर्म की रक्षा करेंगे।[1]
अखाड़े के थानापति के अनुसार प्राचीन और वर्तमान समय की परिस्थितियों में थोड़ा फेरबदल अवश्य हुआ है। उस समय जो परिस्थितियां थीं, जो धर्म की मांग थी, वह अलग थी और वर्तमान समय में जो मांग है वह अलग है। परन्तु नागा सन्यासी उस समय भी धर्म की रक्षा के लिए तत्पर था। वर्तमान समय में भी धर्म की रक्षा के लिए तत्पर है। आधुनिक परिवेश सामान्य लोगों के लिए होता है। साधु के लिए आधुनिकता का कोई मतलब नहीं। वर्तमान समय यांत्रिक या अन्य वस्तुओं का सन्यासी के लिए कोई काम नहीं है। वर्तमान समय में भी आवाहन अखाड़े पर आधुनिकता का कोई रंग नहीं चढ़ा है।
पदों का बंटवारा
आवाहन अखाड़े में कई पद होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य होते हैं। सबसे पहले श्री महंत होते हैं। उसके बाद अष्ट कौशल महंत होते हैं। तदोपरांत अखाड़े के थानापति होते हैं जो कि हर अखाड़े के अलग-अलग होते हैं, जिसमें दो पंच होते हैं। एक रमता पंच दूसरा शंभू पंच। इसके अलावा पांच सरदारों की भी नियुक्ति की जाती है जो अखाड़े के कार्यों को देखते हैं जिनमें भंडारी, कोतवाल, कोठारी, कारोबारी और पुजारी महंत होता है जो अखाड़े की पूजा अर्चना और धार्मिक कार्यों को देखते हैं। इसके साथ ही सभी सरदार अखाड़े के आवश्यक कार्यों का संचालन करते हैं, जिससे कि अखाड़े की क्रिया प्रतिक्रिया में कोई बाधा न हो सके।
अखाड़े में शामिल होने के नियम
अखाड़े में शामिल होने के लिए व्यक्ति को शुद्ध मन से गुरु की सेवा में लीन होना पड़ता है। उसे समाज की अनेकों बुराइयों का त्याग कर ईश्वर की भक्ति में खोना पड़ता है। तभी वह अखाड़े में शामिल होकर अखाड़े और गुरु की सेवा कर सकता है। इसके लिए व्यक्ति को संसार के सभी सुखों को त्यागना होता है। जिससे की वह अंश मात्र में भी अपना जीवन गुजार ले। नागा सन्यासी बनना बेहद कठिन मार्ग है। नागा सन्यासियों को अस्त्र-शस्त्र की भी शिक्षा दीक्षा दी जाती है, जिसका वो समय के अनुसार प्रयोग करते हैं। कई लोग आधे रास्ते में ही पथ को छोड़ देते हैं। परन्तु जो अंत तक रहता है, वही नागा सन्यासी बनता है। नागा सन्यासी कभी भिक्षा नहीं मांगते हैं। जो श्रद्धालु देते हैं वो उसे अपनी स्वीकृति के अनुसार स्वीकार करते हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 जानिए क्या है वाराणसी के पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा का इतिहास (हिंदी) etvbharat.com। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2021।