निर्वाणी अखाड़ा, वैष्णव
श्री निर्वानी अनी अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Nirvani Akhada) की स्थापना अभयरामदास जी नाम के संत ने की थी। आरंभ से ही यह अयोध्या का सबसे शक्तिशाली अखाड़ा रहा है। हनुमानगढ़ी पर इसी अखाड़े का अधिकार है। इस अखाड़े के साधुओं के चार विभाग हैं- हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया व सागरिया।
इतिहास
हिंदू धर्म की रक्षा के लिए करीब 500 वर्ष पूर्व नासिक कुंभ में जयपुर राजघराने के राजकुमार ने अपनी संपत्ति दान देकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज से दीक्षा ली थी। कालांतर में इनका नाम स्वामी बाला आनंद रखा गया। स्वामी बाला आनंद ने श्री पंचरामानंदी निर्वाणी आणि, निर्मोही और दिगंबर अखाड़े की स्थापना की। निर्वाणी (आणि अर्थात समूह) अखाड़ा का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी अयोध्या है।[1]
अखाड़े
निर्वाणी आणि अखाड़े में निर्वाणी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलबी अखाड़ा शामिल हैं। निर्वाणी आणि अखाड़े की बैठक वृंदावन और चित्रकूट में भी है। इस अखाड़े के श्रीमहंत का चुनाव 12 वर्ष पर होता है।
केंद्र
निर्वाणी आणि अखाड़े का मुख्य केंद्र है हनुमानगढ़ी। यह अयोध्या में स्थित है। इसका संविधान संस्कृत भाषा में 1825 में लिखा गया। इसका हिंदी रूपांतरण 1963 में हुआ। हनुमानगढ़ी अखाड़ा लोकतंत्र का बहुत बड़ा हिमायती है। अखाड़े में चार अलग-अलग पट्टियां हैं। इनके नाम सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया हैं।
नागापना समारोह
हनुमानगढ़ी में हर 12 वर्ष पर नागापना समारोह होता है। इसमें धर्म प्रचार का संकल्प लेकर नए सदस्यों को साधु की दीक्षा दी जाती है। इन्हें 16 दिन तक यात्री के रूप में सेवा करनी होती है। इसके बाद वे मुरेठिया के रूप में सेवा करते हैं। 16 दिन बाद नए सदस्यों का नाम मंदिर के रजिस्टर में दर्ज होता है। इसके बाद इन्हें हुड़दंगा का नाम दिया जाता है। ये खुद शिक्षा ग्रहण करने के साथ संतों को भोजन और प्रसाद वितरित करने के साथ ही अतिथियों की सेवा करते हैं।12 वर्ष पर कुंभ के दौरान वरिष्ठ संतों को नागा की उपाधि दी जाती है।[1]
जमात
हनुमानगढ़ी अखाड़े में 4 पट्टी में प्रत्येक में तीन जमात हैं। इनके नाम खालसा, झुन्डी और डुंडा है। प्रत्येक जमात में दो थोक होता है। इसे परिवार कहा जाता है। प्रत्येक परिवार में आसन होते हैं। इन्हें संतों का निवास स्थान कहा जाता है। सारे संतों के विवाद हनुमानगढ़ी की लोकतांत्रिक परंपरा के अंतर्गत ही निपटाए जाते हैं। हनुमानगढ़ी के संतों को कहीं मांगने नहीं जाना पड़ता। उनके लिए भोजन, प्रसाद, फलाहार, वस्त्र आदि की व्यवस्था मंदिर की लोकतांत्रिक परंपरा के तहत की जाती है।
भोग
मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान हनुमान को प्रतिदिन दूध और घी से बने विभिन्न व्यंजनों के साथ सवा मन देसी घी की पूरी और सवा मन हलवे का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद मंदिर के पुजारी वितरित करते हैं। मंदिर में प्रत्येक समय एक मुख्य पुजारी के अलावा हर पट्टी से एक पुजारी हनुमानजी की सेवा में होते हैं। हनुमानजी का द्वार भक्तों के दर्शन के लिए प्रातः 4 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है। दोपहर के समय भोग लगने के कारण कुछ समय तक हनुमानगढ़ी का द्वार बंद होता है। उसके बाद पुनः हल्के कपड़े का पर्दा लगा दिया जाता है। श्रद्धालु पर्दे के अंदर से भगवान का दर्शन करते हैं। शाम 4 बजे फिर से भगवान के दिव्य स्वरूप के दर्शन होने लगते हैं।[1]
मान्यता
हनुमानगढ़ी की सेवा करके फूल, प्रसाद, खेती आदि से बड़ी संख्या में जुड़े लोग जीविका प्राप्त कर रहे हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीराम के साकेत गमन के बाद उन्हीं के आदेश पर श्रीहनुमान जी इस मंदिर के किले में रहते हैं और अयोध्या की रक्षा करते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 [https://www.etvbharat.com/hindi/chhattisgarh/state/raipur/history-of-nirwani-ani-akhada-and-naga-sadhu/ct20210106194558252 history-of-nirwani-ani-akhada जानिए क्या है निर्वाणी आणि अखाड़ा और कहां है इसका मुख्य केंद्र] (हिंदी) etvbharat.com। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2021।