निर्मोही अखाड़ा, वैष्णव

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श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Nirmohi Akhada) बैरागी अखाड़ा है, जो वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है‌। 'निर्मोही' शब्द का अर्थ है- 'मोह रहित'। निर्मोही अखाड़ा विशेषकर अयोध्या प्रकरण में 1959 में चर्चा में आया, जब उसने अदालत में विवादित ढांचे के संदर्भ में वाद प्रारम्भ किया। अखाड़े ने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।

  • अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त 14 अखाड़ों में से एक है निर्मोही अखाड़ा। 14वीं सदी में वैष्णव संत और कवि रामानंद ने इस अखाड़े की नींव रखी थी। राम की पूजा करने वाले इस अखाड़े के बारे में माना जाता है कि वो आर्थिक रूप से काफी संपन्न है। इसके उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में कई अखाड़े और मंदिर हैं। अखाड़े में किशोरवय की शुरुआत में ही बच्चे शामिल कर लिए जाते हैं लेकिन इस दौरान उन्हें पूजा-पाठ और ब्रह्मचारी जीवन की कड़ी सीख दी जाती है। शिक्षा पूरी करने के बाद इन्हें 'साधु' पुकारा जाता है।[1]
  • वैसे पहले निर्मोही अखाड़ा पूजा-पाठ के अलावा लोगों की रक्षा का भी काम करता था। पुराने समय में इसके सदस्यों के लिए वेद, मंत्र आदि समझने के साथ शारीरिक कसरत और अस्त्र-शस्त्र सीखना भी जरूरी था। अखाड़े के संत मानते थे कि रामभक्तों की रक्षा करना उनका धर्म है। यही वजह है कि वे कई तरह के हथियार चलाना सीखते थे, जैसे तलवार, तीर-धनुष और कुश्ती। हालांकि समय के साथ इन चीजों की अनिवार्यता कम हो गई। अब भी निर्मोही अखाड़े के साधुओं के लिए शारीरिक मजबूती जरूरी है लेकिन अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखने की अनिवार्यता नहीं रही।
  • निर्मोही अखाड़ा विशेषकर अयोध्या प्रकरण में 1959 में चर्चा में आया, जब उसने अदालत में विवादित ढांचे के संदर्भ में वाद प्रारम्भ किया। अखाड़े ने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।
  • अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवीर दास ने प्रारम्भ की थी। उन्होने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
  • तीसरी बार निर्मोही अखाड़े ने अर्जी डालते हुए कहा उसे राम जन्मभूमि के पूजा-पाठ और प्रबंधन की अनुमति मिले। उनके वकील का दावा था कि राम जन्मभूमि का अंदरुनी हिस्सा कई सौ सालों से निर्मोही अखाड़े के अधिकार में रहा। साथ ही बाहरी हिस्से के चबूतरा, सीता रसोई और भंडार गृह भी इसी अखाड़े के नियंत्रण में रहे। बाद में मामला उच्चतम न्यायालय तक जा पहुंचा। यहां भी निर्मोही अखाड़ा एक पक्ष था। उनका कहना था कि वे कारकून हैं, जिनका काम ही यहां का प्रबंधन है। हालांकि नवम्बर 2019 में दिए गए ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के जमीन पर मालिकाना हक के एक्सक्लूजिव दावे को खारिज कर दिया। इस तरह से विवाद का अंत हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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