सुना रहे मीठी मुरली धुन,
मुग्ध किया श्रष्टि का कन कन,
तक रहि राह तुम्हारी राधा,
कह नहिं पाती तुमको झूठे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
बने प्रेम न पथ में बाधा,
रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
होठों से कुछ बात न फूटे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
चाहे बृज को तुम बिसराओ,
धर्म ध्वजा जग में फहराओ,
मेरा श्याम बसा है मन में,
रहें नयन दर्शन को भूखे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
सहती सब सखियों के ताने,
प्रेम मेरा बस तू ही जाने,
आती याद तुम्हें राधा क्या,
मुरली जब होठों पर रखते,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
राधा का तो तन कान्हा है,
राधा का मन भी कान्हा है,
मैं हूँ दूर भला कब तुम से,
प्रेम जगत् के स्वप्न न झूठे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?