कहाँ खो गये हो मुरलीधर,
ढूंढ़ रहे हैं भारतवासी।
जय घोषों से गूंजें मंदिर,
पर अंतर में गहन उदासी।
नारी की है लाज लुट रही,
नहीं द्रोपदी आज सुरक्षित।
मंदिर रोज नए बनते हैं,
पर मानव है छत से वंचित।
लाखों के अब मुकुट पहन कर,
विस्मृत किया सुदामा को क्यों?
व्यंजन सहस्त्र सामने हों जब,
कोदो सवां याद आये क्यों?
मुक्त करो अपने को भगवन
धनिकों के मायाजालों से।
मत तोड़ो विश्वास भक्त का,
मुक्त करो अब जंजालों से।
तुमने ही आश्वस्त किया था,
जब भी होगा नाश धर्म का।
आऊंगा मैं फिर धरती पर
करने स्थापित राज्य धर्म का।
बाहर आओ अब तो भगवन
मंदिर की इन दीवारों से ।
नहीं बनो रनछोड़ दुबारा,
करो मुक्त अत्याचारों से।