अगर नहीं बन पायी राधा,
मीरा तो बन सकती हूँ.
मुरली बन न अधर छू सकी,
मुरली तो सुन सकती हूँ.
नहीं ज़रूरी है जीवन में,
साथ मिले प्रियतम का हर पल.
मेरे लिये बहुत है इतना,
हर श्वासों में हो तेरी हल चल.
प्रेम न तन का साथ मांगता,
वह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
श्याममयी हो गया है जीवन,
ईर्ष्या फिर राधा से क्यूँ हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यूँ हो?