'कोल' शिकारी वर्ग की जनजाति है, जो हकवा करके जानवरों का अथवा गोटी-गुलेल से उड़ती चिड़ियों का शिकार करती थी। इस नृत्य में कोलों के जीवन की झांकी देखी जा सकती है।
- गोला या अर्ध गोला बनाकर, ढोल बजाकर, बैठकर अथवा खड़े होकर, दिन भर के परिश्रम के बाद, चौपाल लगाकर यह नृत्य किया जाता है।
- इस नृत्य में औरतें और बच्चे तमाशबीन होते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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