क्यों चुराते हो देखकर आँखें कर चुकीं मेरे दिल में घर आँखें। ज़ौफ़ से कुछ नज़र नहीं आता कर रही हैं डगर-डगर आँखें। चश्मे-नरगिस को देख लें फिर हम तुम दिखा दो जो इक नज़र आँखें। कोई आसान है तेरा दीदार पहले बनवाए तो बशर आँखें। न गई ताक-झाँक की आदत लिए फिरती हैं दर-ब-दर आँखें। ख़ाक पर क्यों हो नक्शे-पा तेरा हम बिछाएँ ज़मीन पर आँखें। नोहागर कौन है मुक़द्दर पर रोने वालों में हैं मगर आँखें। दाग़ आँखें निकालते हैं वो उनको दे दो निकाल कर आँखें।