हर बार मांगती है नया चश्म-ए-यार दिल इक दिल के किस तरह से बनाऊं हज़ार दिल। पूछा जो उस ने तालिब-ए-रोज़-जज़ा है कौन निकला मेरी ज़बान से बे-इख्तियार दिल। करते हो अहद-ए-वस्ल तो इतना रहे ख़याल पैमान से ज्यदा है नापायदार दिल। उस ने कहा है सब्र पड़ेगा रक़ीब का ले और बेकरार हुआ ऐ बेकरार दिल।