पर्दे पर्दे में अताब[1] अच्छे नहीं ऐसे अन्दाज़-ए-हिजाब[2] अच्छे नहीं। मयकदे में हो गए चुपचाप क्यों आज कुछ मस्त-ए-शराब अच्छे नहीं। ऐ फ़लक! क्या है ज़माने की बिसात दम-ब-दम के इन्क़लाब अच्छे नहीं। तू भी उसकी ज़ुल्फे-पेचाँ[3] हो गया ऐ दिल, ऐसे पेचो-ताब[4] अच्छे नहीं। बज्म-ए-वाइज़[5] से कोई कहता गया ऐसे जलसे बे-शराब अच्छे नहीं। तौबा कर लें हम मय-ओ-माशूक़ से बे-मज़ा हैं ये सवाब[6] अच्छे नहीं। इक नजूमी[7] ’दाग़’ से कहता था आज आप के दिन ऐ जनाब अच्छे नहीं।