क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गई बदनाम करने आई थी बदनाम कर गई। क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गई। रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गई। नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़ अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गई।