गोविन्द तृतीय ध्रुव का पुत्र एवं राष्ट्रकूट वंश का उत्तराधिकारी था। वह ध्रुव का ज्येष्ठ पुत्र नहीं था, किंतु उसकी योग्यता को दृष्टि में रखकर ही उसके पिता ने उसे ही अपना उत्तराधिकारी नियत किया था। ध्रुव का ज्येष्ठ पुत्र 'स्तम्भ' था, जो गंगवाड़ी (यह प्रदेश पहले गंग वंश के शासन में था, पर अब राष्ट्रकूटों के अधीन हो गया था) में अपने पिता के प्रतिनिधि के रूप में शासन कर रहा था। उसने अपने छोटे भाई के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। शीघ्र ही गोविन्द तृतीय उसे परास्त करने में सफल हुआ। अपने भाई के विरुद्ध आक्रमण करने के अवसर पर ही गोविन्द तृतीय ने वेंगि और कांची पर पुनः हमले किए, और इनके राजाओं को वशवर्ती होने के लिए विवश किया। सम्भवतः ये राजा गोविन्द और स्तम्भ के गृहयुद्ध के कारण उत्पन्न परिस्थिति से लाभ उठाकर स्वतंत्र हो गए थे।
विजय अभियान
दक्षिण भारत में अपने विशाल शासन को भली-भाँति स्थापित कर गोविन्द तृतीय ने उत्तरी भारत की ओर रुख़ किया। गोविन्द तृतीय के पिता ध्रुव ने भिन्नमाल के राजा वत्सराज को परास्त कर अपने अधीन कर लिया था। दक्कन में अपनी स्थिति मज़बूत करने के उपरान्त उसने कन्नौज पर अधिपत्य हेतु 'त्रिपक्षीय संघर्ष' में भाग लेकर चक्रायुध एवं उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के नागभट्ट द्वितीय को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया। जिस समय गोविन्द तृतीय उत्तर भारत के अभियान में व्यस्त था, उस समय उसकी अनुपस्थिति का फ़ायदा उठा कर उसके विरुद्ध पल्लव, पाण्ड्य, चेर एवं गंग शासकों ने एक संघ बनाया, पर 802 ई. के आसपास गोविन्द ने इस संघ को पूर्णतः नष्ट कर दिया।
राष्ट्रकूटों का उत्कर्ष
ध्रुव की मृत्यु के बाद राष्ट्रकूट राज्य में जो अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, उससे लाभ उठाकर भिन्नमाल के गुर्जर प्रतिहार राजा अपनी शक्ति की पुनः स्थापना के लिए तत्पर हो गए थे। वत्सराज के बाद गुर्जर प्रतिहार वंश का राजा इस समय नागभट्ट था। गोविन्द तृतीय ने उसके साथ युद्ध किया, और 807 ई. में उसे परास्त किया। गुर्जर प्रतिहारों को अपना वशवर्ती बनाकर राष्ट्रकूट राजा ने कन्नौज पर आक्रमण किया। इस समय कन्नौज के राजसिंहासन पर राजा चक्रायुध आरूढ़ था। यह पाल वंशी राजा धर्मपाल की सहायता से इन्द्रायुध के स्थान पर कन्नौज का अधिपति बना था। उसकी स्थिति पाल सम्राट के महासामन्त के जैसी थी, और उसकी अधीनता में अन्य बहुत से राजा सामन्त के रूप में शासन करते थे। चक्रायुध गोविन्द तृतीय के द्वारा परास्त हुआ, और इस विजय यात्रा में राष्ट्रकूट राजा ने हिमालय तक के प्रदेश पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। पालवंशी राजा धर्मपाल भी गोविन्द तृतीय के सम्मुख असहाय था। कन्नौज के राजा चक्रायुध द्वारा शासित प्रदेश पाल साम्राज्य के अंतर्गत थे, पर धर्मपाल में यह शक्ति नहीं थी, कि वह राष्ट्रकूट आक्रमण से उनकी रक्षा कर सकता। राष्ट्रकूटों के उत्कर्ष के कारण पाल वंश का शासन केवल मगध और बंगाल तक ही सीमित रह गया।
शत्रुओं का संगठन
गोविन्द तृतीय के आक्रमणों और विजयों का वर्णन करते हुए पेशवाओं का वर्णन भी ध्यान आता है, जो राष्ट्रकूटों के समान ही दक्षिणापथ के राजा थे, पर जिनके कतिपय वीर पुरुषों ने उत्तरी भारत में हिमालय और सिन्ध नदी तक विजय यात्राएँ की थीं। जिस समय गोविन्द तृतीय उत्तरी भारत की विजय में तत्पर था, सुदूर दक्षिण के पल्लव, गंग, पांड्य, केरल आदि वंशों ने उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ को संघठित किया, जिसका उद्देश्य दक्षिण भारत में राष्ट्रकूट आधिपत्य का अन्त करना था। पर यह संघ अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ। ज्यों ही गोविन्द तृतीय को यह समाचार मिला, उसने तुरन्त दक्षिण की ओर प्रस्थान किया, और इस संघ को नष्ट कर दिया।
गोविन्द तृतीय के शासन काल को राष्ट्रकूट शक्ति का चरमोत्कर्ष काल माना जाता है। गोविन्द तृतीय ने पाल शासक से मालवा छीनकर अपने एक अधिकारी परमार वंश के उपकेन्द्र को सुपर्द कर दिया।
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