दिलीप महलानबीस
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पूरा नाम | दिलीप महलानबीस |
जन्म | 12 नवम्बर, 1934 |
जन्म भूमि | किशोरगंज, बंगाल (आज़ादी पूर्व) |
मृत्यु | 16 दिसम्बर, 2022 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चिकित्सक |
खोज | 'मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा' (ओआरएस) के उपयोग की। |
शिक्षा | एमबीबीएस, डीसीएच |
पुरस्कार-उपाधि | पोलिन पुरस्कार, 2002 प्रिंस महिदोल पुरस्कार, 2006 |
प्रसिद्धि | बाल रोग विशेषज्ञ |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | दिलीप महलानबीस भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ थे, जिन्हें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। |
दिलीप महलानबीस (अंग्रेज़ी: Dilip Mahalanabis, जन्म- 12 नवम्बर, 1934; मृत्यु- 16 दिसम्बर, 2022) भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ थे, जिन्हें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए 'मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा' (ओआरएस) के उपयोग की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है। ओआरएस एक सरल, सस्ता लेकिन प्रभावी समाधान है, जिसकी बदौलत दुनिया में डायरिया, हैजा और निर्जलीकरण से होने वाली मौतों में 93 प्रतिशत की कमी देखी गई है, खासकर शिशुओं और बच्चों में। सन 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान डॉ. दिलीप महलानबीस तंग शरणार्थी शिविरों में अपनी सेवा दे रहे थे। व्यापक रूप से फैले हैजा और डायरिया ने उन्हें ओआरएस की खोज के लिए मजबूर कर किया। द लांसेट द्वारा उनकी जादुई औषधि को '20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा खोज' कहा गया।
परिचय
दिलीप महलानबीस का जन्म 12 नवंबर, 1934 को किशोरगंज, बंगाल (आज़ादी पूर्व) में हुआ था। वह एक भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ थे जिन्हें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1960 के दशक के मध्य में भारत के कोलकाता में जॉन्स हॉपकिन्स इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग में हैजा और अन्य डायरिया संबंधी बीमारी पर शोध किया। जब 1971 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के शरणार्थियों के बीच हैजा फैल गया, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में शरण मांगी थी, तो उन्होंने स्वतंत्रता के लिए बांग्लादेशी लड़ाई के दौरान मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा की नाटकीय रूप से जीवन रक्षक क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर के प्रयास का नेतृत्व किया।[1]
आजीविका
एक चिकित्सक के रूप में अपनी पूरी यात्रा के दौरान, डॉ. दिलीप ने विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं और हर जगह अपनी छाप छोड़ी। जिन पदनामों पर उन्होंने कार्य किया, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
- 1980 के दशक के मध्य और 1990 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरिया रोग नियंत्रण कार्यक्रम में एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरी की।
- उन्होंने 1990 के दशक के अंत में बांग्लादेश के 'इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियाल डिजीज रिसर्च' में क्लिनिकल रिसर्च के निदेशक के रूप में भी काम किया।
- 1994 में दिलीप महलानबीस को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज का एक विदेशी सदस्य चुना गया।
पुरस्कार व सम्मान
- वर्ष 2002 में डॉ. दिलीप महलानबीस और डॉ. नथानिएल एफ पियर्स को मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा की खोज और कार्यान्वयन में उनके योगदान के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से 'पोलिन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- 2006 में डॉ. महलानाबिस, डॉ. रिचर्ड ए. कैश और डॉ. डेविड नलिन को मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा के विकास और अनुप्रयोग में उनकी भूमिका के लिए 'प्रिंस महिदोल पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
- चिकित्सा समुदाय के प्रारंभिक संदेह के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने बाद में हैजा और अन्य डायरिया संबंधी विकारों के इलाज के लिए ओआरएस को मानक उपचार के रूप में अपनाया।[1]
- वर्ष 2023 में उन्हें भारत सरकार ने उनकी सेवाओं व योगदान के लिये पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी के जनक डॉ. दिलीप महलानाबिस कौन थे? (हिंदी) jagranjosh.com। अभिगमन तिथि: 07 जुलाई, 2023।
==बाहरी कड़ियाँ
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