कुलदीप सिंह चाँदपुरी
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पूरा नाम | ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी |
जन्म | 22 नवम्बर, 1940 |
जन्म भूमि | मिंट गुमरी, अविभाजित भारत |
मृत्यु | 17 नवम्बर, 2018 |
स्थान | फ़ोर्टिस अस्पताल, मोहाली |
अभिभावक | पिता- सरदार वतन सिंह |
पति/पत्नी | सुरिंदर कौर |
सेना | भारतीय सेना |
रैंक | ब्रिगेडियर |
यूनिट | 23 पंजाब |
युद्ध | भारत-पाक युद्ध, 1965 |
सम्मान | महावीर चक्र |
प्रसिद्धि | भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) के नायक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी भारत-पाक युद्ध के ऐसे नायक थे, जिन्होने अपनी सूझबूझ और अदम्य साहस से इतिहास लिखा। उनके इसी शौर्य पर आधारित थी फिल्म 'बॉर्डर'। इस युद्ध के दौरान 120 भारतीय जवानों ने पाकिस्तान के तीन हजार सैनिकों को चांदीपुर में धूल चटा दी थी। |
अद्यतन | 14:06, 23 अक्टूबर 2022 (IST)
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ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी (अंग्रेज़ी: Brigadier Kuldip Singh Chandpuri, जन्म- 22 नवम्बर, 1940; मृत्यु- 17 नवम्बर, 2018) भारतीय सेना के वह वीर सैन्य अधिकारी थे, जिन्हें लौंगावाला के प्रसिद्ध युद्ध के लिये जाना जाता है। उन्होंने लोंगावाला के युद्ध में भारतीय सेना का वीरता के साथ नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था। सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में राजस्थान के लोंगावाला मोर्चे पर हुई लड़ाई का उन्हें हीरो माना जाता है। इस लड़ाई में कुलदीप सिंह चाँदपुरी लोंगावाला पोस्ट पर तैनात थे। सीमा पर पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट थी और चांदपुरी की कमांड में सिर्फ़ 120 जवान थे। भारतीय फ़ौज में शानदार सेवाओं के लिए उन्हें 'महावीर चक्र' और 'विशिष्ट सेवा मेडल' से नवाज़ा गया था। कुलदीप सिंह चाँदपुरी और उनके साथियों की लोंगावाला मोर्चे पर दिखाई बहादुरी पर बॉलीवुड फ़िल्म 'बॉर्डर' बनाई गई थी। इस फ़िल्म में तत्कालीन मेजर कुलदीप चांदपुरी की भूमिका अभिनेता सनी देओल ने निभाई थी।
परिचय
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी का जन्म 22 नवंबर, 1940 को अविभाजित भारत के मिंट गुमरी (अब पाकिस्तान का भाग) में हुआ था। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब के नवाशहर ज़िले के क़स्बे बलाचौर के गांव चांदपुर में आकर बस गया। कुलदीप चांदपुरी ने अपनी पढ़ाई सरकारी कॉलेज होशियारपुर से की। वह 1962 में भारतीय फ़ौज की पंजाब रेजिमेंट में बतौर लेफ़्टिनेंट भर्ती हुए थे। उन्होंने भारत के लिए 1965 और 1971 की लड़ाई में अपनी बहादुरी का जौहर दिखाया। ब्रिगेडियर चांदपुरी ने संयुक्त राष्ट्र की इमर्जेंसी सेवाओं में भी एक साल की सेवा दी।[1]
युद्ध नायक
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी भारत-पाक युद्ध के ऐसे नायक थे, जिन्होने अपनी सूझबूझ और अदम्य साहस से इतिहास लिखा। उनके इसी शौर्य पर आधारित थी फिल्म 'बॉर्डर'। इस युद्ध के दौरान 120 भारतीय जवानों ने पाकिस्तान के तीन हजार सैनिकों को चांदीपुर में धूल चटा दी थी। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट से कुछ दूर धूल का एक गुबार आसमान की तरफ बढ़ रहा था। चेक पोस्ट पर तैनात भारतीय सेना के जवानों ने समझ लिया कि पाकिस्तान की सेना ने हमला बोल दिया था। धूल का गुबार साफ हुआ तो टैंकों की गड़गड़ाहट को सुन भारतीय सेना के जवानों ने पोजीशन ले ली। इस लड़ाई में भारतीय जवानों ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई के हीरो थे ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी।
लोंगेवाला चेक पोस्ट भारत की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चेकपोस्ट है, लेकिन जिस समस पाकिस्तान ने हमला बोला उस समय इस चेकपोस्ट पर भारतीय सेना के महज 120 ही जवान तैनात थे। इस चेकपोस्ट पर पंजाब रेजिमेंट के जवान थे जिसमें अधिकतर सिक्ख जवान थे और कुछ डोगरा फौजी थे। इस पोस्ट की कमान मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के पास थी। 1971 के भारत- पाक युद्ध के दौरन पाकिस्तान ने चेकपोस्ट पर कब्जा कर देश के भीतर घुसने की योजना थी। इसके लिए पाकिस्तान पूरी तैयारी और रणनीति बनाकर आया था। इसीलिए उसने अपनी पूरी तोपखाना रेजिमेंट को इस चेकपोस्ट को तबाह कर कब्जा करने के लिए भेजा था। लेकिन पाकिस्तान शायद इस बात को नहीं जानता था कि जंग हथियारों से नहीं हौंसलों से लड़ी जाती है।
इस जंग में भी भारत के हौंसले की जीत हुई। यह जीत भारतीय सेना के शौर्य की दास्तां बयां करती है। इस जंग पर बाद में जे. पी. दत्ता ने 'बॉर्डर' नाम से एक फिल्म भी बनाई थी जिसमें चांदपुरी का रोल अभिनेता सनी देओल ने निभाया था। इतना ही नहीं, ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की पत्नी सुरिंदर कौर को ये भी नहीं पता था कि 1971 के युद्ध में उनके पति कहां तैनात हैं। ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की वीरता की कहानी उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से पता चली।[1]
शौर्य गाथा
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के जरिए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे मुक्ति वाहिनी के जांबाजों को भारतीय सेना का पूरा समर्थन था। इसी बात से पाकिस्तान बुरी तरह बौखला हुआ था। इसी बौखलाहट में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक नई साजिश रची और इस साजिश को 'ऑपरेशन चंगेजी' का नाम दिया गया। ऑपरेशन चंगेजी के तहत, पाकिस्तानी सेना ने राजस्थान की लोंगेवाला चौकी पर हमला कर भारत में दाखिल होने और रामगढ़, जैसलमेर होते हुए दिल्ली पहुंचने की साजिश रची थी। इस साजिश को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान ने 2000 जवानों के साथ 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को लोंगेवाला पोस्ट की तरफ रवाना किया था। पाकिस्तान की इसी साजिश का नतीजा 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध था।
भारत-पाक सीमा के आखिरी पोस्ट लोंगेवाला पर उन दिनों पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन की ए कंपनी को तैनात किया गया था। मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में तैनात इस कंपनी में 120 जवानों के पास बड़े हथियारों के नाम पर महज एक एमएमजी, एल-16 81 एमएम मोर्टार, तोप लगी एक जीप थी। इसके अतिरिक्त, इस पोस्ट पर चार सिपाहियों वाला बीएसएफ का एक ऊंट दस्ता भी तैनात था। 3 दिसंबर की शाम को लगभग 5:40 बजे, पाकिस्तान एयरफोर्स ने आगरा सहित उत्तर-पश्चिमी भारत की 11 एयर फील्ड्स पर हमला कर दिया। इस हमले के सूचना मिलने के साथ मेजर कुलदीप सिंह ने लेफ्टिनेंट धर्मवीर के नेतृत्व में 20 जवानों की पेट्रोल टीम को बार्डर पिलर पर भेज दिया। कुछ ही घंटों बाद, लेफ्टिनेंट धर्मवीर ने मेजर कुलदीप को बताया कि 65 टैंक और एक मोबाइल इंफ्रेंट्री के साथ पाकिस्तान की बड़ी फौज लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रही है। मेजर कुलदीप सिंह ने तत्काल इस जानकारी को मुख्यालय कमांड से साझा कर एयरफोर्स सपोर्ट की मांग की। चूंकि, रात होने वाली थी, लिहाजा अगली सुबह तक लोंगेवाला पोस्ट को एयर सपोर्ट मिलना संभव नहीं था।
आर्मी मुख्यालय ने दो विकल्पों के साथ आखिरी फैसला मेजर कुलदीप सिंह पर छोड़ दिया। पहला विकल्प पोस्ट पर कब्जा जमाए रखने का था, जबकि दूसरा विकल्प पोस्ट को खाली छोड़कर पीछे हटने का था। लोंगेवाला पोस्ट पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के साथ मौजूद 120 जांबाजों ने पोस्ट पर रुककर दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने का फैसला किया। दुश्मन के टैंक की ताकत को खत्म करने के लिए एंटी टैंक माइंस का जाल बिछा दिया गया और एंटी टैंक गन को तैनात कर दिया गया। देखते ही देखते, करीब 20 किलोमीटर लंबा दुश्मन की गाडि़यों का काफिला लोंगेवाला पोस्ट से कुछ ही दूरी पर एकत्रित हो गया। अब भारतीय सेना और दुश्मन बिल्कुल आमने-सामने आ चुके थे। 4 दिसंबर 1971 की रात करीब 12:30 बजे पाकिस्तान की तरफ से आर्टरी फायरिंग शुरू कर दी गई और पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। जैसे ही ये टैंक लोंगेवाला पोस्ट से करीब 30 मीटर की दूरी पर रह गए, भारतीय जांबाजों ने एंटी टैंक गन से पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते, दुश्मन के दो शक्तिशाली टैंक धरासाई हो गए। भारतीय सेना को मिली इस पहली सफलता ने इस युद्ध का रुख बदल दिया।
दरअसल, दो टैंक के ध्वस्त होने से दो बाते हुईं। पहली बात यह कि पाक सेना के अधिकारियों को लगा कि पूरे इलाके में लैंड माइंस बिछी हुई है, लिहाजा उन्होंने सेना को लोहे की बाड़ से आगे जाने से रोक दिया। वहीं दूसरी बात यह हुई कि ध्वस्त हुए दोनों टैंकों की अाग से पूरे इलाके में रोशनी हो गई। अब ऊंचाई पर मौजूद भारतीय सेना पाक सेना को न केवल साफ साफ देख सकती थी, बल्कि उन्हें अपनी गोलियों के निशाने पर ले सकती थी। पाक सेना के जलते टैंकों की रोशनी की मदद से भारतीय सेना अब दुश्मन पर सटीक निशाना लगा सकती थी। मेजर चांदपुरी के नेतृत्व में भारतीय सेना मोर्टार, एमएमजी सहित दूसरे हथियारों से इतनी सटीक गोलीबारी कर रही थी कि संख्या बल और सैन्य संसाधन में कई गुना अधिक शक्तिशाली दुश्मन के पांव अपनी जगह पर जम से गए थे। पाकिस्तानी सेना के धमे हुए इन पैरों ने भारतीय सेना के जांबाजों के हौसले को कई गुना बढ़ा दिया। वहीं, पाक सेना के अधिकारियों को यह समझने में करीब दो घंटे का समय लग गया कि कंटीले तारों के इस तरफ लैंड माइंस नहीं बिछे हुए है। पाक सेना की इस नई समझ ने युद्ध को बेहद गंभीर बना दिया। अब गोलियों की बौछार के साथ-साथ जवानों के बीच हाथापाई भी शुरू हो गई थी। बेहद सीमित संसाधनों के बीच युद्ध लड रहे भारतीय सेना के जांबाजों ने अपने राइफल की संगीन ने लोंगेवाला पोस्ट को दुश्मन की लाशों से पटाना शुरू कर दिया था।
उधर, सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय एयर फोर्स के हंटर और मारुत लड़ाकू विमान मदद के लिए लोंगेवाला पोस्ट पहुंच चुके थे। इन लड़ाकू विमानों ने देखते ही देखते पाकिस्तानी टैंकों को एक-एक करके ध्वस्त करना शुरू कर दिया। इस हवाई हमले में दोपहर तक पाकिस्तान सेना की 100 से ज्यादा बख्तरबंद गाडि़यां, 22 टैंक और 12 टैंक इंफेट्री बर्बाद हो चुकी थी। इस बीच, रणभूमि में पहुंचे कैवलेरी टैंक और 17 राजपूताना राइफल्स की जवाबी कार्रवाई ने पाक सेना की बची खुची ताकत भी समाप्त कर दी। इस तरह, भारतीय सेना के महज 120 जांबाजों ने दुश्मन सेना के 2000 जवानों, 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को अपने हौसले से रौंद डाला। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अभूतपूर्व विजय प्राप्त की। वहीं उद्भुत युद्ध कौशल के लिए 23वीं बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कुलदीप सिंह चांदपुरी को 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था।
जवानों को किया प्रेरित
युद्ध के बारे में बताते हुए ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि पाकिस्तानी सेना के हजारों सैनिकों और 40-50 टैंकों ने हमें घेर लिया था। वहां से बचकर निकलना बेहद मुश्किल था। ऐसे हालात में फैसला लेना मुश्किल था। उन्होंने बताया कि ऐसे वक्त में पोस्ट छोड़कर भाग भी नहीं सकते थे, क्योंकि इसकी इजाजत उनका धर्म नहीं देता था। इसके बाद मैंने अपने जवानों को लड़ने के लिए प्रेरित किया। लौंगेवाला चौकी पर सिक्ख रेजिमेंट तैनात थी। चांदपुरी ने अपने जवानों को गुरु गोविंद सिंह और उनके बेटों की शहादत की मिसालें दीं और कहा कि अगर हम युद्ध छोड़कर भागेंगे तो यह पूरी सिक्ख कौम पर कलंक होगा।
मृत्यु
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी का निधन 17 नवम्बर, 2018 को मोहाली के फ़ोर्टिस अस्पताल में शनिवार के दिन सुबह नौ बजे हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1971 के युद्ध का हीरो, जिसने 3 हजार पाक सैनिकों को चटा दी थी धूल (हिंदी) zeenews.india.com। अभिगमन तिथि: 23 अक्टूबर, 2022।
बाहरी कड़ियाँ
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