मिश्मी भारत में निवास करने वाली जनजाति है। अधिकांशत: ये लोग भारत के एकदम पूर्वोत्तर सिरे पर स्थित अरुणाचल प्रदेश[1] में, तिब्बत और असम के निकट केंद्रित हैं। मिश्मी लोग तिब्बती-बर्मी भाषाई परिवार की बोली बोलते हैं।
निवास तथा समूह
20वीं सदी के उत्तरार्ध में लगभग 35,000 की संख्या वाले मिश्मीजन दिबांग, जहां उन्हें 'मीडू' कहते हैं, और लोहित नदियों की घाटी में रहते थे। लोहित घाटी में रहने वाले मिश्मी दो समूहों में बंटे हैं-
- लोहित नदी के ऊपरी हिस्सों में बसने वाले 'मीजू'
- निचले हिस्से वाले 'दीगारू'
विवाह और बस्तियाँ
मिश्मी लोगों का वंश पिता की तरफ़ से चलता है और युवाओं से उम्मीद की जाती है कि वे अपने पितृ कुल के बाहर विवाह करें। उनकी बस्तियां छोटी होती हैं और बार-बार बदलती रहती हैं। उनमें कोई मुखिया या सरदार नहीं होते। हर परिवार समूह वस्तुत: स्वायत्त होता है और लकड़ी के खंभों पर बने लट्ठों के घरों में रहता है।
व्यवसाय
मिश्मियों का कृषि का तरीक़ा आदिम है। उनकी प्रमुख खाद्य फ़सलें मक्का, ज्वार और कुटु हैं। पहाड़ियों की ऊंचाई पर गेहूँ और तलहटियों पर चावल उगाया जाता है। मवेशी वध के लिए पाले जाते हैं और उनका उपयोग मुद्रा के रूप में भी किया जाता है। इनके अन्य व्यवसाय हैं- शिकार और मछली पकड़ना, मिश्मी लोग काफ़ी बड़ी तादाद में तिब्बत और असम के निवासियों के साथ वस्तु-विनिमय आधारित व्यापार करते हैं। कस्तूरी, औषधीय जड़ी-बूटियों, भोजपत्र और ज़हर मोहरे के बदले वे वस्त्र, नमक, तांबे के बर्तन और तलवारें प्राप्त करते हैं।
उपासना
मिश्मी लोग अपने आदिवासी देवताओं की उपासना पशुबलि और भेंट-पूजा द्वारा करते हैं, जिस पर तिब्बत का कुछ प्रभाव दिखाई देता है। इनमें दासता और नर-आखेट अब प्रचलित नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पहले नॉर्थ ईस्ट फ़्रंटियर एजेंसी
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