हम मुसाफ़िर यूँ ही मसरूफ़े सफ़र जाएँगे बेनिशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे किस क़दर होगा यहाँ मेहर-ओ-वफ़ा का मातम हम तेरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ारे-सुख़न हम किसे बेचने अल्मास-ओ-गुहर जाएँगे शायद अपना ही कोई बैत हुदी-ख़्वाँ बन कर साथ जाएगा मेरे यार जिधर जाएँगे 'फ़ैज़' आते हैं रहे-इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे