दीवान सिंह दानू

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दीवान सिंह दानू
दीवान सिंह दानू
दीवान सिंह दानू
पूरा नाम दीवान सिंह दानू
जन्म 4 मार्च, 1923
जन्म भूमि पुरदम, पिथौरागढ़
मृत्यु जम्मू और कश्मीर
अभिभावक माता- रमुली देवी

पिता- उदय सिंह

सेना भारतीय सेना
बटालियन 4 कुमाऊँ
युद्ध भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947)
प्रसिद्धि महावीर चक्र सम्मानित भारतीय सैनिक।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दीवान सिंह दानू के सौर्य के किस्से 'कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास' नामक पुस्तक में भी है। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
अद्यतन‎

दीवान सिंह दानू (अंग्रेज़ी: Diwan Singh Danu, जन्म- 4 मार्च, 1923; बलिदान- 3 नवम्बर, 1947) भारत के वीर सैनिक थे। वह 4 मार्च, 1943 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। सन 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई। 3 नवंबर, 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने दीवान सिंह दानू की प्लाटून पर हमला कर दिया। डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया। इस हमले वह वीरगति को प्राप्त हुए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' प्रदान किया।[1]

  • दीवान सिंह दानू उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुरदम निवासी थे।
  • वह 4 मार्च, 1943 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। वह सेना में सिपाही थे।
  • 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई।
  • डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया।
  • कबाइलियों से युद्ध में दीवान सिंह दानू ने अदम्य साहस का परिचय दिया हालांकि इस युद्ध में वह शहीद हो गए।
  • जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' प्रदान किया।
  • दीवान सिंह दानू के बलिदान का सम्मान करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनके पिता उदय सिंह को पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था- "हिंद की जनता की ओर से और अपनी तरफ से दु:ख और रंज में यह संदेश भेज रहा हूं। हमारी दिली हमदर्दी आपके साथ है। देश की सेवा में यह जो बलिदान हुआ है, इसके लिए देश कृतज्ञ है और हमारी यह प्रार्थना है कि इससे आपको कुछ धीरज और शांति मिले।"
  • दानू के सौर्य के किस्से 'कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास' नामक पुस्तक में भी है। जिसमें लिखा है, दानू ने कबाइलियों से मोर्चे के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
  • मुनस्यारी का राजकीय हाईस्कूल बिर्थी दीवान सिंह दानू के नाम से स्थापित है।
  • कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में उनके नाम पर दीवान हाल भी है।


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