भारतीय नौसेना
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विवरण | भारतीय नौसेना, भारतीय सेना का सामुद्रिक अंग है जो अपने गौरवशाली इतिहास के साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षक है। 55,000 नौसैनिकों से सुसज्जित यह विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी नौसेना भारतीय सीमा की सुरक्षा को प्रमुखता से निभाते हुए विश्व के अन्य प्रमुख मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य अभ्यास में भी सम्मिलित होती है। |
मुख्यालय | नई दिल्ली |
अधिकृत शुरुआत | 5 सितंबर 1612 |
नौसैनिक बेड़ा | 15 अगस्त 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने पर भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे, जो केवल तटीय गश्त के लायक़ थे। |
पहला विमानवाही पोत | आई.एन.एस. 'विक्रांत' भारत का पहला विमानवाही पोत था। इसे 1961 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया और जनवरी 1997 में सेवामुक्त कर दिया गया। |
भारतीय नौसेना दिवस | यह 1971 की जंग में भारतीय नौसेना की पाकिस्तानी नौसेना पर जीत की याद में 4 दिसम्बर को मनाया जाता है। |
अन्य जानकारी | स्वतंत्रता के बाद से नौसेना ने अब तक 81 से ज़्यादा युद्धपोतों और पनडुब्बियों का डिज़ाइन तैयार कर मुंबई, कोलकाता, विशाखापट्टनम और गोवा के शिपयार्ड में निर्माण किया। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
भारतीय नौसेना (अंग्रेज़ी: Indian Navy) भारतीय सेना का सामुद्रिक अंग है जो अपने गौरवशाली इतिहास के साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षक है। 55,000 नौसैनिकों से सुसज्जित यह विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी नौसेना भारतीय सीमा की सुरक्षा को प्रमुखता से निभाते हुए विश्व के अन्य प्रमुख मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य अभ्यास में भी सम्मिलित होती है। आधुनिक भारतीय नौ सेना की नींव 17वीं शताब्दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के रूप में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की और इस प्रकार 1934 में रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हुई। भारतीय नौ सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्य नौ सेना अधिकारी- एडमिरल के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना 3 क्षेत्रों की कमांडों के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।
- पश्चिमी नौ सेना कमांड का मुख्यालय अरब सागर में मुम्बई में स्थित है।
- दक्षिणी नौ सेना कमांड केरल के कोच्चि (कोचीन) में है तथा यह भी अरब सागर में स्थित है।
- पूर्वी नौ सेना कमांड बंगाल की खाड़ी में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में है। [1]
इतिहास
भारतीय नौसेना की अधिकृत शुरुआत 5 सितंबर 1612 को हुई थी। इस दिन ईस्ट इंडिया कंपनी के लड़ाकू जहाजों (युद्धपोतों) का पहला बेड़ा सूरत के बंदरगाह पर पहुँचा था। यह बेड़ा 'द ऑनरेबल ईस्ट इंडिया कंपनीज़ मॅरीन' कहलाता था। बाद में यह 'द बॉम्बे मॅरीन' कहलाया गया। पहले विश्व युद्ध के दौरान इस नौसेना का नया नाम 'रॉयल इंडियन मॅरीन' रखा गया। द्वितीय विश्व युद्ध आते-आते रॉयल इंडियन नेवी में लगभग आठ युद्धपोत थे। युद्ध के ख़त्म होने तक पोतों की संख्या बढ़कर 100 हो गई थी।
26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र बना और इस दिन भारतीय नौसेना ने अपने नाम के सामने से रॉयल नाम को त्याग दिया। उस समय भारतीय नौसेना में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे। भारतीय नौसेना के पहले कमांडर-इन-चीफ़, रियल एडमिरल आई.टी.एस. हॉल थे। पहले भारतीय नौसेनाध्यक्ष (सी.एन.एस.) वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी थे, जिन्होंने 22 अप्रॅल 1958 को कार्यभार संभाला।
संगठन
नौसेनाध्यक्ष को उप-नौसेनाध्यक्ष (वाईस एडमिरल या रियर एडमिरल) के दर्ज़े के पाँच मुख्य स्टाफ़ अधिकारियों का सहयोग मिलता है। कुल तीन नौसैनिक कमान हैं।
- पश्चिमी (कार्यकारी मुख्यालय मुंबई में),
- पूर्वी (कार्यकारी मुख्यालय विशाखापट्टनम में)
- दक्षिणी (कार्यकारी मुख्यालय कोच्चि में)
प्रत्येक कमान का प्रमुख एक फ़्लैग ऑफ़िसर उप-नौसेनाध्यक्ष (वाइस एडमिरल) के पद वाला मुख्य अधिकारी होता है। भारतीय नौसेना प्राद्वीपीय भारत के 6,400 किलोमीटर लंबे समुद्रतट की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है। एक स्वतंत्र अर्द्ध सैनिक सेवा, भारतीय तटरक्षक (इंडियन कोस्ट गार्ड) भारतीय नौसेना भारत के समुद्रवर्ती और अन्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान उपलब्ध कराती है।
नौसैनिक बेड़ा
15 अगस्त 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने पर भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे, जो केवल तटीय गश्त के लायक़ थे। आई.एन.एस. 'विक्रांत' भारत का पहला विमानवाही पोत था। इसे 1961 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया और जनवरी 1997 में सेवामुक्त कर दिया गया। दो अन्य विध्वंस जहाज़ आई.एन.एस. 'डेल्ही' और आई.एन.एस. 'मैसूर' भारतीय नौसेना के गौरव हैं। आई.एन.एस. 'विराट', जिसे भारतीय नौसेना में 1986 में शामिल किया गया। भारत का दूसरा विमानवाही पोत बन गया। हालांकि अप्रॅल 1999 से यह पोत द्विवर्षीय नवीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत हैं। आज भारतीय नौसेना के पास एक बेड़े में पेट्रोल चालित पनडुब्बियाँ, विध्वंसक पोत फ़्रिगेट जहाज़ कॉर्वेट जहाज़, प्रशिक्षण पोत, महासागरीय एवं तटीय सुरंग मार्जक पोत (माईनस्वीपर) और अन्य कई प्रकार के पोत हैं।
उड्डयन
भारतीय नौसेना की उड्डयन सेवाओं का इतिहास कोच्चि में आई.एन.एस. 'गरुड़' के शामिल होने के साथ एक छोटे स्तर पर शुरू हुआ। इसके बाद कोयंबतुर में जेट विमानों की मरम्मत व रख-रखाव के लिए आई.एन.एस 'हंस' को शामिल किया गया। फ़रवरी 1961 में पहले विमानवाही पोत आई.एन.एस 'विक्रांत' को नौसेना के एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में शामिल किया गया।
महत्त्वपूर्ण कार्यवाहियाँ
भारतीय नौसेना ने इस क्षेत्र की जल सीमा में चार बड़ी कार्यवाहियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे पहले 1961 में, जब नौसेना ने गोवा को पुर्तग़ालियों से स्वतंत्र करने में थल सेना की मदद की। 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो नौसेना ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े ने पूर्वी पाकिस्तान के चारों तरफ़ समुद्री और हवाई क्षेत्र पर अपना नियंत्रण कर लिया था। विमानवाही पोतों से पूर्वी पाकिस्तान के महत्त्वपूर्ण ठिकानों पर हवाई हमला किया गया और पाकिस्तान जहाज़ों पर क़ब्ज़ा करके नष्ट कर दिया। नौसेना ने कराची बंदरगाह पर प्रक्षेपास्त्रों से हमला किया गया। महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि 1971 की इस पूरी कार्रवाई में नष्ट होने वाला एकमात्र भारतीय जहाज़ आई.एन.एस. 'खुकरी' था। 1987 में हुआ 'ऑपरेशन पवन' एक अन्य कार्रवाई है, जिसमें भारतीय नौसेना ने अपनी उपयोगिता साबित की। भारतीय नौसेना भारतीय शांति सेना को हथियार, गोला-बारूद और वाहन के साथ श्रीलंका पहुँचाने के लिए ज़िम्मेदार थी। 1988 के 'ऑपरेशन कैक्टस' में मालदीव के प्रजातांत्रिक तरीक़े से चुने गए राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को सैनिक सहायता पहुँचाने के लिए वायु सेना और थल सेना की मदद की थी। भारतीय नौसेना द्वारा भेजे गए एक समुद्रवर्ती टोही विमान ने एक व्यापारिक पोत में जाते भाड़े के सैनिकों को चिह्नित कर लिया था, जो मालदीव सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास कर रहे थे। ये विद्रोही अपने साथ कई बंधक भी रखे हुए थे। नौसेनिक जहाज़ों ने इस व्यापारिक जहाज़ को बीच में ही रोककर बंधकों को छुड़ा लिया। इस कार्रवाई ने समुद्र में आतंकवाद को रोकने में भारतीय नौसेना की क्षमता को साबित कर दिया।
अन्य गतिविधियाँ
द इंडियन मॅरीन स्पेशल फ़ोर्स (आई.एम.एस.एफ़.), जो भारतीय नौसेना का अपेक्षाकृत नया विभाग है, श्रीलंका में भारतीय शांति सेना की कार्रवाई के दौरान जाफ़ना बंदरगाह पर हमले में शामिल हुई थी। इसका श्रीनगर के आस-पास झीलों पर गश्त करने में उपयोग किया जाता है। कारगिल के 'ऑपरेशन विजय' के दौरान भारतीय नौसेना ने प्रक्षेपास्त्रों से युक्त पोत लगाकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जम्मू और कश्मीर में कारगिल युद्ध के बाद की आतंकवादी कार्यवाहियों के ख़िलाफ़ मॅरीन कमांडोज़ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नौसेना ने चक्रवाती तूफ़ानों जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय तलाश और बचाव अभियानों में जान-माल की रक्षा जैसी उपयोगी सेवाएँ उपलब्ध कराईं हैं। नौसेना ने कई नागरिक विभागों के लिए डूबे हुए जहाज़ों की तलाश, मृत शरीरों को निकालने और डूबे हुए सोना-चाँदी को खोज निकालने जैसे विभिन्न प्रकार के कार्यों में सहयोग किया है।
भारतीय नौसेना अपनी प्रशिक्षण संस्था, नेवॅल एकैडमी, कोच्चि में चलाती है। सभी महत्त्वपूर्ण नौसेनिक अड्डों में इसके अपने अस्पताल चलते हैं, जिनमें सबसे बड़ा मुंबई, अश्विनी का इंडियन नेवॅल हॉस्पिटल स्टेशन (आई.एन.एच.एस.) है। द नेवल वाइव्ज़ वेलफ़ेयर एसोसिएशन (एन.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए) भारतीय नौसेना का एक संगठन है, जो नौसेना के जवानों से संबंधित विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों में शामिल होता है।
शांति प्रयास
भारतीय नौसेना ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति क़ायम करने की विभिन्न कार्यवाहियों में भारतीय थल सेना सहित भाग लिया है। वह सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई (यू.एन.ओ.एस.ओ.एम.) का एक हिस्सा थी। 1992-1993 में सोमालिया तट और बंदरगाहों पर लगभग 347 दिनों तक भारतीय नौसेना के युद्धपोत ने लगातार चौकसी रखी। बाद में दिसंबर 1994 में भारतीय नौसेना की एक टास्क फ़ोर्स ने, जिसमें दो गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट शामिल थे। भारतीय सेना के जवानों को सोमालिया से बाहर निकालने में सहायता पहुँचाई। वहाँ इस टास्क फ़ोर्स ने जहाज़ पर तैनात मशीनगर से युक्त हेलिकॉप्टरों से सेना को धुंआधार गोलीबारी कर सुरक्षा कवच प्रदान किया।
बढ़ती ज़िम्मेदारियाँ
1994 में हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के समुद्री क़ानून से संबंधित सम्मेलन (यू.एन.सी.एल.ओ.एस.) ने भारत को 22 लाख वर्ग किलोमिटर का विशिष्ट अर्थिक क्षेत्र (ई.ई.जेड) दिया है। यह आर्थिक दोहन के लिए प्रदत्त कुल भू-क्षेत्र के दो-तिहाई हिस्से के अतिरिक्त है। इससे भारतीय नौसेना की ज़िम्मेदारियों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है। विदेशी हमलों का जवाब देने की ज़िम्मेदारी के अलावा नौसेना भारत के समुद्रवर्ती हितों, जो भारत के आर्थिक विकास से जुड़े हुए हैं, का भी ख़्याल रखती है। भारतीय नौसेना नए नाविकों के प्रशिक्षण हेतु कई संस्थाएँ चलाती है। शुद्ध नौसैनिक प्रशिक्षण के अलावा ये संस्थाएँ चलाती है। जवानों को अन्य संबंधित सेवा संस्थाओं में भी प्रशिक्षण मुहैया कराती हैं।
स्वदेशीकरण
रक्षा मंत्रालय ने बंबई (वर्तमान मुंबई) के मज़गांव बंदरगाह को 1960 में और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के गार्डेन रीच वर्कशॉप (जी.आर.एस.ई.) को 1961 में अपने अंतर्गत लिया। ये देश के अपने स्वयं के पोत निर्माण की दिशा में आरंभिक क़दम थे।
स्वतंत्रता के बाद से नौसेना ने अब तक 81 से ज़्यादा युद्धपोतों और पनडुब्बियों का डिज़ाइन तैयार कर मुंबई, कोलकाता, विशाखापट्टनम और गोवा के शिपयार्ड में निर्माण किया। भारतीय नौसेना सैन्य अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) और अन्य सरकारी सार्वजनिक क्षेत्रों की मदद से अपनी प्रमुख पनडुब्बी प्रणाली, हथियार और सेंसर प्रणाली के क्षेत्र में लगातार तरक़्क़ी कर रही है। इसमें देश की अपनी जटिल इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली के साथ-साथ रेडार, सोनार व फ़ायर कंट्रोल, प्रणाली तथा प्रक्षेपास्त्र, बंदूकें, तोप और टॉरपीडो भी शामिल हैं। डी.आर.डी.ओ. की प्रयोगशालाओं की श्रृंखला और भारतीय नौसेना के वेपंस ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग एस्टेब्लिशमेंट (डब्ल्यू.ई.एस.ई.ई.) ने विभिन्न उपरकणों के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय नौसेना का नवीनतम गौरव आई.एन.एस. 'कोरा' जी.आर.एस.ई. 'डेल्ही' डी 61, जिसे नवंबर 1997 में शामिल किया गया, भारत में अभिकल्पित और निर्मित विशालतम और सर्वाधिक शक्तिशाली युद्धपोत है। आई.एन.एस. 'कोरा' जी.आर.एस.ई. कोलकाता में निर्मित चार प्रक्षेपास्त्रों से लैस स्वदेशी कॉर्वेट में पहला है। जिसे 10 अगस्त 1998 में शामिल किया गया। अत्यधिक तेज़ हमलावार पोत आई.एन.एफ.ए.सी.टी-80 और टी.-81 को 1998-1999 में शामिल किया गया। आई.एन.एस. 'डेल्ही' के वर्ग के विध्वंसक पोत आई.एन.एस. 'मैसूर' डी 62 को 1999 में शामिल किया गया, जो भारत का 81वां स्वदेशी युद्धपोत बन गया 'ब्रह्मपुत्र' वर्ग के फ़्रिगेट और कॉर्वेट के साथ 'आदित्य' पहला स्वदेशी युद्धपोत तेलवाहक बेड़ा है, जो हाल में ही जी.आर.एस.ई. कोलकाता में निर्मित हुआ है और 2000 के मध्य में नौसेना में शामिल हो गया है।
भारतीय नौसेना दिवस
भारतीय नौसेना दिवस प्रत्येक वर्ष 4 दिसम्बर को मनाया जाता है। यह 1971 की जंग में भारतीय नौसेना की पाकिस्तानी नौसेना पर जीत की याद में मनाया जाता है। 3 दिसंबर को भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाक सेना के ख़िलाफ़ जंग की शुरुआत कर चुकी थी। वहीं, 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' के तहत 4 दिसंबर, 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची नौसैनिक अड्डे पर भी हमला बोल दिया था। इस यु्द्ध में पहली बार जहाज पर मार करने वाली एंटी शिप मिसाइल से हमला किया गया था। नौसेना ने पाकिस्तान के तीन जहाज नष्ट कर दिए थे। इसमें भारतीय नौसेना का आई.एन.एस. खुकरी भी पानी में डूब गया था। इसमें 18 अधिकारियों सहित लगभग 176 नौसैनिक सवार थे।[2]
मुग़लों की नौसेना ने जीते थे कई युद्ध
दुनिया में हिंदुस्तानी नौसेना ताकत के हिसाब से सातवें स्थान पर है। भारत में मुग़लों के वक्त से ही नौसेना मजबूत रही है। यह सैन्य अभियानों में तो भाग लेती ही थी, समुद्री डाकुओं से व्यापारियों की सुरक्षा को भी इसका इस्तेमाल किया जाता था। आगरा इसका प्रमुख केंद्र था। यहां से इलाहाबाद तक व्यापार जलमार्ग से होता था। मुग़ल नौसैनिक बेड़े के बारे में "आइना-ए-अकबरी" में अबुल फ़ज़ल लिखते हैं कि पानी के जहाजों का इस्तेमाल व्यापारियों के सामान व हाथियों को एक स्थान से दूसरे तक ले जाने के लिए किया जाता था। अकबर का नौसैनिक विभाग भी था, जिसका काम नदियों की निगरानी और ऐसे यात्रियों की यात्रा की व्यवस्था करना था, जो किराया चुकाने में असमर्थ होते थे। अकबर के समय में ढाका इसका प्रमुख केंद्र था। उसकी नौसेना में 3000 जहाज थे, जिन पर उस समय 8.5 लाख रुपये का वार्षिक खर्च होता था। औरंगजेब के समय वर्ष 1660 में खर्चा बढ़कर 14 लाख रुपये वार्षिक हो गया। नाव से नदी पार करने के लिए उस समय कर देना होता था। हाथी को नदी पार कराने के लिए आठ आने और 20 आदमियों को नदी पार कराने पर एक आना लिया जाता था। सुरक्षा की दृष्टि से रात में विशेष परिस्थितियों को छोड़कर नाव चलाने की अनुमति नहीं थी। मुग़ल नौसेना नदियों की निगहबानी करती थी। मुग़ल नौसेना ने कई सैन्य अभियानों में भाग लिया था। जहांगीर के समय बंगाल के गवर्नर इस्लाम खां ने अराकान के राजा को हराया था। उसके पास 80 बोट थीं। शाहजहां के समय मुग़ल नौसेना ने कोच्चि के ख़िलाफ़ जंग लड़ी थी। औरंगज़ेब के समय में बंगाल के वायसराय मीर जुमला ने वर्ष 1662 में 323 नावों के साथ असम के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में भाग लिया था। मुग़ल सेना ने शत्रु के 350 जहाजों (बड़ी नावों) पर क़ब्ज़ा कर लिया था। मीर जुमला की मौत के बाद शाही नौसेना नष्ट हो गई थी।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय सशस्त्र सेनाएं (हिन्दी) अधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 6 फ़रवरी, 2011।
- ↑ नेवी डे: जब पाक नौसेना पर हमला करके भारत ने डुबो दिए थे तीन जहाज (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 4 दिसम्बर, 2015।
- ↑ नौसेना दिवस पर विशेषः मुग़लों की थी ताकतवर नौसेना (हिन्दी) नई दुनिया। अभिगमन तिथि: 4 दिसम्बर, 2015।