नैनीताल
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विवरण | नैनीताल, उत्तरी उत्तराखंड राज्य के उत्तर मध्य भारत में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। |
राज्य | उत्तराखंड |
ज़िला | नैनीताल |
निर्माता | पी. बेरून |
स्थापना | 1841 |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 29.38°, पूर्व- 79.45° |
मार्ग स्थिति | पंत नगर हवाई अड्डे से लगभग 63 किमी दूर है। |
प्रसिद्धि | झीलों के लिए |
कब जाएँ | अप्रैल-जून, सितंबर-अक्टूबर |
पंत नगर हवाई अड्डा | |
काठगोदाम रेलवे स्टेशन | |
नैनीताल बस अड्डा | |
क्या देखें | नैनीताल पर्यटन |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथिग्रह, रिजॉर्ट |
क्या ख़रीदें | गर्म ऊनी वस्त्र, हस्तशिल्प वस्तुएँ और मोमबत्तियाँ |
एस.टी.डी. कोड | 05942 |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | नैनी झील, सात ताल झील, भीमताल झील, नौकुचिया ताल, त्रिऋषि सरोवर, मुक्तेश्वर
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अन्य जानकारी | पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। |
अद्यतन | 20:12, 18 नवम्बर 2014 (IST)
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नैनीताल (अंग्रेज़ी: Nainital) भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। नैनीताल, उत्तराखंड के उत्तर मध्य भारत में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित एक नगर है। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। बर्फ़ से ढके पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। इसलिए इसे 'झीलों का शहर' भी कहा जाता है। नैनीताल को चाहे जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। इसे भारत का 'लेक डिस्ट्रिक्ट' कहा जाता है, क्योंकि इसकी पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। इसकी भौगोलिक विशेषता निराली है। नैनीताल का सबसे कम तापमान 27.06°C से 8.06°C के बीच रहता है। नैनीताल का दृश्य नैनों को सुख देता है।
भौगोलिक स्थिति
नैनीताल शहर उत्तर-मध्य भारत के उत्तरी उत्तराखंड राज्य में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से लगभग 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर एक सुंदर झील के आस-पास बसा हुआ है और इसके चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ हैं। नैनीताल के उत्तर में अल्मोड़ा, पूर्व में चम्पावत, दक्षिण में ऊधमसिंह नगर और पश्चिम में पौड़ी एवं उत्तर प्रदेश की सीमाएँ मिलती हैं। जनपद के उत्तरी भाग में हिमालय क्षेत्र तथा दक्षिण में मैदानी भाग हैं जहाँ साल भर आनंददायक मौसम रहता है।
इतिहास
नैनीताल को पी. बेरून नामक व्यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल अंग्रेज़ों का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, अंग्रेज़ इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। औपनिवेशिक काल में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी नैनी झील और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण कला के अद्भुत उदाहरण है।
नामकरण
देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल ज़िले में सबसे अधिक ताल हैं। यहाँ पर 'नैनीताल' (नैनी झील) जो नैनीताल ज़िले के अन्दर आता है, यहाँ का मुख्य आकर्षण केन्द्र है। तीनों ओर से घने-घने वृक्षों की छाया में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल समुद्रतल से 1934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल की लम्बाई 1,358 मीटर, चौड़ाई 458 मीटर और गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गयी है। नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। आकाश मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर से नैनीताल आते हैं। जल में विहार करते हुए बत्तख़ों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार-चाँद लगा देता है। इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है। गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है।[1]
नैना देवी का नैनीताल
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल-स्वरूप यज्ञ के हवनकुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अप्पुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिव पत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह आँख की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है।
कुमाऊँ के चन्द राजाओं की इष्ट देवी भी नन्दा ही थी, जिनकी वे निरन्तर यहाँ आकर पूजा करते रहते थे। एक जनश्रुति ऐसी भी कही जाती है कि चंद्रवंशीय राजकुमारी नन्दा थी जिसको एक देवी के रूप में पूजा जाता था। परन्तु इस कथा का कोई प्रामाणिक स्रोत नहीं है, क्योंकि समस्त पर्वतीय अंचल में नन्दा को ही इष्ट देवी के रुप में स्वीकारा गया है। गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं की भी नन्दा देवी इष्ट रही है। गढ़वाल और कुमाऊँ की जनता के द्वारा प्रतिवर्ष नन्दा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की विशेष पूजा होती है। नन्दा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल-कुमाऊँ की जनता निरन्तर करती रही है। अतः नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रूप में इस स्थान का महत्व युगों-युगों से आंका गया है। यहाँ के लोग इसी रूप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं।[1]
पौराणिक संदर्भ
पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। मानसखंड में नैनीताल और कोटाबाग़ के बीच के पर्वत को शेषगिरि पर्वत कहा गया है, जिसके एक छोर पर सीतावनी स्थित है। कहा जाता है कि सीतावनी में भगवान राम व सीता ने कुछ समय बिताया है। जनश्रुति है कि सीता सीतावनी में ही अपने पुत्रों लव व कुश के साथ राम द्वारा वनवास दिये जाने के दिनों में रही थीं। सीतावनी के आगे देवकी नदी बताई गई है, जिसे वर्तमान में दाबका नदी कहा जाता है। महाभारत वन पर्व में इसे आपगा नदी कहा गया है। आगे बताया गया है कि गर्गांचल (वर्तमान गागर) पर्वतमाला के आसपास 66 ताल थे। इन्हीं में से एक त्रिऋषि सरोवर (वर्तमान नैनीताल) कहा जाता था, जिसे भद्रवट (चित्रशिला घाट-रानीबाग़) से कैलाश मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रि, पुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया था। इस सरोवर में महेंद्र परमेश्वरी (नैना देवी) का वास था। सरोवर के बगल में सुभद्रा नाला (बलिया नाला) बताया गया है। इसी तरह भीमताल के पास के नाले को पुष्पभद्रा नाला कहा गया है, दोनों नाले भद्रवट यानी रानीबाग़ में मिलते थे। कहा गया है कि सुतपा ऋषि के अनुग्रह पर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व महेश चित्रशिला पर आकर बैठ गये और प्रसन्नतापूर्वक ऋषि को विमान में बैठाकर स्वर्ग ले गये। गौला को गार्गी नदी कहा गया है। भीम सरोवर (भीमताल) महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न हुआ था। पास की कोसी नदी को कौशिकी, नौकुचिया ताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल सरोवर आदि का भी उल्लेख है। क्षेत्र का छखाता या शष्ठिखाता भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है, यहां 60 ताल थे। मानसखंड में कहा गया है कि यह सभी सरोवर कीट-पतंगों, मच्छरों आदि तक को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इतिहासकार एवं लोक चित्रकार पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल मानसखंड को पूर्व मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण का हिस्सा तो नहीं मानते, अलबत्ता मानते हैं कि मानसखंड क़रीब 10वीं-11वीं सदी के आसपास लिखा गया एक धार्मिक ग्रंथ है।[2]
धार्मिक मान्यता
कहते हैं कि नैनीताल नगर का पहला उल्लेख त्रिषि-सरोवर (त्रि-ऋषि सरोवर के नाम से स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया जाता है। कहा जाता है कि अत्रि, पुलस्त्य व पुलह नाम के तीन ऋषि कैलाश मानसरोवर झील की यात्रा के मार्ग में इस स्थान से गुजर रहे थे कि उन्हें ज़ोरों की प्यास लग गयी। इस पर उन्होंने अपने तपोबल से यहीं मानसरोवर का स्मरण करते हुए एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसरोवर झील का पवित्र जल भर दिया। इस प्रकार नैनी झील का धार्मिक महात्म्य मानसरोवर झील के तुल्य ही माना जाता है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनी झील को देश के 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव जब माता सती के दग्ध शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत की ओर ले जा रहे थे, इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को विभक्त कर दिया था। तभी माता सती की बांयी आँख (नैन या नयन) यहाँ (तथा दांयी आँख हिमाचल प्रदेश के नैना देवी नाम के स्थान पर) गिरी थी, जिस कारण इसे नयनताल, नयनीताल व कालान्तर में नैनीताल कहा गया। यहाँ नयना देवी का पवित्र मंदिर स्थित है।[2]
भौगोलिक संदर्भ
समुद्र स्तर से 1934 मीटर (लगभग) की ऊंचाई (तल्लीताल डांठ पर) पर स्थित नैनीताल क़रीब तीन किमी की परिधि की 1434 मीटर लंबी, 463 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई व 44.838 हेक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी में फैली नाशपाती के आकार की झील के गिर्द नैना (2,615 मीटर (8,579 फुट), देवपाटा (2,438 मीटर (7,999 फुट)) तथा अल्मा, हांड़ी-बांडी, लड़िया-कांटा और अयारपाटा (2,278 मीटर (7,474 फुट) की सात पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद ख़ूबसूरत पहाड़ी शहर है। ज़िला गजट के अनुसार नैनीताल 29 डिग्री 38 अंश उत्तरी अक्षांश और 79 डिग्री 45 अंश पूर्वी देशांतर पर स्थित है। नैनीताल नगर का विस्तार पालिका मानचित्र के अनुसार सबसे निचला स्थान कृष्णापुर गाड़ व बलियानाला के संगम पर पिलर नंबर 22 (1,406 मीटर यानी 4,610 फीट) से नैना पीक (2,613 मीटर यानी 8,579 फीट) के बीच 1,207 मीटर यानी क़रीब सवा किमी की सीधी ऊंचाई तक है। इस लिहाज़ से भी यह दुनिया का अपनी तरह का इकलौता और अनूठा छोटा सा नगर है, जहां इतना अधिक ग्रेडिऐंट मिलता है। नगर का क्षेत्रफल नगर पालिका के 11.66 वर्ग किमी व कैंटोनमेंट के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर कुल 17.32 वर्ग किमी है। इसमें से नैनी झील का जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी है, जबकि कैंट (छावनी) सहित कुल नगर क्षेत्र में से 5.87 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित है।[2]
कृषि और खनिज
नैनीताल में 52,000 हैक्टेयर भूमि कृषि के लिए प्रयोग की जाती है जिसमें से 45,000 हैक्टेयर भूमि सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती है। सिंचाई के मुख्य श्रोत नहर तथा नलकूप हैं। 24,203 हैक्टेयर भूमि नहरों द्वारा और 3366 हैक्टेयर भूमि नलकूपों द्वारा सिंचित होती है। नैनीताल की मुख्य फ़सलें: गेहूँ, मंडुआ, मक्का, जौ, झंगोरा, कौणी, भट्ट, तोर, धान, गन्ना, मटर, सोयाबीन हैं। फलों में सेब, नाशपाती, आडू, खुमानी आदि भी उगाए जाते हैं।
शिक्षण संस्थान
नैनीताल में बहुत अच्छे स्कूल एवं कॉलेज हैं। यूरोपियन मिशनरियों के यहाँ कई स्कूल खुले हैं जिनमें से सेंट जोसेफ़ कॉलेज, शेरवुड कॉलेज, सेन्टमेरी कॉन्वेंट स्कूल और आल सेन्ट स्कूल प्रसिद्ध है। बिरला का बालिका विद्यालय और बिरला पब्लिक स्कूल भी प्रसिद्ध है। नैनीताल में पॉलिटेकनिक भी है। नैनीताल में कुमाऊँ विश्वविद्यालय भी स्थापित है, जहाँ पर हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय में नये-नये विषय पढ़ाये जाते हैं। जिन्हें पढ़ने के लिए देश के कोने-कोने से विद्यार्थी यहाँ आते हैं।[1]
यातायात और परिवहन
नैनीताल सड़क मार्ग द्वारा दक्षिण में स्थित काठगोदाम के रेलवे टर्मिनल से जुड़ा हुआ है। पंतनगर नैनीताल का निकटतम हवाई अड्डा है। नैनीताल हवाई अड्डे से 71 किमी दूर है। पंतनगर से भी नैनीताल के लिए बसें उपलब्ध है। रेलवे स्टेशन काठगोदाम के निकट है। बरेली, लखनऊ, दिल्ली और आगरा नैनीताल से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हुए हैं। बस और टैक्सी काठगोदाम से नैनीताल के लिए उपलब्ध हैं। नैनीताल और देहरादून, अल्मोड़ा, रानीखेत, बरेली, हरिद्वार, रामनगर, दिल्ली, लखनऊ और अन्य राज्यों में महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच निजी और सार्वजनिक बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
वायु मार्ग
हवाई जहाज़ से जाने वाले पर्यटक चंडीगढ़ विमानक्षेत्र तक वायु मार्ग से जा सकते है। इसके बाद बस या कार की सुविधा ले सकते है। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा अमृतसर विमानक्षेत्र में है।
रेल मार्ग
रेल मार्ग द्वारा नैना देवी जाने के लिए पर्यटक चंडीगढ़ और पालमपुर तक रेल सुविधा ले सकते है। इसके पश्चात् बस, कार व अन्य वाहनों से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ़ देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
नैना देवी दिल्ली से 350 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से करनाल, चंडीगढ़, रोपड़ होते हुए पर्यटक नैना देवी पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग सभी सुविधाओं से युक्त है। रास्ते में काफ़ी सारे होटल हैं, जहां पर विश्राम किया जा सकता है। सड़कें पक्की बनी हुई हैं।
पर्यटन
नैनीताल अपने तालों के लिए प्रसिद्ध है। प्रमुख स्थलों में नैनी झील, तल्ली एवं मल्ली ताल और मॉल रोड शामिल हैं। नैनीताल के पर्यटन स्थलों में स्नो व्यू पॉइंट, जहाँ 'रोप वे' से पहुँचा जा सकता है, झील के किनारे स्थित सबसे ऊँची नैनी चोटी, लैंड्स एंड, हनुमानगढ़ी, स्टेट ऑबज़रवेटरी और नैनीताल के लोकप्रिय विहार स्थल शामिल हैं। आस-पास के दर्शनीय स्थलों में सातताल, भीमताल और नौ किनारों वाला नौकुचिया ताल, संरक्षित वन किलबरी, खुरपा ताल, लोकप्रिय आरामगाह भोवाली, ढिकाला स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय और मुक्तेश्वर, जो हिमालय का मनमोहक दृश्य पेश करता है। यहाँ झील के आस-पास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही आनन्द है। गर्मियों में यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। यहाँ की झील, मंदिर, बाज़ार पर्यटकों को लुभाते हैं।
कब जाएँ
नैनीताल में अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ जाकर सैलानी अपने-आपको भूल जाते हैं। यहाँ अब लोग ग्रीष्म काल में नहीं आते, बल्कि वर्ष भर आते रहते हैं। सर्दियों में बर्फ़ के गिरने के दृश्य को देखने हज़ारों पर्यटक यहाँ पहुँचते रहते हैं। रहने के लिए नैनीताल में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक होटल हैं। आधुनिक सुविधाओं की नैनीताल में आज कोई कमी नहीं है। इसलिए सैलानी और पर्यटक यहाँ आना अधिक उपयुक्त समझते हैं। नैनीताल में अप्रैल से जून और सितम्बर से दिसम्बर तक दो सीजन होते हैं। सम्पूर्ण देश के पूँजीपति, व्यापारी, उद्योगपति, राजा-महाराजा और सैलानी यहाँ आते हैं। इस मौसम में टेनिस, पोलो, हॉकी, फुटबाल, गॉल्फ, मछली मारने और नौका दौड़ाने के खेलों की प्रतियोगिता होती है। इन खेलों के शौक़ीन देश के विभिन्न नगरों से यहाँ आते हैं। पिकनिक के लिए भी लोगों का ताँता लगा रहता है। इसी मौसम में नाना प्राकर के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। सितम्बर से दिसम्बर का मौसम भी बहुत सुन्दर रहता है। ऐसे समय में आकाश साफ़ रहता है। प्रायः इस मोसम में होटलों का किराया भी कम हो जाता है। बहुत से प्रकृति प्रेमी इसी मौसम में नैनीताल आते हैं। जनवरी और फ़रवरी के दो ऐसे महीने होते हैं जब नैनीताल में बर्फ़ गिरती है। बहुत से नवविवाहित दम्पतियाँ अपनी 'मधु यामिनी' हेतु नैनीताल आते हैं। तात्पर्य यह है कि यह सुखद और शान्ति का जीवन बिताने का मौसम है। नैनीताल में घूमने के बाद सैलानी पीक देखना भी नहीं भूलते। आजकल नैनीताल के आकर्षण में रज्जुमार्ग (रोप वे) की सवारी भी विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गयी है। सुबह, शाम और दिन में सैलानी नैनीताल के ताल में जहां बोट की सवारी करते हैं, वहीं घोड़ों पर चढ़कर घुड़सवारी का भी आनन्द लेते हैं। शरदकाल में और ग्रीष्मकाल में यहाँ बड़ी रौनक रहती है। शरदोत्सव के समय पर नौकाचालन, तैराकी, घोड़ों की सवारी और पर्वतारोहण जैसे मनोरंजन और चुनौती भरे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।[1]
नैनीताल के ताल
जनपद के पहाड़ी भागों में कई छोटी-बड़ी झीलें स्थित हैं- जिनमें नैनी झील, भीमताल, नौकुचिया ताल, गरुड़ताल, रामताल, सातताल, लक्ष्मणताल, नलदमयंतीताल, सूखाताल, मलवाताल, खुरपाताल, सड़ियाताल आदि हैं। नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं। ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है। मल्लीताल में फ़्लैट का खुला मैदान है। मल्लीताल के फ़्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहाँ नित नये खेल-तमाशे होते रहते हैं। संध्या के समय जब सारी नैनीताल नगरी बिजली के प्रकाश में जगमगाने लगती है तो नैनीताल के ताल को देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी इसी ताल में डूब सी गयी है। संध्या समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का तांता सा लग जाता है। इसी तरह मल्लीताल से तल्लीताल (माल रोड) जाने वाले प्रकृति प्रेमियों का क़ाफ़िला देखने योग्य होता है। नैनीताल, पर्यटकों, सैलानियों पदारोहियों और पर्वतारोहियों का चहेता नगर है जिसे देखने प्रतिवर्ष हज़ारों लोग यहाँ आते हैं। कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं जो केवल नैनीताल का "नैनी देवी" के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की अभिलाषा से आते हैं। यह देवी कोई और न होकर स्वयं 'शिव पत्नी' नंदा (पार्वती) हैं। यह तालाब उन्हीं की स्मृति का द्योतक है। इस सम्बन्ध में पौराणिक कथा कही जाती है।[1]
नैनी झील
नैनी झील का नाम देवी नैनी के नाम पर पड़ा है। पर्यटकों के लिए यह सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह है। ख़ासतौर से तब जब सूरज की किरणें पूरी झील को अपनी आग़ोश में ले लेती हैं। यह चारों तरफ़ से सात पहाड़ियों से घिरी हुई है। नैनीताल में नौंकायें और पैडलिंग का भी आनंद उठाया जा सकता है। मुख्य शहर से तक़रीबन ढाई किलोमीटर दूर बनी नैनी झील तक पहुँचने के लिए केवल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। नैनी झील सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है।
गर्नी हाउस
गर्नी हाउस अंग्रेज़ शासक जिम कॉर्बेट का पूर्व निवास स्थल है। नैनीताल चारों तरफ़ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, ठीक उसी तरह गर्नी हाउस भी अयारपट्टा पहाड़ियों से घिरा है। गर्नी हाउस अब एक संग्रहालय बन चुका है और जिम कॉर्बेट की कई यादगार वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं।
इन्हें भी देखें
नैना देवी मंदिर | नैनी झील | मुक्तेश्वर | ज्योलिकोट | हल्द्वानी | ढिकोली | काठगोदाम | त्रिऋषि सरोवर |
सात ताल झील | भीमताल झील | नौकुचिया ताल | रामगढ़ | भुवाली | हनुमानगढ़ी | काशीपुर | तल्ली एवं मल्ली ताल |
नए नैनीताल की खोज
सन् 1839 ई. में एक अंग्रेज़ व्यापारी पी. बैरून था। वह रोजा, ज़िला शाहजहाँपुर में चीनी का व्यापार करता था। इसी पी. बैरून नाम के अंग्रेज़ को पर्वतीय अंचल में घूमने का अत्यन्त शौक़ था। केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करने के बाद यह उत्साही युवक अंग्रेज़ कुमाऊँ की मखमली धरती की ओर बढ़ता चला गया। एक बार खैरना नाम के स्थान पर यह अंग्रेज़ युवक अपने मित्र कैप्टन ठेलर के साथ ठहरा हुआ था। प्राकृतिक दृश्यों को देखने का इन्हें बहुत शौक़ था। उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से जब 'शेर का डाण्डा' इलाक़े की जानकारी प्राप्त की तो उन्हें बताया गया कि सामने जो पर्वत है, उसको ही 'शेर का डाण्डा' कहते हैं और वहीं पर्वत के पीछे एक सुन्दर ताल भी है। बैरून ने उस व्यक्ति से ताल तक पहुँचने का रास्ता पूछा, परन्तु घनघोर जंगल होने के कारण और जंगली पशुओं के डर से वह व्यक्ति तैयार न हुआ। परन्तु, विकट पर्वतारोही बैरून पीछे हटने वाले व्यक्ति नहीं थे। गाँव के कुछ लोगों की सहायता से पी. बैरून ने 'शेर का डाण्डा' (2360 मीटर) को पार कर नैनीताल की झील तक पहुँचने का सफल प्रयास किया। इस क्षेत्र में पहुँचकर और यहाँ की सुन्दरता देखकर पी. बैरून मन्त्रमुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन तय कर ड़ाला कि वे अब रोजा, शाहजहाँपुर की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन आबादियों को ही आबाद करेंगे।
पी. बैरून 'पिलग्रिम' के नाम से अपने यात्रा-विवरण अनेक अख़बारों को भेजते रहते थे। बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा का वर्णन भी उन्होंने बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा था। सन् 1841 की 24 नवम्बर को, कलकत्ता के 'इंगलिश मैन' नामक अख़बार में पहले-पहले नैनीताल के ताल की खोज ख़बर छपी थी। बाद में आगरा अख़बार में भी इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी थी। सन् 1844 में किताब के रूप में इस स्थान का विवरण पहली बार प्रकाश में आया था। बैरून साहब नैनीताल के इस अंचल के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सारे इलाक़े को ख़रीदने का निश्चय कर लिया। पी. बैरून ने उस इलाक़े के थोकदार से स्वयं बातचीत की कि वे इस सारे इलाक़े को उन्हें बेच दें।
पहले तो थोकदार नूरसिंह तैयार हो गये थे, परन्तु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया। बैरून इस अंचल से इतने प्रभावित थे कि वह हर क़ीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाक़े को अपने क़ब्ज़े में कर, एक सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे। जब थोकदार नूरसिंह इस इलाक़े को बेचने से मना करने लगे तो एक दिन बैरून साहब अपनी किश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गये और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस सारे क्षेत्र को बेचने के लिए जितना रुपया चाहो, ले लो, परन्तु यदि तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूँगा। बैरून साहब ख़ुद अपने विवरण में लिखते हैं कि डूबने के भय से नूरसिंह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तख़त कर दिये और बाद में बैरून की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया। सन् 1842 ई. में सबसे पहले मजिस्ट्रेट बेटल से बैरून ने आग्रह किया था कि उन्हें किसी ठेकेदार से परिचय करा दें ताकि वे इसी वर्ष 12 बंगले नैनीताल में बनवा सकें। सन् 1842 में बैरून ने सबसे पहले पिलग्रिम नाम के कॉटेज को बनवाया था। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छह मास के लिए उत्तर प्रदेश के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे।[1]
‘वाकिंग पैराडाइज़’ नैनीताल
नैनीताल नगर ‘वाकिंग पैराडाइज़’ यानी पैदल घूमने के लिये भी स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि यहां कमोबेश हर मौसम में, मूसलाधार बारिश को छोड़कर, दिन में किसी भी वक्त घूमा जा सकता है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में सुबह दिन चढ़ने और सूर्यास्त से पहले गर्मी एवं सड़कों में भारी भीड़-भाड़ के कारण घूमना संभव नहीं होता है। जबकि यहां नैनीताल में वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है, व अधिक भीड़ भी नहीं रहती। नगर की माल रोड के साथ ही ठंडी सड़क में घूमने का मज़ा ही अलग होता है। वहीं वर्ष 2010 से नगर में अगस्त माह के आख़िरी रविवार को नैनीताल माउनटेन मानसून मैराथन दौड़ भी नगर की पहचान बनने लगी है, इस दौरान किसी ख़ास तय नेक उद्देश्य के लिये ‘रन फ़ॉर फ़न’ वाक या दौड़ भी आयोजित की जाती है, जो अब मानसून के दौरान नगर का एक प्रमुख आकर्षण बनता जा रहा है। नगर के निकट किलबरी का जंगल दुनिया के पारिस्थितिकीय तौर पर दुनिया के समृद्धतम जंगलों में शुमार है। नैनी झील का जलागम क्षेत्र बांज, तिलोंज व बुरांश आदि के सुंदर जंगलों से सुशोभित है। नगर की इस ख़ासियत का भी इस शहर को अप्रतिम बनाने में बड़ा योगदान है। इसी कारण नैनीताल नगर के आगे जनपद की सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल और खुर्पाताल आदि झीलें ख़ूबसूरती, पर्यटन व मनोरंजन मूल्य सही किसी भी मायने में कहीं नहीं ठहरती हैं। इसके अलावा नैनीताल की एक विशेषता यह है कि यहां कृषि योग्य भूमि नगण्य है, हालांकि राजभवन, पालिका गार्डन, कैनेडी पार्क व कंपनी बाग़ सहित अनेक बाग़-बग़ीचे हैं।[2]
एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च
सरोवरनगरी नैनीताल से बाहर के कम ही लोग जानते होंगे कि देश-प्रदेश के इस छोटे से पर्वतीय नगर में देश ही नहीं एशिया का पहला अमेरिकी मिशनरियों द्वारा निर्मित मैथोडिस्ट चर्च निर्मित हुआ, जो कि आज भी कमोबेश पहले से बेहतर स्थिति में मौजूद है। नगर के मल्लीताल माल रोड स्थित चर्च को यह गौरव हासिल है। देश पर राज करने की नीयत से आये ब्रिटिश हुक्मरानों से इतर यहां आये अमेरिकी मिशनरी रेवरन् यानी पादरी डॉ. बिलियम बटलर ने इस चर्च की स्थापना की थी। यह वह दौर था जब देश में पहले स्वाधीनता संग्राम की क्रांति जन्म ले रही थी। मेरठ अमर सेनानी मंगल पांडे के नेतृत्व में इस क्रांति का अगुवा था, जबकि समूचे रूहेलखंड क्षेत्र में रूहेले सरदार अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे थे। बरेली में उन्होंने शिक्षा के उन्नयन के लिये पहुंचे रेवरन् बटलर को भी अंग्रेज़ समझकर उनके परिवार पर जुल्म ढाने शुरू कर दिये, जिससे बचकर बटलर अपनी पत्नी क्लेमेंटीना बटलर के साथ नैनीताल आ गये और यहां उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिये नगर के पहले स्कूल के रूप में हैम्फ़्री कालेज (वर्तमान सीआरएसटी स्कूल) की स्थापना की, और इसके परिसर में ही बच्चों एवं स्कूल कर्मियों के लिये प्रार्थनाघर के रूप में चर्च की स्थापना की। तब तक अमेरिकी मिशनरी एशिया में कहीं और इस तरह की चर्च की स्थापना नहीं कर पाए थे। तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी हेनरी रैमजे ने 20 अगस्त 1858 को चर्च के निर्माण हेेतु एक दर्जन अंग्रेज़ अधिकारियों के साथ बैठक की थी। चर्च हेतु रैमजे, बटलर व हैम्फ़्री ने मिलकर 1650 डॉलर में 25 एकड़ ज़मीन ख़रीदी, तथा इस पर 25 दिसंबर 1858 को इस चर्च की नींव रखी गई। चर्च का निर्माण अक्टूबर 1860 में पूर्ण हुआ। इसके साथ ही नैनीताल उस दौर में देश में ईसाई मिशनरियों के शिक्षा के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र बन गया। अंग्रेज़ी लेखक जॉन एन. शालिस्टर की 1956 में लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक ‘द सेंचुरी ऑफ मैथोडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया’ में भी नैनीताल की इस चर्च को एशिया का पहला चर्च कहा गया है। रेवरन् बटलर ने नैनीताल के बाद पहले उत्तर प्रदेश के बदायूँ तथा फिर बरेली में 1870 में चर्च की स्थापना की। उनका बरेली स्थित आवास बटलर हाउस वर्तमान में बटलर प्लाज़ा के रूप में बड़ी बाज़ार बन चुकी है, जबकि देहरादून का क्लेमेंट टाउन क्षेत्र का नाम भी संभवतया उनकी पत्नी क्लेमेंटीना के नाम पर ही पड़ा।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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