"काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर

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! दिनेश रघुवंशी की रचनाएँ
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<poem>पहले मन में पीड़ा जागी
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पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में
फिर भाव जगे मन-आँगन में
जब आँगन छोटा लगा उसे
जब आँगन छोटा लगा उसे
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     जब बिना दोष उजियारों का
     जब बिना दोष उजियारों का
     रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
     रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
     जब क़समें खानेवालों ने
     जब क़समें खाने वालों ने
     अपना बतलाने वालों ने
     अपना बतलाने वालों ने
     दिल दरपन पल-पल तोड़ा
     दिल का दरपन पल-पल तोड़ा


टूटे दिल को समझाने को
टूटे दिल को समझाने को
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     पहले अपने-से लगे मगर
     पहले अपने-से लगे मगर
     फिर धीरे-धीरे पहचाने
     फिर धीरे-धीरे पहचाने
     ये धन-वैभव, ये किर्ति-शिखर
     ये धन-वैभव, ये कीर्ति-शिखर
     पहले अपने- से लगे मगर
     पहले अपने - से लगे मगर
     फिर ये भी निकले बेगाने
     फिर ये भी निकले बेगाने


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     बेगानों तक का प्यार मिला
     बेगानों तक का प्यार मिला
     यूँ लगा कि ये संसार मिला
     यूँ लगा कि ये संसार मिला
     जब आँसूं छ्लके आँखों से
     जब आँसू छ्लके आँखों से
     अपनों तक से प्रतिकार मिला
     अपनों तक से प्रतिकार मिला
     चुप रहने का अधिकार मिला
     चुप रहने का अधिकार मिला


फिर ख़ुद में इक विशवास मिला
फिर ख़ुद में इक विश्वास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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11:55, 23 अगस्त 2011 के समय का अवतरण

काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा -दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
कवि दिनेश रघुवंशी
जन्म 26 अगस्त, 1964
जन्म स्थान ग्राम ख़ैरपुर, बुलन्दशहर ज़िला, (उत्तर प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
दिनेश रघुवंशी की रचनाएँ

पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आँगन में
जब आँगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…

    जाने-पहचाने चेहरों ने
    जब बिना दोष उजियारों का
    रिश्ता अँधियारों से जोड़ा
    जब क़समें खाने वालों ने
    अपना बतलाने वालों ने
    दिल का दरपन पल-पल तोड़ा

टूटे दिल को समझाने को
मुश्किल में साथ निभाने को
छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…

    ये चाँद सितारे और अम्बर
    पहले अपने-से लगे मगर
    फिर धीरे-धीरे पहचाने
    ये धन-वैभव, ये कीर्ति-शिखर
    पहले अपने - से लगे मगर
    फिर ये भी निकले बेगाने

फिर मन का सूनापन हरने
और सारा ख़ालीपन भरने
ममतामयी आँचल को लेकर
अन्तस में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…

    कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
    बेगानों तक का प्यार मिला
    यूँ लगा कि ये संसार मिला
    जब आँसू छ्लके आँखों से
    अपनों तक से प्रतिकार मिला
    चुप रहने का अधिकार मिला

फिर ख़ुद में इक विश्वास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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