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====1. जन-साधारण की भाषा==== | |||
इसका स्वरूप राज्य के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। उदाहरण स्वरूप लखा, महाजलार के इलाके में मालानी घाट व माङ् भाषाओं का मिश्रण बोला जाता है। परगना सम, सहागढ़ व घोटाडू की भाषा में थाट, माङ् व [[सिंधी भाषा]] का मिश्रण बोल-चाल की भाषा है। विसनगढ़, खूडी, नाचणा आदि परगनों में जो बहावलपुर, सिंध से संलग्न है, माङ्, बीकानेरी व सिंधी भाषा का मिश्रण है। इसी प्रकार लाठी, पोकरण, फलौदी के क्षेत्र में घाट व माङ् भाषा का मिश्रण है। | इसका स्वरूप राज्य के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। उदाहरण स्वरूप लखा, महाजलार के इलाके में मालानी घाट व माङ् भाषाओं का मिश्रण बोला जाता है। परगना सम, सहागढ़ व घोटाडू की भाषा में थाट, माङ् व [[सिंधी भाषा]] का मिश्रण बोल-चाल की भाषा है। विसनगढ़, खूडी, नाचणा आदि परगनों में जो बहावलपुर, सिंध से संलग्न है, माङ्, बीकानेरी व [[सिंधी भाषा]] का मिश्रण है। इसी प्रकार लाठी, [[पोकरण जैसलमेर|पोकरण]], [[फलौदी]] के क्षेत्र में घाट व माङ् भाषा का मिश्रण है। | ||
====2. साहित्यिक भाषा==== | |||
जैसलमेर में रचे गए [[जैसलमेर का साहित्य|साहित्य]] में [[प्राकृत]], [[अपभ्रंश]], [[संस्कृत]] तथा [[ब्रजभाषा]] का प्रयोग किया गया है। | जैसलमेर में रचे गए [[जैसलमेर का साहित्य|साहित्य]] में [[प्राकृत]], [[अपभ्रंश]], [[संस्कृत]] तथा [[ब्रजभाषा]] का प्रयोग किया गया है। | ||
====3. राजकार्य की भाषा==== | |||
राजकार्य में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में अपभ्रंश, खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है, जो ताम्र पत्रों, शिलालेखों, आदेशों पट्टे परवाने, पत्रों में प्रयुक्त की जाती रही है। 1880 ई. के उपरांत यहाँ पर भारतीय दंड संहिता, दीवानी, फ़ौजदारी आदि अंग्रेज़ी अधिनियम लागू होने पर उनके उर्दू में किए गए भाषातरों का प्रयोग किए जाने से राजकीय कार्यों में [[उर्दू भाषा]] के शब्दों का प्रयोग अधिक होने लगा था, जो न्याय की भाषा के रूप में [[भारत]] में राज्य के विलीनीकरण तक होता रहा। | राजकार्य में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]], [[खड़ी बोली]] का प्रयोग किया गया है, जो ताम्र पत्रों, [[शिलालेख|शिलालेखों]], आदेशों पट्टे परवाने, पत्रों में प्रयुक्त की जाती रही है। 1880 ई. के उपरांत यहाँ पर भारतीय दंड संहिता, दीवानी, फ़ौजदारी आदि अंग्रेज़ी अधिनियम लागू होने पर उनके उर्दू में किए गए भाषातरों का प्रयोग किए जाने से राजकीय कार्यों में [[उर्दू भाषा]] के शब्दों का प्रयोग अधिक होने लगा था, जो न्याय की भाषा के रूप में [[भारत]] में राज्य के विलीनीकरण तक होता रहा। | ||
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09:26, 6 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
जैसलमेर में बोली मुख्यतः राजस्थान के मारवा क्षेत्र में बोली जाने वाली मारवाड़ी भाषा का ही एक भाग है। परन्तु जैसलमेर क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा थली या थार के रेगिस्तान की भाषा है। राजस्थान में बोली जोन वाली इन सभी बोलियों का मिश्रण है, जो घाट, माङ्, सिंधी, मालाणी, पंजाबी, गुजराती भाषा का सुंदर मिश्रण है।[1] जैसलमेर में बोली जाने वाली भाषा को हम तीन प्रमुख भाषाओं में विभाजित कर सकते हैं-
1. जन-साधारण की भाषा
इसका स्वरूप राज्य के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। उदाहरण स्वरूप लखा, महाजलार के इलाके में मालानी घाट व माङ् भाषाओं का मिश्रण बोला जाता है। परगना सम, सहागढ़ व घोटाडू की भाषा में थाट, माङ् व सिंधी भाषा का मिश्रण बोल-चाल की भाषा है। विसनगढ़, खूडी, नाचणा आदि परगनों में जो बहावलपुर, सिंध से संलग्न है, माङ्, बीकानेरी व सिंधी भाषा का मिश्रण है। इसी प्रकार लाठी, पोकरण, फलौदी के क्षेत्र में घाट व माङ् भाषा का मिश्रण है।
2. साहित्यिक भाषा
जैसलमेर में रचे गए साहित्य में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत तथा ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
3. राजकार्य की भाषा
राजकार्य में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में अपभ्रंश, खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है, जो ताम्र पत्रों, शिलालेखों, आदेशों पट्टे परवाने, पत्रों में प्रयुक्त की जाती रही है। 1880 ई. के उपरांत यहाँ पर भारतीय दंड संहिता, दीवानी, फ़ौजदारी आदि अंग्रेज़ी अधिनियम लागू होने पर उनके उर्दू में किए गए भाषातरों का प्रयोग किए जाने से राजकीय कार्यों में उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग अधिक होने लगा था, जो न्याय की भाषा के रूप में भारत में राज्य के विलीनीकरण तक होता रहा।
विशेषताएँ
यहाँ बोली जाने वाली भाषा की अन्य दो विशेषताएँ हैं।
- प्रथम- यहाँ के लोग बहुत ज़ोर (ऊँची ध्वनी) से बात करते हैं, जो सिंधी भाषा का स्पष्ट प्रभाव है।
- द्वितीय- भाषा को बोलने में लय का प्रयोग करते हैं तथा हाथ तथा चेहरे से भी भाव व्यक्त करते हुए वार्तालाप करते हैं, जो घाट एवं मारवाड़ी भाषा का प्रभाव है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जैसलमेर में भाषा (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 2 नवंबर, 2010।
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