"साथ सब ना चल सकेंगे -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर

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     क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
     क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
     हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
     हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
     जो अकेले में कभी ना, आईने से मुँह छुपाये
     जो अकेले में कभी ना, आइने से मुँह छुपाये
     वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
     वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
     साथ सब ना चल सकेंगे…
     साथ सब ना चल सकेंगे…
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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14:09, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

साथ सब ना चल सकेंगे -दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
कवि दिनेश रघुवंशी
जन्म 26 अगस्त, 1964
जन्म स्थान ग्राम ख़ैरपुर, बुलन्दशहर ज़िला, (उत्तर प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
दिनेश रघुवंशी की रचनाएँ

साथ सब न चल सकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
लोग रास्ते में रुकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
दूसरों के आँसू अपनी, आँख से जो भी बहाये
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…

    दूसरों को जानते हैं, खुद को पहचाना नहीं है
    बात है छोटी मगर सबने इसे माना नहीं है
    बौने किरदारों को अक्सर होता है क़द का गुमां
    क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
    हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
    जो अकेले में कभी ना, आइने से मुँह छुपाये
    वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
    साथ सब ना चल सकेंगे…

आवरण भाने लगे तो सादगी का अर्थ भूले
अर्थ की चाहत में पल-पल ज़िन्दगी का अर्थ भूले
छोटी खुशियाँ द्वार पर दस्तकें तो लाईं लेकिन
हम बड़ी खुशियाँ में छोटी हर खुशी का अर्थ भूले
दूसरों की खुशियाँ में जो ढूँढ़कर अपनी खुशी को
भोली-सी मुसकान हरदम अपने होठों पर सजाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…

    हर किसी को ये भरम है, साथ दुनिया का मेला
    पर हक़ीक़त में सभी को होना है इक दिन अकेला
    ज़िन्दगी ने मुस्कुराकर बस गले उसको लगाया
    जिसने भी ज़िदादिली से ज़िंदगी का खेल खेला
    दुनिया में उसको सभी मौसम सुहाने लगते हैं
    मौत की खिलती कली पर, भँवरा बन जो गुनगुनाये
    वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
    साथ सब ना चल सकेंगे…


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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